Dr.Purnima Rai

Inspirational

2.6  

Dr.Purnima Rai

Inspirational

मीरा (लघुकथा)

मीरा (लघुकथा)

2 mins
194


उफ! क्या जमाना आ गया है, कोई किसी की सुनता ही नहीं है। बड़बड़ाती हुई मीरा ऑफिस के कमरे में प्रवेश करती है। फाइल को इधर-उधर पटकते हुए सोनी को आवाज देती है। अरी सोनी, इधर आ, सोनी मीरा की आवाज सुनते हुए सामने आ खड़ी होती है। सोनी, तुमने अभी तक यह फाइल को अच्छी तरह देखा ही नहीं है। एक सप्ताह से तुमको कह रही हूं। मैडम यह ठीक है कि आप मुझसे उम्र, रुतबे और पद में बड़ी हैं, पर आप के बात करने का लहजा मुझे कतई पसंद नहीं है। जली भुनी हुई मीरा एकदम से तपाक से बोलती है, तू छोटी है, छोटी बनकर रहा कर, छोटों को बड़ों की बात माननी चाहिए। खिलखिलाती हुई सोनी मीरा को कहती है कि काश! यह बात आपको भी समझ आ गई होती तो आज आप भी अकेली ना होती, आपका भी एक भरा पूरा परिवार होता, सास -ससुर होते, जेठ-जेठानी होते, आपके बच्चों को भी दर-ब-दर यूँ नौकरों पर आश्रित ना रहना पड़ता, पर नहीं हम दूसरों को कहना जानते हैं पर जब वही बात खुद पर लागू होती है तो कन्नी कतरा लेते हैं। सोनी की ये बातें ऑफिस में पड़ी हुई फाइलों में दबकर रह जाती है और मीरा फिर जोर से चिल्लाती है ----अरे रामू, एक कप चाय लाओ। दिमाग गर्म हुआ जा रहा है।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational