मैं ही क्यूँ
मैं ही क्यूँ
प्यार, जो इंसान की ज़िन्दगी की नीव है पर ये सब को मिल जाये ये बहुत मुश्किल है हर किसी की ज़िन्दगी प्यार से भरी नहीं होती।
प्यार होने और सच्चा प्यार मिलने मैं बहुत फर्क होता है और कई बार ये सारी ज़िन्दगी का गम बन जाता है।
मैंने गर्ल्स स्कूल की पढ़ाई की हैं। उस टाइम पढ़ाई की कोई समझ नहीं थी। बस सपनो की दुनिया थी। पता था कॉलेज जाना हैं। लड़को से दोस्ती करनी है| और पता नहीं कौन कौन से ख्वाब जो आज सोचने पे कितने बेफिजूल लगते है।
पढ़ने मैं एक ठीकठाक बच्चा थी। जो बस पास होने से मतलब रखती थी। और कुछ नहीं किसी तरह की कोई मेहनत नहीं बस सारा ध्यान बनने सवरने मैं।
और ये दिमाग़ मैं बैठा हुआ था। की मैं बहुत खूबसूरत हूँ सारी दुनिया मेरे पीछे पागल है बहुत गुरुर था आपने ऊपर
चलो कॉलेज भी पहुंच गये एक अलग ही दुनिया इतना कुछ तो कभी सोचा भी नहीं था। सब लड़के लड़कियों आपस मैं बात कर रहे थे हूँस रहे थे घूम रहे थे।
हम भी आगे बड़े कई लड़को ने बात करने की कोशिश की। पर एक डर सा था की कोई देख ना ले क्यू की कॉलेज मैं कई बच्चे जानपहचान के थे। इस लिये कुछ टाइम तो डरते ही रहे। फिर धीरे धीरे डर ख़तम होने लगा।
एक लड़का मेरे घर के फ़ोन पे बहुत फ़ोन करता था। पता नहीं कौन था जब मैं फ़ोन उठाती तो वो कोई गाना चला देता मेरे को पता नहीं वो कौन था। ये सिलसिला बहुत दिनों तक चलता रहा।
एक दिन मैं बार बार उसका फ़ोन कटे जा रही थी। और वो मेरी आवाज सुनने के लिये बार बार फोन मिल रहा था।
मैंने चिल्ला के कहाँ जब बात नहीं करनी तो फ़ोन क्यू कर रहे हो। वो हूँस पड़ा। फिर बोला मैं तुम से दोस्ती करना चाहता हूँ। बस मना मत करना मैं तुम्हे कुछ नहीं कहुँगा। बस मुझसे बात करलो।
धीरे धीरे बात होने लगी। बहुत सारी बाते मैं बहुत ख़ुश सब कुछ बहुत अच्छा लग रहा था। पर कुछ कमी भी थी मैं बहुत डरती थी। किसी को भी कुछ बताने से और वो भी किसी से कोई बात नहीं करता था।
छोटा शहर था पता था| कुछ भी पता चला किसीको तो बहुत शामत आ जायगी। हम दोनों एक दूसरे से मिले पर दूर से ही एक दूसरे को देखा। उसने तो पहले भी मुझे देखा था पर मैं उसको पहली बार मिली थी वो मुझे बहुत अच्छा लगा।
वो जमाना अलग था किसी के बारे मैं कुछ भी पता करना इतना आसान नहीं था। बहुत टाइम हो गया था हम दोनों को बात करते हुए।
उसने मुझे आपने प्यार का इजहार किया और मैंंने भी हाँ कर दी। बात करते रहे। पर और कुछ नहीं वो भी कभी मिलने की या कही बात करने की कोशिश नहीं करता था।
कुछ भी ऐसा नहीं जो इस रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिये जरुरी था। मेरे घर मैं मेरी शादी की बात होने लगी।
और मैं उससे पूछती की अब क्या तो वो मुझे अपनी बातो से घुमाता रहता। अब तो लड़ाई भी होने लगी। मिलते तो हम कभी भी नहीं थे क्यू की वो कभी कहता ही नहीं था ना ही कभी कोशिश करता था।
मेरा दम घुटता था। अब इससे रिश्ते मैं जो है भी के नहीं मुझे कुछ पता ही नहीं था। पर क्या करू प्यार था जो रोक रहा था।
एक दिन मेरे स्कूल की फ्रेंड जो अब दूसरे कॉलेज मैं थी वो आयी मुझ से मिलने और मैंने उससे सारी बाते की।
सारी बात सुन कर उस लड़के का नाम जान कर वो एक दम हैरान हो गई। और बोली की इस नाम का एक लड़का तो एक लड़की है कॉलेज की उसका मंगेतर है। और उन दोनों की तो लवमैंरिज हो रही हैं।
दिल मैं कुछ होने लगा। नहीं वोभी मुझे प्यार करता है। वो नहीं होगा। पर जो कुछ भी वो बता रही थी सब सही था। कौन सी गाड़ी हैं उसके पास कैसा दिखता है। सब कुछ।।।
पर फिर भी मन नहीं मान रहा था। वो चली गई और मैं रोती रही। और खुद को समझा रही थी की नहीं वो नहीं होगा।
जब शाम को उसका फोन आया तो मैं चुप थी। वो बार बार मुझसे पूछ रहा था। की क्या हुआ मुझे समझ नहीं आ रहा था की उसको क्या बताऊ।
जब मैंंने उससे उस लड़की के बारे मैं पूछा तो वो हैरान हो गया। पहले तो माना नहीं। फिर मान गया।
जैसे सब कुछ ख़तम हो गया वो मुझको बहुत सफाइयां देता रहा। पर मैं उसका क्या करू।।
वो तो सब कुछ जानता था। शायद उसके लिये ये एक टाइम पास था। पर मेरे लिये तो ये मेरी ज़िन्दगी था मेरा पहला प्यार था। और मेरी गलती क्या थी। मैं ही क्यू, आज भी अपने आप से ये सवाल करती हूँ
और इतने सालों बाद भी रो पड़ती हूँ उसकी बेवफाई पे।