Nandini Upadhyay

Drama

5.0  

Nandini Upadhyay

Drama

मैं तरंगिणि

मैं तरंगिणि

2 mins
483


 मैं तरंगिणि, मैं बहुत उचाई पर थी अपने पिता की गोद में थी, मजबूत हाथो में,कोइ मुझे छू नही सकता था, मैं बहुत ही मासूम, निश्छल, निर्मल, थी। मगर मुझे संसार देखना था,स्वच्छंद होना था,सागर से मिलना था, यही तो हमारी नियती है।

और एक दिन मैंने अपने पिता से आज्ञा मांगी मैं इस अद्भुत संसार को देखना चाहती हु। सागर से मिलना चाहती। पिता ने कहा बेटी तुम तो मेरे पास रहो तुम्हारी सभी बहने एक एक करके चली गयी,और जो एक बार यहाँ से जाता है लौटकर कभी नही आता है।

तो मैंने कहा "नही पिताजी मुझे जाने दीजिये मैं जरूर लौटकर आऊंगी "।

वे दुखी होकर बोले थे "नही तरंगिणि,

यहाँ वापस लौटने का कोई रास्ता नही है"।

मगर मैं तो अपनी धुन ने मस्त थी। मुझे जाना ही था और पिताजी को आखिरकार मानना ही पड़ा।

पिताजी ने मुझे वह जगह दिखायी जहाँ से जाना था।

मैंने देखा बहुत दूर थी निचे उन्होंने कहा तुम चली जाओ नीच

अपनी चाल से,

वेग तुम्हे आपने आप मिल जायेगा

और मैंने छलांग लगा दी।

हिरणी सी कुलांचे मरती हुई मैं जा रही थी मगर यह क्या मेरा वेग तो बढ़ता ही जा रहा था। में पीछे मुड़कर देख भी नही पा रही थी। अब मैं समझ गयी कि पिताजी क्यो मुझे मना कर रहे थे। मगर अब कुछ नही हो सकता था।

और में अपने रास्ते पे चल पड़ी।

मुझे यह पता था मेरा लक्ष्य सागर है और मुझे वहाँ जाकर विलीन होना है। मेरी राह में अनेक गांव शहर आये,बहुत सुख, दुख देखे मैंने,

कही पर पूजा जाता और कही पर कचरा बहाया जाता, मेरा जल बहुतो के लिये जीवनदायी था। उसी को कही पर केमिकल अपशिष्ट से जहरीला बनाया जाता, कही रोक लिया जाता, किसी मौसम में मैं बिल्कुल नाममात्र की रह जाती और किसी मौसम में दुगनी चौड़ी हो जाती। मुझे माँ का दर्जा देकर पूजा जाता मुझे बहुत अच्छा लगता।

 और आखिर वह घड़ी आ गयी,सामने सागर था बांहे फैलाये। मुझे लग रहा था वह मेरे ही इंतजार में है। मेरा वेग भी तेज हो गया। और मेरे पहुंचते ही उसने मुझे गले लगा लिया और में हमेशा के लिये उसमे लीन हो गयी।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama