हरि शंकर गोयल

Abstract Crime Inspirational

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हरि शंकर गोयल

Abstract Crime Inspirational

मैं मां बनना चाहती हूं (2)

मैं मां बनना चाहती हूं (2)

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(पहला भाग पढ़कर कुछ पाठकों की प्रतिक्रिया आई कि न्यायालय अक्सर अपराधियों और आतंकवादियों के मानवाधिकार ही देखते हैं और उसी के अनुसार अपना फैसला सुनाते हैं। न्यायालयों को आज तक पीड़ित पक्षकारों के मानवाधिकार नहीं दिखे। क्यों ? क्या उनके कोई मानवाधिकार नहीं होते हैं ? क्या उन्हें शांतिपूर्ण जीवन जीने का अधिकार नहीं है ? इसी सोच ने मुझे दूसरा भाग लिखने के लिए प्रेरित किया है। यह भाग केवल कल्पना पर आधारित है ) 

सरला तेज तेज कदमों से खेतों की ओर दौड़ी चली जा रही थी। उसकी सास, ससुर और जेठ जिठानी सब लोग खेतों पर "कटाई" कर रहे थे। उन सबका खाना तैयार करके लेकर जा रही थी सरला। तेज तेज कदमों से चलने के कारण उसे हांफनी सी आने लगी थी। वह आज फिर से विलंब से थी। कल सासू जी ने विलंब से खाना लाने पर हलकी सी झिड़की लगा दी थी उसे। उसने लाख कोशिश की मगर आज फिर भी विलंब हो गया था। उसे मन ही मन सासू जी की डांट का खौफ लग रहा था। 

रास्ते में उसे बहुत सारी औरतें भी मिली थीं मगर बातों के लिए समय कहां था उसके पास ? वह तो सरपट दौड़ी चली जा रही थी। इतने में उसकी पड़ोसन शारदा ने कहा "इतनी जल्दी जल्दी कहाँ जा रही है री ? अब तो तेरा पति भी तेरा इंतजार नहीं कर रहा है। वो तो बेचारा स्वर्ग सिधार गया। कोई यार कर लिया है क्या तूने जिसके लिये दौड़ी चली जा रही है तू" ? शारदा के एक एक शब्द में व्यंग्य था।

दूसरी पड़ोसन सुधा उसे डांटते हुए बोली "कभी तो शर्म किया कर भाभी ? हरदम बकवास करती रहती हो। सबको अपनी तरह समझती हो तुम। सब औरतें आपके जैसे थोड़े ना हैं ? भारतीय औरतें नहीं करती यार वार। ये तो बॉलीवुड की तारिकाएं ही करती हैं। शादी किसी से और प्यार किसी और से। हमारे समाज में ऐसा नहीं है। और ये सरला ? एक तो बेचारी के साथ भगवान ने ही अनर्थ कर दिया। शादी के पांचवें दिन ही उसके पति को छीन लिया। उस पर तुम ये यार के ताने मार मार कर इमोशनल अत्याचार कर रही हो। गलत बात है ये, भाभी। कितनी सेवा करती है बेचारी अपने सास ससुर और जेठ जिठानी की। आज के जमाने में ऐसी औरतें कहाँ मिलती हैं" ? सुधा ने सरला की ओर देखते हुए कहा। 

शारदा बड़ी दिठाई से कहने लगी "हिम्मत चाहिए यार पालने के लिए। ये क्या खाक यार पालेगी ? दूसरी शादी तो करने की हिम्मत नहीं है इसमें। अरी, तुझसे बढ़िया तो नौरत की लुगाई निकली जो बच्चे पैदा करने के लिए अपने "खसम" की 15 दिन की पैरौल करा लाई। वह है असली मर्दानी। और इसे देख , सास ससुर के लिए ही खट रही है यह। कैसे काटेगी अपनी इत्ती बड़ी जिंदगी" ? 

