महाकाली
महाकाली
जब जब पाप का भार बढ़ा है तब तब उस भार का संहार करने आदिशक्ति का किसी न किसी रूप में आबिर्भाव हुआ है। ये नियम है प्रकृति का। नारी जो या नर, पाप और अधर्म का नाश निश्चित है। मानव धर्म यही है कि यदि आप के साथ पाप या अधर्म हो रहा हो तो उसका विरोध करें, उसे बढ़ने न दें। लेकिन भय या डर कभी कभार दुर्बल बना देती है। जिसके कारण पाप बढ़ता जाता है और पापी भी।
आज सुनते हैं ऐसे ही पाप अधर्म और अनाचार की एक सच्ची कहानी जो हमारे आस पास रोज़मर्रा की ज़िंदगी में घटते तो हैं परंतु हम उन का विरोध नहीं कर पाते। और इसलिए इन सब का अंत करने एक रूप का आबिर्भाव हो जाता है। आज के इस आधुनिक युग में नारी जितनी आगे बढ़ रही हैं उतनी ही उनके प्रति ज़ुल्म, अन्याय और अनाचार बढ़ रहे हैं। घर हो या दफ़्तर, मंदिर हो या मस्ज़िद, एकांत स्थान हो या भीड़, वो सुरक्षित नहीं है। न जाने क्या क्या झेलना पड़ रहा है।
अदिति और आदित्य दोनों कॉलेज के वक़्त से एक दूसरे को जानते थे। धीरे धीरे उनमें प्रेम की भावना ने जन्म लिया। इस दौर में एक दूसरे को जानना , समझना और एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव होना बहुत ज़रूरी है। दोनों के परिवार वाले भी इस रिश्ते से खुश थे। शादी के बाद दोनों दिल्ली शिफ्ट होगये और एक ही कम्पनी में दोनों ने नौकरी शुरू की। आदित्य का पद अदिति से कम था। अदिति वहाँ अपने पति से ऊपरी स्तर पर काम करती। ये कोई अजीब बात नहीं है इस पीढ़ी में। वो दोनों भी बहुत व्यवहारिक मानसिकता के थे और उन्हें इस वजह से आपस में कोई तनाव भी न था। पर आसपास के लोग और दोस्तों को इस बात का बतंगड़ बनाने का बड़ा शौक होता है।
ऐसी घटनाएं उनके साथ रोज़ होने लगीं। उनके कम्पनी के कुछ लोगों को भी अदिति से जलन थी। और वो फालतू के शक और हीन चिंताधारा जैसे बातें करके आदित्य को उकसाने में लग पड़े। लेकिन आदित्य जानता था दौर चाहे कुछ भी हो, ज़माना चाहे कितना भी आगे बढ़ जाए लोगों की सोच ज़माने के साथ नहीं बदलती। उसने हर बात को नज़र अंदाज़ किया। और अपनी पत्नी के साथ खड़ा रहा।
ऑफिस में उच्च पद के लोगों में अदिति की प्रशंसा सुनी और देखी न जाती। देर रात तक मीटिंग्स और कॉन्फ्रेंस की आड़ में उन लोगों ने धीरे धीरे अदिति को परेशान करना शुरू कर दिया। आदित्य से कुछ कह नहीं पाती थी। पर आदित्य को इसकी भनक लग चुकी थी। अपने पत्नी की मनोदशा को समझ चुका था। एक दिन अदिति रोते हुए उसके पास आई, बहुत घबराई हुई थी, चेहरे और डर, और आंखों में आँसूं… उसे ऐसा देख आदित्य ने उसे संभाला और कहा - "यूँ कमज़ोर मत बनो। तुम किस हाल से गुज़र रही हो मैं सब जानता हूँ लेकिन तुमसे कभी कुछ कहा नहीं। इसलिए नहीं कि मैं कुछ नहीं कर सकता बल्कि मैं इंतेज़ार कर रहा था तुम कब इन सबका विरोध करोगी। मैंने तुम्हारी आँखों मे डर देखा है, लेकिन जब मैं साथ हूँ तो डर क्यों ? शायद तुम भी बाकी लड़कियों जैसी ये सोचती हो कि सब पति को पता चलेगा तो वो पत्नी पे रोकटोक लगाएगा, उसके चरित्र में सवाल उठाएगा या उस रिश्ते में दरार आजाएगी। लेकिन ये तुम्हारी ग़लती तो नहीं है। तैर तुमहे ग़लत कहने की औकात किसी पुरूष का नहीं है। तुम्हारा हक है ये पद, ये ओहदा, ये ज़िन्दगी। इसे तुम दूसरों के गंदे इरादों से क्यों खो रही हो….आँसुयों को रोकलो और अपनी हिम्मत को, अपनी शक्ति को जागृत करो। क्योंकि आज मैं हूँ तो तुम पर उठती निगाहों को नोच लूंगा, पर मेरे बाद क्या?"
भगवान शिवजी चाहते तो शुम्ब के वध स्वयं करदेते पर उन्होंने माता पार्वती के अंदर की महाकाली को जागृत किया ताकि नारी शक्ति स्वयं अत्यचार का सामना करे उसका विरोध करे और उसका विनाश करे। अब तुम भी उस महाकाली का रूप अपने अंदर जगाओ और लड़ो। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।
बस यही बात अगर हर मर्द के ज़ुबान पे आजाए तो कोई स्त्री कभी अपने साथ होरहे अन्याय और अत्याचार को नहीं सहेगी...वो लड़ेगी, जीतेगी और उसे किसी के बातों की कोई परवाह न होगी… क्योंकि उसका पति उसके साथ है।
