मेरे बेटे मेरा अभिमान

मेरे बेटे मेरा अभिमान

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आज कुसुम के घर स्कूल फ्रेंडस का (getogether)था। लगभग २०-२२सालो बाद सारी सखियाँ मिली थी।सब एक दूसरों के हालचाल पूछ रही थी।कुसुम और सुमन पक्की सहेलियाँँ थी उनका मिलना जुलना लगा रहता था..प्रेमा, कवि और प्रिया तो २०सालों बाद आज ही मिली थी।

चर्चा शादीशुदा जिंदगी और बच्चों की चल रही थी।

कुसुम.....कवि,प्रिया,प्रेमा कितने बच्चे हैं तुम्हारे? 

कवि...मेरी दो बेटियाँ है।

प्रिया.."मैं तो इस मामले में बहुत खुश किस्मत हूँ, एक बेटा एक बेटी है मेरे।

कवि मन ही मन बडबडाने लगी..बोल तो ऐसे रही हैं जैसे बेटी या बेटा पैदा करना किसी के बस मे हो।

कवि...कुसुम, सुमन तुम बताओ तुम्हारे कितने बच्चे है?

कुसुम... मेरे दो बेटे हैं और सुमन के तीन।

प्रिया... लगता है बेटी की चाह में और एक बेटा पैदा कर लिया।

सुमन.. नहीं डियर, तेरे जीजू को बेटी चाहिए थी,वरना इस मंहगाई के जमाने में दो ही काफी है बेटी हो या बेटे।

कवि...नही डियर, यह सब कहना आसान है। तेरे तीनों बेटे है इसिलिए तु ऐसा कह रही हैं।वरना बेटी की माँ होने का क्या कर्ज चुकाना पडता है मैं जानती हूँ।मैं और रमण तो बहुत खुश हैं कि हमारी बेटियाँ बेटो से कम नहीं है।पर ससुरालवालों के ताने रोज सुनना जहर के कडवे घूंट पीने से कम नहीं है।और ऊपर से ये समाज बेटी की माँ को वैसे ही बेचारी बना देता हैं।।

सुमन.... चिल यार चिल ,कोई क्या सोचता है यह मायने नहीं रखता।बच्चे हमारे है हम क्या सोचते है वो मायने रखता हैं।हमारे बच्चे हमारा अभिमान है।

कवि...और सुमन तू बता कितने साल का हैं तेरा बेटा?

सुमन..मेरा बडा बेटा जिगर२१साल का हैं।

प्रेमा...वाह भई मजे है तेरे तो घर मे तीन तीन बहुएँँ आएगी खुब सेवा कराना।

सुमन.. देख डियर ,पहली बात तो यह कि मै बहू नहीं बेटी लाना चाहती हूँ ।और रही बात सेवा की तो वह मैं अपने बेटों से उम्मीद करती हूँ ,क्योंकि नौ महिने गर्भ मे मैंने अपने बेटों को पाला है बहू को नहीं।रातों की नींद उनके लिए उडाई हैं।

प्रिया... बात तो तेरी सही ये पर एक बेटी तो जरूरी हैं।यार बहू तो पराई होती हैं और उनके आते ही बेटे भी पराये हो जाते है। तुम दोनों की बेटियाँ नहीं है बडी अनलकी हो तुम दोनों।

कवि...ऐसा कुछ नही है यार प्रिया कि बहुएं पराई होती हैं।और उनके आने से बेटे पराये हो जाते है।अगर ऐसा होता तो यह बात हमपर भी लागू होती हैं।

कुसुम... बस यार बंद करो ये सब,और ये लो गरमागरम पकौड़े खाओं ।इस चर्चा का कोई दी ऐंड नहीं है।बेटा हो या बेटी सब एक समान हैं। हम सब यहाँ इतने सालों बाद मौज मस्ती करने के लिए एकत्रित हुये हैं और तुम लोग इतना सिरियस विषय लेकर बैठ गई...


कवि...कुसुम अब हम चलते हैं बातों बातों में समय का पति ही नही चला ।

प्रिया,प्रेमा... हाँ कुसुम अब हम चलते हैं।थेंक्स यार आज तेरी वजह से हम सब मिले क्वालिटी टाइम स्पेंड किया।बाय फिर मिलेंगे।

..और सब अपने अपने घर चल दिये।

सुमन कुसुम का काम में हाथ बटा रही थी और गहरी सोच मे डूबी हुई थी।

कुसुम... क्या हुआ सुमन किस सोच में पड गई।

सुमन.. कुछ नहीं यार, सही कहा प्रिया ने एक बेटी तो चाहिए।हरिश भी रोज कहते है।तुम तो जानती हो ना पिछली बार जब नये घर के प्रवेश मे कलश रखना था और कुंवारी कन्या की जरुरत थी।बहन को फोन किया तो उसने साफ मना कर दिया और कह दिया मेरी बेटी ने तो आजतक एक भी छुट्टी नहीं ली उसकी स्कूल खराब होगी।

कुसुम... पर तेरी बहन प्रीती की बेटी तो अब तक के. जी मे ही है ना।

सुमन.. हाँ डियर ..पर क्या कर सकते है।शायद भगवान ने मुझे भी एक बेटी दी होती।

कुछ महीनों बाद...

