मेरी प्यारी माँ
मेरी प्यारी माँ
कब से सोच रही थी इस मदर्स डे -ये कहूँगी, वो कहूँगि, न जाने क्या क्या -- पर आज जब लिखने बैठी तो समझ ही नहीं आ रहा शुरू कहाँ से करूँ। आएगा भी कैसे मैंने तो अपनी उम्र भर ही तुझे जाना है, पर तुमने तो उसके पहले से मेरी कहानी लिक्खी है।
ईश्वर ने जब सृजन की संकल्पना की तब तुमने ही तो मेरे रोम रोम को गढ़ा। लोग कहते हैं माँ त्याग है, तपस्या है, माँ भाव है, संवेदना है, माँ भूख है, प्यास है, माँ आश है, विश्वास है, खुशनसीब हैं वो जिनकी माँ उनके पास है।
पर बेटियों के भाग्य कहाँ ऐसा विधि का लिक्खा ऐसा कोई अरदास है।
आज भी कंघी उठाते ही तुम्हारी ही याद आती है, दोनों पैरों की कैंची से हम तब तक नहीं निकल पाते थे जब तक बालों की चोटी न गुंथ जाती थी। परीक्षा हमारी होती थी पर उसके
लिए हर तैयारी तुम्हारी हुआ करती थी।
कहीं भागकर आना और आकर तुझसे लिपट जाना। माँ कभी कहा नहीं मैंने पर तू ही मेरी शक्ति है। अक्सर तू भी कुछ कहती नहीं पर बिना मेरे बोले हमेशा मैंने तुम्हें अपने पास, अपने साथ पाया है। तुम्हारी नज़रों में अपने लिए विश्वास और प्रेम की थाह पा सकूँ यह मेरे लिए असंभव है। "तू चल मैं हूँ न" का संबल पाथेय तुमसे ही पाया है।
आज तुमसे लिपट कर सो जाने का मन करता है।
तुम्हारी मार खाकर तुम्हारे ही आँचल में छुप जाने का मन करता है,
तुम्हारी डांट सुनकर तुमसे रूठ जाने का मन करता है।
सांसों की डोर को अटूट करने वाली तू ही तो रक्षासूत्र है।
माँ है तो थाली की गरम रोटी है, स्वाद है, जायका है, माँ है तो मायका है।