सरला के कान में शारदा के ये शब्द किसी गर्म खौलते हुए लावा जैसे पड़े। पूरा बदन सुन्न हो गया था सरला का। सीमा ने अपने पति को पैरौल पर छुड़वा लिया है , यह सुनते ही उसके तन बदन में आग लग गई। उसके कदमों की गति और भी तेज हो गई। 

खेत पर पहुंचकर सबको खाना लगाकर उसने गुस्से से कहा "पिताजी, कोई अच्छा सा वकील कर दीजिए। मैं भी हाईकोर्ट जाऊंगी"। 

सरला के इतना कहने पर सबको सांप सूंघ गया। सब लोग एक दूसरे का मुंह देखने लग गये। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अचानक सरला को ये क्या हो गया है। शांत सी रहने वाली सरला आज अंगारों की तरह क्यों खौल रही है ? 

ससुर ने.ही हिम्मत करके पूछा "बात क्या है बहू ? थोड़ा खुलकर बताओ तो"। 

"सीमा अपने पति को पैरौल पर छुड़ा लाई , यह बात आपको पता है या नहीं है" ? सरला ने सीधा प्रश्न दाग दिया। 

एकदम से सन्नाटा छा गया था वहां। झूठ बोल नहीं सकते और.सच बहुत कड़वा था। इसलिये चुप रहना ही उचित समझा उन्होंने। 

"जब आप लोगों को पता था कि उस हत्यारे को अदालत ने छोड़ दिया है तो आपने इसे मुझे बताना भी उचित नहीं समझा ? ऐसा क्यों किया पिताजी आपने" ? सरला का स्वर बहुत तीव्र था।

ससुर पर जैसे घड़ों पानी पड़ गया था। क्या कहता ? "बहू, तुमको दुख होगा इसलिए नहीं बताया था। अच्छा, कल चलते हैं हाईकोर्ट और बात करते हैं वकील से। अब ठीक है" ? 

इन बातों से सरला को कुछ आराम आया जैसे गर्म तवे पर ठंडे पानी की कुछ बूंदें डाल दी हों। सरला को रात काटना भारी पड़ गया था। 

अगले दिन एक वकील से मिलकर एक अर्जी तैयार कर ली और हाईकोर्ट में लगा दी। यह मामला भी उसी खंडपीठ में लिस्टेड हुआ जिसमें नौरत को पैरौल दी गई थी। 

आज भी अदालत खचाखच भरी हुई थी। बड़ा अजीब प्रश्न था अदालत के सामने। बहस शुरू करते हुए सरला ने कहा " मी लॉर्ड, मेरा कसूर बताइये। मैं विधवा का जीवन क्यों जीऊँ ? क्या ये मेरे साथ अन्याय नहीं है ? मेरे ससुर से उस हत्यारे नौरत ने कुछ रुपये उधार लिए थे क्या इसके लिये मेरे ससुर अपराधी हैं ? उस हत्यारे ने वे पैसे वापस नहीं किये तो क्या इसके लिए हम दोषी हैं ? मेरे ससुर ने उस दिन पैसे मांगने के लिए मेरे पति को हत्यारे के पास भेजा , क्या ये अपराध था ? मेरे पति ने उस हत्यारे से पैसे वापस मांगे क्या ये अपराध था ? उस हत्यारे ने पैसे वापस करने के बजाय मेरे पति की हत्या कर दी। क्या उसका यह कार्य बहुत नेक था जिसके लिए आपने उसे पैरौल पर छोड़ दिया ? 