 एक रात अचानक सुमन कि तबियत कुछ बिगड़ गई ।वह बोल नहीं पा रही थी उसके हाथ पैर सुन्न हो गयें।वह एक जिंदा लाश की तरह हो गई थी। हरिश और जिगर उसे हास्पिटल ले आए।

 डॉक्टर ने निरीक्षण कर बताया ... "सुमन का आधा अंग लकवाग्रस्त हो गया हैं, और अब वह पुरी तरह से बिस्तर पर ही रहेगी ठीक होने के चांसस बहुत कम है। शायद ५०-५० लेकिन आपने अच्छा किया कि आप इन्हें जल्द से जल्द यहाँ ले आये।बाकी हम दवा कर सकते है और आप दुआ।"

हरिश टूट चुका था ।बच्चों के हालत पर तरस आ रहा था। छोटू तो अभी आठ साल का था ।सगे संबंधी जो भी आते यही कहते शायद एक बेटी होती तो..बेचारी सुमन।

कोई नर्स रखने की सलाह दे रहा था ,तो कोई नौकरानी। लेकिन सुमन के बेटा जिगर बहुत होशियार था ।उसने हिम्मत नहीं हारी वह जानता था जीवन के इस नाजुक दौर पर उसे छोटे भाईयो और पापा सबको संभालना होगा।वह उठा और प्रीत को बाहर ले गया।

जीगर... प्रीत रोना बंद कर रोने से कुछ नहीं होगा ।लोग आयेंगे सांत्वना देगें और चले जायेंगे।आज माँ और पापा दोनों को हमारी जरूरत है ।पापा को हिम्मत देनी होगी ।हमारी माँ बेचारी नहीं है उन्हें इस बेचारे शब्द से बहुत नफरत है । माँ कि सेवा हम खुद करेंगे। माँ चाहती तो हमें कामवाली के भरोसे छोड़ काम पर जा सकती थीं उनका आफिस मे प्रमोशन होने वाला था लेकिन उन्होंने अपने सपनों की आहुति दे हमें चुना। आज हमारी बारी है हम अपनी माँ के लिए मेड या नर्स नही रखेंगे ।हम करेंगे उनकी सेवा हम रखेंगे उनका ध्यान।

प्रीत..आंसू पोंछकर, हाँ भाई! आप सही कह रहे हो चार दिन बाद जब माँ डिस्चार्ज होकर घर आयेगी हमे उन्हें हिम्मत देनी होगी।हम कभी उन्हें लाचार या असहाय महसूस नहीं होने देगे और हमें छोटू का भी तो ध्यान रखना है।

दोनों भाई आपस मे गले मिलकर रोने लगे।

चार दिन बाद जब सुमन घर आई उसके आंखों मे आसूँँओ का सैलाब था ।वह कुछ भी काम करने मे असमर्थ थी । उसके बच्चों की और पति की चिंता उसे मन ही मन खाये जा रही थी।

सुमन को रोते देख हरिश की भी आँखें भर आई ।वह कुछ नहीं कह पा रहा था, लेकिन उसने सुमन की आँखें पढ ली।

जीगर और प्रीत ने माँ पापा के आँसू पोंछे...

'पापा आप चिंता मत करो हम दोनों आपके साथ है हम रखेंगे माँ का ध्यान हम करेंगे उनकी सेवा।"

आज बेटो के मुहँ से ऐसी बात सुन हरिश का आधा दुख वैसे ही कम हो गया।

दोनों बेटे जी..जान से माँ की सेवा में लग गये नहलाना, खिलाना पिलाना मालिश करना ,छोटू को स्कूल के लिए तैयार करना हर काम मिलजुलकर करते। 

 धीरे धीरे समय बितने लगा।

एक दिन हरिश ने सुमन से कहा....."सुमन देखो हमारे बेटे बडे हो गये।जिन्हें मै नकारा और निक्कमा समझता था।आज मैं उनके सामने हार गया।और इस हार मे जो खुशी है मै उसे जाहिर नहीं कर सकता ।सुमन अब तो उठ जाओ। तुम हमेशा सही कहती थी सुमन मेरे बेटे मेरा अभिमान हैं। तुम्हारे बेटो ने तुम्हारी बात को सार्थक सिद्ध कर दिया अब तो ठीक हो जाओ ।

 और फिर हरिश छोटे बच्चों की तरह फूटफूटकर रोने लगा।

एक महीने बाद सुमन के स्वास्थ्य मे सुधार आने लगा।डाक्टर ने भी ठीक होने के90%चांस बताये।

 एक दिन सुमन की सखियाँ प्रेमा, कवि,प्रिया उससे मिलने आई।उसके बेटो को माँ की सेवा करते देख प्रिया ने कहा... सुमन तुम सही थी बेटा हो या बेटी कोई फर्क नही पडता फर्क इससे पडता हैं कि हम उन्हें कैसे संस्कार देते है।तुमने सच कहा था तेरे बेटे तेरा अभिमान हैं।तेरे बेटो ने तेरे बात की लाज रख ली।

सुमन की आंखों से खुशी के आंसू छलक रहे थे। 

धीरे धीरे सुमन के स्वास्थ्य मे सुधार आने लगा ।जो बच्चे हर वक्त आपस मे लडते झगडते आज उनके बीच इस प्यार को देख सुमन मे एक बार फिर से जीने की इच्छा जाग उठी। वह जल्द से जल्द ठीक होना चाहती थी ।अपने बच्चों को गले लगाना चाहती थी ।उन्हें बताना चाहती थी कि ऐसी औलाद पाकर उसका जीवन धन्य हुआ।उसकी परवरिश सफल हुई।

तो दोस्तों बेटा हो या बेटी ,बच्चे हमेशा अपने माँ बाप का अभिमान होते है।और बच्चों का भी फर्ज बनता हैं कि वे अपने माँ बाप के इस अभिमान को कभी टूटने ना दे।



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