Jeevesh Nandan

Comedy

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Jeevesh Nandan

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6 बजकर 15 मिनट वाली गाड़ी भाग1

6 बजकर 15 मिनट वाली गाड़ी भाग1

4 mins
363


 सफर चाहे हिंदी वाला हो या अंग्रेजी वाला दोनों के अपने अपने रंग है रूप हैं और अपने अपने अफ़साने। आजकल अपनी ज़िंदगी में दोनों ही सफर चल रहे हैं। सफर भी और suffer भी। पिछले लगभग 1 साल से गायब होने के लिए सॉरी। जिनको नहीं पता है उनको बात दें कि आजकल हम हमारा झोला उठाए और एक 6x10 की खोली में अपने 3 बिज़नेस पार्टनर के साथ जमीन पर देहरादून में सो रहें हैं। बिजनेस क्या है वो कभी और बताएंगे। तो योंही किसी काम से पिछले दिनों घर वापसी यानी कि लखनऊ जाने का सौभाग्य मिला। जैसे ही जाने का प्लान बना हमने झट से आई आर सी टी सी की वेबसाइट खोली और लगे ट्रेन तलाशने फ़ोन स्क्रॉल करते करते अचानक नज़र रुकी तो एक ट्रेन में 190रुपये 5 पैसे का टिकट दिखा रहा था और ऊपर स्याह रंग से लिखा था 2 टू एस, थोड़े घोड़े दौड़ाए फिर समझ आया कि ये वही जनरल डब्बे हैं जिसमे पूरे पैसे देकर कभी अपनी जान पर जुआं खेल कर किसी तरह दरवाजे, ट्रेन के शौचालय या अपने पिछवाड़े के किसी कोने से किसी दूजे की सीट पर टिक कर जाया करते थे, पर इस बार covid भैया की कृपा से पूरा पैसा देकर पूरी सीट मिल रही थी। हमारे मुखड़े के कोने पर एक सुनहरी मुस्कान तैर गयी। हमने झट से टिकट खरीदा और गूगल पे कर दिया। और खाते से जी एस टी समेत पूरे 201 रुपये 80 पैसे कट गए और साथ कि स्क्रीन पर एक टन्न से एक मैसेज और चमका जिसमे लिखा था Rs. 300 हैस बीन दिडक्टेड फ्रॉम योर एकाउंट बैलेंस xxxx. ताबड़तोड़ हृदयगति रुकी फिर मालूम हुआ कि मिनिमम बैलेंस मेन्टेन न करने के कारण ये फटका लगा है। अब क्या कर सकते थे। शाम के 18:15 मिनट वाली गाड़ी के टिकट पर अपने नाम की मोहर लगाई और चादर तानी और सो गए। 

दुनिया मे तमाम लोगो की तरह हम भी 2 स्टार्ट अप का हिस्सा हैं और जी जान लगा कर काम कर रहें हैं। आफिस शिफ्ट हो रहा था तो दिन भर उसमे लगे रहे, शाम को जब 4 बजा तो होश आया कि आज तो लखनऊ निकलना है, आनन फानन में स्कूटी पर बैठे अपना झोला पैक किया और दो रोटी जैसे तैसे ठूस कर निकल पड़े, घड़ी में समय हो रहा था 5 बजकर 32 मिनट कुछ 4 किलोमीटर आए होंगे कि स्कूटी अचानक से लहराने लगी जरा रोक कर देखा तो पीछे वाला टायर हंस रहा था उसने हमको देखा हमने उसको और मानो वो कह रहा हो और मियां बड़ी जल्दी में भाग रहे थे आओ तनिक सुस्ता लो, हमारा मन तो कलप गया पर करते भी तो क्या। हमारे हेमंत भैया जो गाड़ी चला रहे थे उन्होंने हमको देखा हमने उनको उनके चेहरे पर कुछ तो निराशा के भाव थे कुछ डर के, शायद डर इस बात का की हमारी गाड़ी न छूट जाए। उन्होंने फट से शाहरुख मंसूरी भाई को फ़ोन लगाया और उनकी एक्टिवा गाड़ी मंगा ली, फिर शुरू हुआ हेमंत दादा और हमारा अपनी किस्मत पर रोना थोड़ा वो रोए थोड़ा हम। खैर जैसे तैसे पहुचे देहरादून रेलवे स्टेशन और हमारी घड़ी में हो रहा था 6 बजकर 10 मिनट। अब इसे बुरी किस्मत कहें या मंद बुद्धि हमने आई आर सी टी सी से आए हुए टिकट को देख उसमे लिखा था P1-D4-33 जिसका अर्थ हुआ आपकी गाड़ी प्लेटफार्म नंबर एक पर आएगी जिसमे बोगी नंबर D4 में आपकी सीट नंबर 33, हम स्कूटी से उतरे और भागे ज़ोर से आओ देखा न ताओ चढ़ गए एसकेलेटर पर ऊपर पहुचे तो जान पड़ा यहां तो प्लेटफार्म नंबर 3 से सब शुरू है फिर नीचे भागे किसी तरह पूछा तो पता चला प्लेटफार्म नंबर 1 का रास्ता नीचे से है। जैसे कि प्लेटफार्म नंबर एक पर पहुचे वहां 2 गाड़ियां खड़ी थी अरे भाई एक गाड़ी प्लेटफार्म नंबर 1 पर और दूसरी 2 पर दोनों की लखनऊ के रास्ते होकर जाती थी पर हमारी गाड़ी का नंबर न जाने क्यों उन गाड़ियों के नंबर से मेल नहीं खा रहा था, तभी पीछे से एक देवी जी बोली '66 प्लेटफॉर्म नंबर 3 पर खड़ी हैं' हमने गौर किया तो ये वो रेलवे वाली जीजी थी जिन्होंने एक बार पुनः दोहराया attention please train number 04266 via haridwar, moradabad bareilly to Lucknow is standing on platform number 3. हमको 'एतना' तेज़ गुस्सा आया कि क्या कहें फिर क्या था हम हमारा पिट्ठू झोला और खाली ट्राली बैग लेकर भगे प्लेटफार्म नंबर 3 पर जाते जाते 3-4 लोगो से मुठभेड़ भी हुए पर सॉरी का गोंद लगा कर भागते रहे, आपको लग रहा होगा अब तो ट्रैन मिल ही जाएगी पर आप शायद भूल रहें हैं कि आजकल ज़िन्दगी हिंदी और अंग्रेजी दोनों का सफर करा रही है...


जुड़े रहिये अभी कहानी खत्म नहीं हुई है एक भाग और आना बाकी है, आइयेगा जरूर। पिंकी प्रॉमिस?


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