आपको उस सीमा पर तो बहुत दया आ गई थी जिसका पति हत्यारा है। पर आपने मेरी ओर ध्यान क्यों नहीं दिया जिसके पति का खून उस सीमा के पति ने किया है। सीमा तो आज भी सुहागिन है मगर मैं ! मैं तो विधवा कर दी गई हूं उस हत्यारे नौरत के द्वारा। मैं तो केवल पांच दिन ही सधवा रही थी। क्या मेरे भी कोई मानवाधिकार हैं या नहीं हैं ? क्या मुझे पति का सुख पाने का कोई हक नहीं है ? क्या मुझे मां बनने का अधिकार नहीं है ? आप तो बहुत बड़े दयालु बताए जाते हैं तो मुझ पर भी दया की दो चार बूंदें बरसा दीजिए। मेरा पति जिंदा कर दीजिए और मुझे भी मां बनने का सौभाग्य प्रदान कर दीजिए। आप तो सर्व शक्तिशाली हैं, कुछ भी कर सकते हैं। आपको तो मीडिया में छाने का बहुत बड़ा शौक है ना। रात के बारह बजे भी कोर्ट खोल देते हैं आप तो आतंकवादियों के लिए। कभी आमजन के लिए भी खोलकर देखिए। हमेशा अपराधियों, आतंकवादियों के अधिकारों के पैरोकार नजर आते हैं आप , कभी पीड़ितों के अधिकारों के पक्ष में भी कोई निर्णय सुनाइये। अगर न्याय करने का इतना ही शौक है आपको तो ये तारीख पे तारीख वाली प्रवृत्ति फेंक कर सच्चा न्याय कीजिए। बेचारा आम आदमी बरसों तक न्यायालयों के चक्कर काट काटकर थक जाता है तो थक हारकर उन्हीं से राजीनामा कर लेता है जिनके खिलाफ केस किया था। यह है तुम्हारा न्याय ? एक दुर्दांत अपराधी या तो पकड़ा ही नहीं जाता और यदि पकड़ भी लिया जाता है तो आप उसे जमानत पर छोड़ देते हैं जिससे वह समाज में रहकर गवाहों और शिकायतकर्ता को डराता धमकाता रहता है। इस कारण गवाह गवाही से मुकर जाते हैं और अपराधी छूट जाते हैं। क्या यही है तुम्हारा न्याय ? 

यदि किसी तरह गवाह मजबूत भी रहते हैं और अपराधी को सजा हो भी जाती है तो फिर आप मानवाधिकारों के चलते उन्हें पैरौल पर इसलिए छोड़ देते हैं जिससे वे अपराधी अपनी पत्नी की कोख में बच्चा छोड़ सके। क्या यही है आपका न्याय ? आज मैं सरेआम आपसे पूछती हूं कि मेरे पति से क्या आप मुझे बच्चा दिलवा सकते हैं जबकि उसकी हत्या उसी हत्यारे ने की है जिसे आपने गर्भाधान करने के लिए पैरौल पर छोड़ दिया था। क्या ऐसा कर सकते हैं आप ? अगर ऐसा नहीं कर सकते हैं तो फिर ये न्याय का ढ़ोंग करना बंद कर दीजिए। हां, आपकी निगाहों में मैं अवमानना की दोषी जरूर हूं। मुझे पता है कि आप और तो कुछ कर नहीं सकते मगर अदालत की अवमानना के केस में मुझे अंदर कर सकते हैं। मेहरबानी करके मुझे अवमानना के केस में ही फांसी पर चढ़ा दीजिए। मैं जिंदा नहीं रहना चाहती हूं। बिना पति बिना बच्चे के मैं जीकर क्या करूंगी। मुझे फांसी पर चढ़ा दीजिए जज साहब। मुझ पर इतना सा रहम कर दीजिए बस। मैं और कुछ नहीं चाहती हूं सिर्फ फांसी चाहती हूं"। और सरला वहीं पर रोते रोते बेहोश हो गई। इस दृश्य को देखकर अदालत ने सरला के वकील को जोरदार फटकार लगाई और उसकी प्रैक्टिस बंद करवा दी और अदालत उठ गई। 

फैसला तो क्या आना था ? अभी तक आया भी नहीं। सयाने वकील खुसुर पुसुर कर कहते हैं कि ऐसे विषयों पर आज तक अदालतों ने कोई फैसला सुनाया है क्या जो अब सुनायेगी ? देखते हैं दोस्तों कि कोई फैसला आता है या नहीं। आपका क्या फैसला है साथियों, बताना जरूर ? 


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