Nandita Srivastava

Drama Tragedy

4.2  

Nandita Srivastava

Drama Tragedy

महेश

महेश

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आज की कहानी महेश नाम के युवक की है।

हम महेश को तब से जानते है जब से वह नाक पोंछता हुआ हनारी कामवाली के साथ आता था और थोड़ी थोड़ी देर में अपनी मँ से कहता कि मँ भूख लगल बा।

हम उसको दे देते तो चुपचाप खाता और और अपनी मँ को काम करते देखता।

धीरे-धीरे महेश बड़ा हो रह था पर सारे समय माँ और माँ। उसकी दुनिय ही माँ थी।

स्कूल जाने लगा, पढ़ने लिखने में भी बहुत आगे पर उसकी दुनिय ना बदली, माँ और माँ।

रामदेई ने बरसों हमारे यहाँ काम किया। वह अपने बेटे को मीठी सी झिडकी देती और कहतीं इतना बड़ा हो गया पर हर समय माँ माँ करता रहता है।

समय बीता किशोर महेश युवा महेश बन गया। अब वह सरकारी नौकरी की तैयारी करने लगा और उसका चयन हुआ। वह तो होना ही था। समय बीता वह लोग हम से दूर हो गये। काफी दिनों बाद हमारा नैनीताल जाना हुआ। अचानक आवाज आयी कि माँ भूख लगी है। रोटी दे दो, हम चौंक कर पीछे मुड़कर देखे अरे यह तो अपना महेश है। अरे फटे कपड़े बढ़ी दाढ़ी बहुत बुरी हालत, हम को पता नहीं कैसे पहचान गया और पैर पकड़ कर बस बोला- मेम दीदी भूख लगीं है। कब से खाना माँग रहा हूँ। माँ देती ही नहीं वहाँ पर भीड़ इकठ्ठी हो गयी।

जब लोगों से पूछा तो पता चला माँ की मौत के बाद कई दिनों तक माँ को पकड़ कर बैठा रहा। आस पड़ौस वालों ने किसी तरह माँ का अंतिम संसकार किया। तब से पागलों जैसी दशा है। हमने भर पेट भोजन कराने के बाद उसका इलाज कराया अब तो ठीक है पर उसकी उस दशा को देखकर मन बड़ा भारी हो जाता है।

आज के समाज में जहाँ लोग माँ बाप देखना नही चाहते वहाँ महेश जैसे लोग आज भी है और जिनसे हमारा समाज भारतीय समाज आज भी चल रहा है।


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