Jeevesh Nandan

Tragedy

4.5  

Jeevesh Nandan

Tragedy

मेरे बढ़ते कदमों की आहट

मेरे बढ़ते कदमों की आहट

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करीब आज शाम के 7 बज रहे थे और मैं रोज़ की तरह कसरत कर घर लौट रहा था। आज सोमवार था तो सड़कों पर रोज से तनिक ज्यादा भीड़ थी। चाट वाले अपने तस्तरी नुमा तवे पर करछी पीट पीट कर हमें बुला रहे थे और बगल में फल वाले हमें आशा की निगाहों से तक रहे थे। बगल से चमचमाती गाड़ियाँ सन्न-सन्न कर निकल रहीं थीं। और हम अपने कान में ठूठी लगाए अमा मतलब हैडफ़ोन लगाए 'बेबी व्हेन यु टॉक लाइक दैत, पीपल गो मैड' सुनते हुए जा रहे थे। बिखरे बाल, नाचती आंखों और थिरकते कदमों से हम अपनी धुन में आगे बढ़ते जा रहे थे, की अचानक हमारी नज़र एक महिला पर पड़ी, काला सूट पहने सिर और मुंह दुपट्टे से ढका हुआ और हाथ मे एक लाल चूड़ी, बताना मुश्किल था कि वह विवाहित रही होगी या नही। उसकी उम्र लगभग कुछ 25-30 साल के करीब थी और वह मोहतरमा एक झोला भर कर अण्डे और एक झोला भरकर सब्जी तथा फल लिए जा रही थी। शायद उसके घर मे कुछ जलसा हो या शायद वो हफ्ते भर का राशन एक बार मे लेकर जा रही हो। हमने दूर से देखा तो वो बार-बार कभी दोनों झोले एक हाथ मे पकड़ती कभी एक झोला इस हाथ मे और दूसरा दूसरे हाथ में। ये खेल लगभग 300 मीटर तक चलता रहा, हम लगातार उससे कुछ दूरी बनाए चल रहे थे और यह सब देख रहा थे। कुछ पल बाद हमसे रहा नहीं गया हम उनके पास गए और हमने कहा," जी सुनिए"। पहले वह थोड़ा सा चौंकी फिर एक कठोर स्वर में बोली, "यस?" उसके इस 'यस' में एक खटास थी, एक अजीब सी सिरहन थी, एक डर था और उसके नथुने ज्यादा ही फूल रहे थे जैसे वो ज़ोर-ज़ोर से सांस लेने की कोशिश कर रही हो। हमने उस सिरहन को पहचानते हुए कहा कि , "लेट में हेल्प यु, इट सीम्स यू आर स्ट्रगलिंग विथ योर बैग्स"। उसकी आंखें अचानक सिकुड़ कर छोटी होगयी और उसने लगभग आंखे तरेरते हुए कहा," नो थैंक यू, मैं मैनेज कर लुंगी।" हमने कहा, "पक्का न दीदी? एक बार फिर मैंने उसके चेहरे के भाव बदलते देखे उसकी आंखें वापस हल्की खुल गयी और उसकी सांस जैसे वापस मद्धम होगयी है। फिर उसने कुछ सकुचाते हुए कहा नहीं मैं चली जाउंगी। इसके पहले हम कुछ भी कहते उसने झट से सड़क पार कर ली और जाते जाते मुझे दो बार पलट कर देखा, उसकी आँखों मे एक संकोच था, एक डर का साया था, शायद आभार या करुणा भी हो पर मैं उसे ढूंढ नही पाया न उसकी आँखों मे न उसकी चाल में। 

