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Indrajit Ghoshal

Abstract

3.1  

Indrajit Ghoshal

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मैं कल रातभर रूह पलटता रहा ।

मैं कल रातभर रूह पलटता रहा ।

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मैं कल रातभर रूह पलटता रहा ।
रूह के तमाम सफ़ो पर लिखे  सभी नन्हे ख्वाब कागज़ों पे उतरे थे,
मेरे साथ वो तमाम ख्वाब समेटके ले आया था मै। 
शोर-ओ-गुल मेँ सच्ची ज़ुबान के ज़ायके से अरसो बाद मिला।

मेरी रूह उन सबके  आलाव् से  सना** था कल ।   
शिफ़ा* मिल रही थी मुझे रफ्ता रफता ।

मैं कल रातभर रूह पलटता रहा ।


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