Anusuya Choudhary

Romance

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Anusuya Choudhary

Romance

मेरा पहला प्यार

मेरा पहला प्यार

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हर दौर की प्रेम कहानी अलग होती है। हालांकि उनमें भावना और एहसास वही होते हैं पर फिर भी कुछ चीजें अलग होती हैं।    दो लोग हैं, जो एक-दूसरे से बेइंतहा मोहब्बत करते हैं, एक-दूसरे की इज्जत करते हैं और साथ में जीने-मरने की या यूं कह लें कि हर परिस्थिति में साथ निभाने का वादा करते हैं। बस अंतर इतना है कि यह कहानी उस दौर की है, जब लोगों के पास मोबाइल फोन और सोशल मीडिया साइट्स जैसे साधन नहीं हुआ करते थे। उस समय एक-दूसरे से मिल पाना भी बहुत मुश्किल होता था, कैफे और मूवी थिएटर्स भी उस ज़माने में जो नहीं हुआ करते थे। हां, दूर होने पर पत्र व्यवहार ज़रूर किया जा सकता था पर वह भी शायद एकतरफा ही क्योंकि जो भी एक घर पर रहता होगा, उसके लिए अपने नाम का पत्र मंगवा पाना नामुमकिन होता होगा। आज ‘मेरा पहला प्यार’ की सीरीज में पढ़ेंगे एक ऐसी ही प्रेम कहानी, जिसकी कसक उन प्रेमियों के दिलों में शायद आज भी है।

‘मैं तब हाईस्कूल में थी, जब उनसे पहली मुलाकात हुई थी। मुलाकात भी क्या, हमारे घर आसपास थे, कभी-कभी एक-दूसरे को देखकर मुस्कुरा लिया करते थे। वह मुस्कुराहट कब किन्हीं दूसरे एहसासों में बदल गई, यह हम दोनों को ही पता नहीं चला था। फिर कुछ समय बाद वे अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए दिल्ली चले गए थे, मगर तब तक हमारा इज़हार-ए-मोहब्बत हो चुका था। उस समय व्हॉट्सऐप या फेसबुक जैसा कुछ नहीं हुआ करता था। अपने प्यार का इज़हार करने के बाद भी हम कनखियों से एक-दूसरे को निहार कर ही खुश हो लिया करते थे। हम पेड़ों के पीछे या मंदिर जाने के बहाने भी नहीं मिलते थे, बस कभी-कभी घर के आसपास ही मिल लिया करते थे।

फिर उसका दिल्ली जाना हुआ और हमारी मुलाकातें पहले से भी कम हो गईं, हम तभी मिल पाते थे, जब वह छुट्टियों में घर आता था। तब तक हम पत्र व्यवहार से एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। मैं उसे पत्र लिखती थी और कभी-कभी पीसीओ से कॉल कर लेती थी। उसके लिए तो यह कर पाना भी मुमकिन नहीं था क्योंकि मैं घर पर रहती थी। दो-तीन साल के इस रिश्ते में हम एक-दूसरे के बहुत करीब आ चुके थे, भावुक तौर पर जुड़ चुके थे। अपने रिश्ते को लेकर गंभीरता से सोचना भी शुरू कर दिया था पर हमारे सामने एक बहुत बड़ी समस्या थी। वह अपने घर में सबसे छोटा और मैं अपने घर में सबसे बड़ी थी। मेरे घर में शादी की बात होने लगी थी और उसने तो अभी नौकरी की शुरूआत की थी। हम दोनों ही अपने घर पर बात भी नहीं कर सकते थे और एक दिन मेरी शादी हो गई। सच कहूं तो शादी के बाद भी मैं उसे कभी भुला नहीं पाई थी। फिर कुछ सालों बाद उसकी शादी की खबर आई, तब तक मेरी बेटी दो साल की हो चुकी थी। एक बार उसकी दीदी से बात हुई तो मालूम पड़ा कि वह शादी के बाद खुश नहीं था कहीं न कहीं इसके लिए मैं खुद को जिम्मेदार मानती थी। मेरा मन करता था कि मैं उसे समझाऊं, आगे बढ़ने के लिए मजबूत करूं पर फिर यह भी लगा कि कहीं मेरे इस कदम से दोनों और बिखर न जाएं।

आज मुझे नहीं पता कि वह कहां है। शायद उसे भी नहीं पता होगा कि मैं कहां हूं। बस मैं उम्मीद करती हूं कि वह मुझे भुला चुका हो। हां, अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ने के लिए उसका मुझे भूल जाना ज़रूरी है। मैं चाहती हूं कि वह हमेशा खुश रहे और हां, एक मुलाकात हमारी बाकी है। मैं चाहती हूं कि इस अधूरी मोहब्बत को पूरा करने के लिए हम एक बार मिल लें। एक बार मैं उसे खुश देख लूं तो शायद मैं डबल खुश हो जाऊं। तो यह था मेरा पहला प्यार, एक ऐसी प्रेम कहानी, जिसमें न कोई स्वार्थ है, न कोई द्वेष, है तो सिर्फ पाक मोहब्बत। आज मैं अपनी ज़िंदगी में बहुत आगे बढ़ चुकी हूं पर मुझे मेरा पहला प्यार हमेशा याद रहता है।'  


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