इस वाकये के बाद हम थोड़ा सहम गए, समझ नही पाए कि किसी की मदद करना बुरा है या हमने तरीका गलत चुना। खैर हमने वापस से अपनी ठूठी अपने कान में लगाई और "आईं एम गोंना राइड माई हॉर्स टू द ओल्ड टाउन रोड" सुनने लगे। थोड़ा आगे पहुँचे तो ब्लेसिंग्स प्लाजा के पास आज रोज़ से कुछ ज्यादा अंधेरा था। हम वापस अपनी अल्हड़ चाल में आ चुके थे इतने मस्त की सड़क को नगरपालिका ने कहाँ ऊंची बनाई है और कहां का डामर बेंच खाया है इसका होश नहीं था। इस बार हम डांस नही कर रहे थे हमारे घर को जाती सड़क हमे डांस करा रही थी। एक दो बार तो हम अपना मुंह सुनहरा करते-करते बचे। खैर थोड़ा आगे बढ़े तो देखा एक प्रेमी जोड़ा एक दूसरा का हाथ थामे अपनी अपनी दुपहिया प्रेमियों वाली गाड़ी पर बैठा था दोनों को देख कर बताया जा सकता था कि वे "निब्बा निब्बी" थे। निब्बा अपने एक हाथ से निब्बी को मोमोज़ खिला रहा था और दूसरे हाथ को पकड़ कर अपने इश्क़ का इज़हार कर रहा था। निब्बी के पीठ पर किसी कोचिंग का बैग का था जहां से शायद वो लौट कर आई थी या 'बंक' कर के और निब्बा अपनी प्लेटिना पर बैठा था। ये नज़ारा देखा तो कुछ तो हंसी आई और कुछ खुद पर तरस। खैर हम आगे बढ़े और हमारे गाने की आखिरी लाइन "आई एम गोंना राइड टिल आई कैंट नो मोर" बज कर खत्म ही हुआ था कि नगरपालिका की दया से हमारा पैर सड़क पर फंसा और जूते ने अपने मुंह सड़क पर रगड़ दिया। एकाएक मैंने ध्यान दिया तो देखा मुझसे कुछ 50 मीटर दूर एक अधेड़ उम्र की औरत जिसकी उम्र तकरीबन 60-65 साल रही होगी, जा रही थी, गठा हुआ शरीर लगभग 5 फुट की रही होगी हरे रंग की धोती में वो शायद और मोटी लग रही थी, वो अचानक चौंक कर पलटी और अपना पल्लू ठीक करते हुए थोड़ा सम्भल कर, तेज़ कदमों से चलने लगी और बार बार हमें पीछे पलट कर देखने लगी। उसकी रफ्तार और चेहरे के भाव कुछ ऐसे थे जैसे उसके भीतर एक डर हो, जैसे उसे कुछ असुरक्षित महसूस हो रहा हो, जैसे उसे लग रहा हो कि मैं उसका कुछ अहित करने वाला हूं। उसने अपना पल्लू ऐसे सम्भाला जैसे उसे मेरे बढ़ते कदमों की आहट से डर लगता हो, जैसे उसे लगता हो वो महफूज़ नहीं है। हमारे हेडफोन में गाना रुक चुका था "योर 100% डाटा हैज बीन इजहॉस्टेड" का संदेश मेरे चमचमाते वन प्लस सेवन टी की स्क्रीन पर चमक रहा था। और अपने इंटरनेट पैक की तरह मेरे भीतर भी कुछ समाप्त, कुछ "इजहॉस्टेड" हो चुका था। शायद ये ख्याल था कि हम लड़को की एक हल्की आहट से, हल्के अंधेरों में औरतें खुद को महफूज़ नहीं समझती, उन्हें हर शख्स शायद डरावना दरिंदा लगता है। शायद वो अपने भाइयों, दोस्तों, बेटों और साथ मे काम करने वालों से डरती हैं। ये सवाल और ये ख्याल मुझे भीतर तक कचोट रहा था। दोनों ही औरतों की आंखों की भावनाएं मेरे सामने रह-रह कर गुजर रहीं थी और मैं बस असहाय भारी कदमों से अपने घर की ओर बढ़े चला जा रहा था।


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