मेरा बसंत
मेरा बसंत
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
ऋतुराज बसंत का आगमन था। चारों ओर फैली हरियाली है, खिली हुई फुलवारी है, दिलों में छाई खुशहाली है, श्रृंगार की प्रधानता है और पिया मिलन की बारी है।
अभी ही शीत ऋतु में अनिकेत व राधा की शादी हुई थी और अब हनीमून की तैयारी थी। बड़े उत्साह से पति-पत्नी अपनी तैयारी में लगे थे। छोटी बहन याद कर-कर के सामान गिना रही थी, माँ-पिताजी तरह-तरह की हिदायतें दे रहे थे.. ऊटी में ठंड अधिक पड़ती है, गर्म कपड़े ठीक से रख लेना, कुछ सर्दी की दवाई भी रख लेना.. वगैरह - वगैरह । अगले दिन रात नौ बजे की ट्रेन थी। दोपहर को डाकिया "टेलीग्राम" लाया.. बाॅर्डर पर जंग छिड़ गई है, फौजी अनिकेत का बुलावा आ गया था। फौरन ड्यूटी ज्वाइन करनी थी।
बासंती संयोग श्रृंगार, अब वियोग श्रृंगार में बदल चुका था। नई-नवेली सजनी की अश्रु धारा रुक ना रही थी, साजन का रण-भूमि से बुलावा जो आ गया था। पर भारत की नारी ने उसे हँसते हुए बिदा किया, बहन को अपने बहादुर भाई पर नाज़ था और माँ-बाप का आशीर्वाद सदा उसके साथ था।
परिवार के सभी लोगों का ध्यान, रेडियो व टीवी पर आने वाली रण-क्षेत्र की खबरों पर रहता था। एक दिन पुनः डाकिया "टेलीग्राम"...लाया।
"अनिकेत लापता है, या तो वीरगति को प्राप्त हुए हैं या दुश्मनों की कैद में हैं।"
सुनकर, मात-पिता तो काठ हो गये, बहन का रो-रोकर बुरा हाल था, पत्नी को काटो तो खून नहीं!!! शादी के बाद ये कैसा बसंत है? क्या वो सुहागन है? क्या वो विधवा है? वह श्रृंगार करे या ना करे? शुभ कारजों में शामिल हो या नहीं? पति का इंतजार करे या न करे? पेट में पल रही नन्ही जान को रखे या ना रखे?.... बस इसी उहा पोह की स्थिति में तीन-चार महीने निकल गये। सरकारी स्तर पर तो अनिकेत की खोज जारी थी, स्वयं के स्तर पर भी उन्होंने अनिकेत का पता लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
एक दिन दोपहर को दरवाजे की घंटी बजी। राधा ने दरवाजा खोला। आगंतुक को देखते ही खुशी से चीख पड़ी। उसकी चीख सुनकर सभी इकट्ठे हो गये और आगंतुक से लिपटकर रोने लगे। आगंतुक और कोई नहीं "अनिकेत" था। राधा तो बस, फटी निगाहों से उसे निहारे जा रही थी।
अनिकेत ने बताया... उसे पैर पर गोली लगी थी और वह बाॅर्डर पर बेहोश पड़ा था। कुछ पाकिस्तानी घुसपैठिये उसे अपने साथ ले गये। वे भारत समर्थक व युद्ध विरोधी थे। उन्होंने उसे अपने ठिकानों पर छुपा कर रखा और उसका इलाज कराते रहे। जब वह पूर्ण रूप से ठीक हो गया तो, उन्हीं लोगों ने उसे भारत भिजवाने की व्यवस्था की।
सब अनिकेत की आपबीती सुन रहे थे। पर राधा का ध्यान तो कहीं और था...
उसके दिल में खुशी की तरंगें उठ रही थीं..मन मयूर धिनक-धिन नाच रहा था.. वह रंग-बिरंगी तितलियों की तरह हवा में उड़ जाना चाह रही थी.. उड़ती पतंगों की तरह सारे संसार को और सारे आसमाँ को बता देना चाहती थी... कि देखो-देखो मेरा साजन मेरे साथ है और मैं उनके साथ हूँ और इसीलिए
मेरा तो... बसंत आज है..
मेरा तो... बसंत आज है....