महाभारत का युद्ध
महाभारत का युद्ध




दोस्तों
जीवन भर धर्म का पालन करने वाले, धर्मपरायण लोगों के समस्त पुण्यों का नाश उस पल हो जाता है
जब वे पाप को पाप कहने और उसका विरोध करने के स्थान पर उस ओर से अपनी आंखें मूंद लेते हैं।इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है।
जब भरी सभा में धृतराष्ट्र,भीष्म और द्रोण द्रोपदी के चीरहरण को रोकने हेतु आवाज़ भी न उठा सके ।वे चाहते तो विरोध कर सकते थे,किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया।
कर्ण जिसने अपने जीवन रक्षक कवच - कुंडल तक दान करने में हिचक नहीं दिखाई, जिसके द्वार से कोई खाली हाथ नहीं गया, ऐसे दानवीर ने
अभिमन्यु को जो युद्ध में घायल हो भूमि पर प्यास से तड़प रहा था।पानी का गड्ढा समीप होते हुए भी पानी नहीं दिया।
इस तरह के कर्मों से जीवन भर के कमाये हुए पुण्य नष्ट हो जाते हैं।
विधी की विडंबना कि बाद में उसी पानी के गड्ढे में कर्ण के रथ का पहिया फंस गया और वह मारा गया।
जब हम अपने आसपास कुछ गलत होता देख कर भी कुछ नहीं करते,तो हम उस पाप के भागी बन जाते हैं,और उसके फल भी भोगने पड़ते हैं।
अगर हम मदद करने की स्थिति में नही हैं तो बात अलग हो सकती है।