माँ बाप की कहानी
माँ बाप की कहानी
"सुशीला कहाँ हो, " "अभी आई कहती हुई, अपने हाथों का काम छोड़ भागती आई,"क्या हुआ?"
अरे कुछ नहीं कल सुमन आ रही है। अच्छा मैं ख़ुशी से पागल ही हो गई, सुमन हमारी बेटी है। अभी कल ही तो उससे बातें हुई थी, कल तो उसने नहीं बताया?? पता नहीं अभी फ़ोन आया है उसका इन्होंने बताया। ये सुन कर अंदर से कुछ घबराहट सी हुई, सब ठीक तो है? उसकी और उसके पति की बनती नहीं थी। अब पता नहीं क्या हुआ? सारी रात नींद नहीं आयी, नींद तो इनको भी नहीं आयी इधर उधर पासा ही पलटते रहे। सुबह अपने कम में लग गई। एक बजे करीब सुमन अपने पापा का साथ आ गई, आते ही जोर जोर से रोना शुरू कर दिया। "मैं अब वहाँ कभी नहीं जाउंगी।"
"वहाँ मेरी कोई इज़्ज़त नहीं है, मुझे नहीं रहने वहाँ " हम दोनों उससे चुप कराने में लग गये।
अपनी मर्ज़ी से शादी की थी आशुतोष से। सबने बहुत समझाया पर नहीं मानी हमने कहा "पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर लो।" पर नहीं शादी पर ही अड़ी रही। "अब ये रोज़ का ही काम हो गया है" दोनों की बनती नहीं। जब पहले अपनी मर्ज़ी की है तो अब भी अपनी ही मर्ज़ी करेगी। हम दोनों एक दूसरे को देख कर अपने अपने काम में लग गए। कभी कभी लगता है माँ बाप कभी अपने बच्चों की जिम्मेदारी से खाली नहीं हो सकते। हर वक़्त चिंता
पर फिर उनके साथ खड़े रहना उनकी नाजायज मांग भी पूरी करना, पर फिर भी उनके लिये पेरशान होना।
