बचपन बना जिम्मेदारी

बचपन बना जिम्मेदारी

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जिम्मेदारी अब मुझ से बड़ी हो गई है। अब उसके सामने अपने आप को बहुत छोटा महसूस करता हूँ शुक्र है भगवान ने रात बनाई है वरना शायद इंसान सोता ही नहीं। जब शादी हो के आयी थी जिंदगी को पंख लग गए थे। अपने घर में सबसे छोटी थी और लाडली, सात भाई और बहन सभी बहुत प्यार करते थे। माँ और पापा तो सारा दिन काम में ही लगे रहते पर दोनों बहने बहुत प्यार से मुझे संभाल लेती जब मैं पैदा हुई तो मेरी बड़ी बहन बारहवीं में पढ़ती थी। घर में किसी चीज़ की कमी भी नहीं थी या "शायद मेरे लिये नहीं थी।"

सब भैया बहनों की शादी हो गई उन सब के बाद मेरी सबने मिल जुल के मेरी शादी बड़ी अच्छी तरह की और मैं अपने घर आ गई। घर में सभी अच्छे है पति बहुत प्यार करते है बीस साल की थी जब शादी हुई। एक साल बाद ही बेटी हो गई मुझे तो कुछ करना भी नहीं आता था मेरे पति और उनके दो भाई थे वो दोनों बाहर पढ़ाई कर रहे थे मेरे पति ससुर जो के साथ दुकान पर बैठते थे। घर में मेरी सास और मैं वो बहुत कम बोलती थी सारा दिन काम में लगी रहती थी। और मैं सारा दिन बस यू बैठी रहती थी क्योंकि मुझे तो कुछ आता नहीं था। फिर मेरे पापा को कैंसर हो गया और कुछ समय बाद उनकी मौत हो गई अंदर से कुछ टूट गया ।

बेटी के साथ सारा दिन कट जाता था पर अब कोई पहले की तरह लाड नहीं लड़ाता तीन सालों के बाद बेटा हो गया। उनको पालते हुऐ बीस साल हो गये शादी को, सुबह होती है रात होती है। सारा दिन बच्चों पति और घर के काम में ही निकल जाता है।

अपने पैरों पर खड़ी होती तो शायद अपने पति का कुछ सहारा बन सकती यही सोच के अपने ऊपर भी गुस्सा आता है। अब इस उम्र में क्या करूँ टाइम ही नहीं और हिम्मत भी नहीं है, अब तो।

एक मिडिल क्लास इंसान अपने बच्चों के भविष्य की चिंता में अपनी ज़िन्दगी ही नहीं जीता। कब उस लाडली सी गुड़िया से एक जिम्मेदार माँ बन गई ये अहसास ही नहीं हुआ।



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