"अनमोल रत्न.....
"अनमोल रत्न.....
बुजुर्ग मनमोहन जी अपनी पत्नी के साथ अपनी रिटायर्ड जिंदगी बहुत हंसी खुशी बीता रहे थे.....
पेंशन से दोनों पति पत्नी अपनी जीविका से खुश थे .....वैसे तो घर बड़ा था और उनके तीन बेटे बहुएं भी थे मगर उनके तीनों बेटे अलग अलग शहरों में अपने अपने परिवारों के साथ व्यस्त थे।
वैसे उन्होंने नियम बना रखा था....दीपावली हो या कोई अन्य त्यौहार तीनों बेटे सपरिवार उनके पास आएंगे साथ रहेंगे खाएंगे वक्त बिताएंगे......पूरे एक सप्ताह तक।
वो एक सप्ताह कैसे मस्ती में बीत जाता था कुछ पता ही नहीं चलता था....सारा परिवार खुशी से झूम उठता ....अलग अलग भले ही रहते थे मगर उस एक सप्ताह में पूरी कसर साथ रहने की खत्म हो जाती ...उन सुखद अनुभव और खुशियों के सहारे मनमोहन जी और सुधा की जिंदगी सुखद थी।
मगर फिर उनकी खुशियों को जैसे नज़र ही लग गई..... अचानक सुधा जी को एक रात दिल का दौरा पड़ा ...और एक झटके में उनकी सारी खुशियां बिखर गई।
तीनों बेटे दुखद समाचार पाकर दौड़े आए...उनके सब क्रियाकर्म के बाद सब शाम को एकत्रित हो गए...बड़ी बहू ने बात उठाई....बाबूजी... अब आप यहां अकेले कैसे रह पाएंगे... आप हमारे साथ चलिए।
नहीं बहू.... अभी यही रहने दो...यहां अपनापन लगता है... सुधा की अनेकों यादें है और फिर बच्चों की गृहस्थी में.....कहते कहते मनमोहन जी चुप से हो गए।
बड़ा पोता कुछ बोलने को हुआ...उन्होंने हाथ के इशारे से उसे चुप कर दिया।
"बच्चों.... अब तुम लोगों की मां हम सबको छोड़ कर जा चुकी है.... उसकी कुछ चीजें है.... वो तुम लोग आपस में बांट लो मुझसे अब उनकी साज सम्हाल नहीं हो पाएगी....कहते हुए अलमारी से मनमोहन जी कुछ निकाल कर लाए....
मखमल के थैले में बहुत सुंदर चांदी का श्रृंगार दान था...एक बहुत सुंदर सोने के पट्टे वाली पुरानी रिस्टवाच थी...सब इतनी खूबसूरत चीजों पर लपक से पड़े....छोटा बेटा जोश में बोला....अरे ये घड़ी ....ये तो अम्मा सरिता को देना चाहती थी।
मनमोहनजी धीरे से बोले....बच्चों और सब तो मैं तुम लोगों को बराबर से दे ही चुका हूं...इन दो चीजों से उन्हें बहुत लगाव था बेहद चाव से कभी कभी निकाल कर देखती थी.....लेकिन अब कैसे उनकी दो चीजों को तुम तीनों में बांटू समझ नहीं आ रहा।
सभी एक दूसरे का मुंह देखने लगे...तभी मंझला बेटा बड़े संकोच से बोला ये चांदी का श्रृंगार दान छोटे के अनुसार वो मीरा को देने की बात करती थी तो वह ले ले....और सोने के पट्टे वाली रिस्टवाच मंझली बहु को तो वह ले ले.....पर....पर ऐसे तो समस्या तो बनी ही रहेगी ...मनमोहन जी मन में सोच रहे थे.....बड़ी बहू को क्या दूं।
उनके मन के भाव शायद उसने पढ़ लिए....बाबूजी... आप शायद मेरे विषय में सोच रहे है...
आप ये श्रृंगार दान मीरा को ...और रिस्टवाच सरिता को दे दीजिए..... अम्मा भी तो यही चाहती थी।
पर नंदिनी....तुम्हें.... तुम्हें क्या दूं.....समझ में नहीं आ रहा....आखिर तुम भी तो मेरी बहु हो मेरी बेटी .....
बाबूजी.....आपके पास एक और अनमोल रत्न है ...और वो अम्माजी मुझे ही देना चाहती थी....
मनमोहन जी की तरह दोनों बेटे बहु भी हैरानी से बड़ी बहु को देखने लगे... अब कौन सा पिटारा खुलेगा...
और कौन सा वो अनमोल रत्न है जो बड़ी भाभी चांदी के श्रृंगार दान और सोने के पट्टे वाली रिस्टवाच को छोड़ उस अनमोल रत्न को पाना चाहती है .....जरूर बेहद कीमती ....या अमूल्य होगा..... हे भगवान शायद हमने जल्दबाजी कर दी।
सबकी हैरानी और परेशानी को भांप कर बड़ी बहू नंदिनी मुस्कुरा कर बोली....वो सबसे अनमोल रत्न तो आप स्वयं हैं बाबूजी.... पिछली बार अम्माजी ने मुझसे कह दिया था...मेरे बाद बाबूजी की देखरेख तेरे जिम्मे...बस अब आप उनकी इच्छा का पालन करे और हमारे साथ चलें।
मनमोहन जी की आँखें खुशी से और कृतज्ञता से भीग गई .....दोस्तों जीवन में सबसे अनमोल हमारे माता पिता हमारे बुजुर्ग है इनका आशीर्वाद इनके अनुभव इनकी सलाह इनकी छत्रछाया किसी अनमोल रत्न अनमोल धरोहर से कम नहीं है।