उसकी मासूम ऑंखें
उसकी मासूम ऑंखें
आज फिर घर से निकलने में देर हो गई ।
रोज की वही जल्दी. वैसे भी जब छुट्टी के अगले दिन ऑफिस जाना ही तो देर हो ही जाती हैं. । आज भी बहुत लेट हो गया इसकी वज़ह से मालती से भी चिक चिक ही गई सारा मूड चौपट बस अब जल्दी से ऑफ़िस पहुंच जाऊं . इसी सोच में गाड़ी भगाये जा रहा था. की आगे देखा ।
रेड लाइट की वजह से सिग्नल बंद;.लो अब यही बाकी था. गुस्से मै मैंने गाड़ी को ब्रेक लगाये और ऑफिस मै जा कर क्या झूठ बोलना हैं. इसके बारे मै सोचने लगा।
मै अपनी सोच मै खोया हुआ था. तभी कुछ आवाज़ हुई मैने देखा तो कोई दिखा नहीं ,में फिर सोचने लगा की क्या करने हैं. जिस पर बॉस विश्वास कर ले ।
तभी फिर से खट खट की आवाज़ आयी. अब की बारे मैंने अच्छी तरह देखा तो एक छोटा से बच्चा भीख मांग रहा था. मन मै यही आया पैदा कर के सड़को पर छोड़ देते हैं. पता नही लोगो को कोई और काम नही हैं...
मैंने उसको हाथ से इशारा कर के आगे जाने के लिये कहा. पर वो टस से मस ना हुआ ।
मैंने उसको फिर इशारा किआ वो इतना छोटा था की मुझे पूरे गाड़ी के शीशे के पास आ कर उसको मना करने पडा । .
उसकी आँखे इतनी मासूम थी. की मेरा दिल को कुछ होने लगा.. पर उसने मेरा इशारा देख लिया था मै कही उसको डाट ना दू ये सोच के वो धीरे से आगे बढ़ गया.।
मुझे अंदर से बुरा लगा रहा था. की जो कुछ भी इस मासूम के साथ हो रहा हैं उसमे इसकी क्या गलती हैं इसको भी एक अच्छी जिंदगी जीने के हक़ हैं।
यही सोचते.ही सिग्नल ग्रीन हो गया. और हर तरफ से हॉर्न बजने लगा।
मै भी गाड़ी स्टार्ट कर के अपने ऑफिस की तरफ चल दिया ।
वापिस आने के टाइम मेरी ऑंखें उसी बच्चे को ढूंढ रही थी. पर इस बार वहाँ वो बच्चा नही था।
फिर कभी दोबारा वो मुझे नही मिला.. और उसकी वो आँखो की नमी मै कभी भूल भी नही पाया। सोचता हूँ मैंने भी तो वही किया. जो सभी करते हैं क्या पता वो किसी मजबूरी मै वहाँ था. अपने आप को भी दोषी महसूस करता हूँ।