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V. Aaradhyaa

Inspirational

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V. Aaradhyaa

Inspirational

मैं आपकी बड़ी बहू हूँ तो क्या..

मैं आपकी बड़ी बहू हूँ तो क्या..

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इस अजीब से घर में अदिति का दम घुटने सा लगा था।


"उफ्फ्फ...ये कभी हँसती नहीं है क्या?"


जबसे अदिति ब्याह कर आई थी।उसने मीनाक्षी का मुंह चढ़ा हुआ ही देखा था।शुरू के कुछ दिन तो बहुत से मीठा बोलती थी, बाद में हमेशा तीखे शब्द ही बोलती है। और कई बार तो व्यंग बाण भी छोड़ती थी। उसकी बातों में अक्सर यह संकेत होता था कि छोटी बहू के आने के बाद सासु मां बड़ी बहू से प्यार नहीं करती।


आज भी जब कल्याणी जी ने छोटी बहू अदिति को आवाज दी तो मीनाक्षी ने व्यंग कसा...

" हां भाई... अब तो हर काम के लिए छोटी बहू अदिति को ही बुलाया जाएगा।छोटी बहु लाडली है। अब हमें कौन पूछेगा....? अब सासू मां को बड़ी बहु अच्छी नहीं लगती "


अदिति आज सुबह से ही काम में लगी हुई थी और काम था कि खत्म होने ही नहीं आ रहा था। यह काम खत्म करती कि दूसरा काम सामने आ जाता था।उसकी जेठानी मीनाक्षी तो उसका कभी हाथ नहीं बताती थी। हां...उसे ताने जरूर कसती रहती थी।अभी भी अदिति एक पर एक काम करके परेशान हो रही थी कि...तभी उसकी सास ने आवाज लगाई,


" बहू! थोड़ा मेरे पास आकर बैठ जाओ। मेरे घुटने में बहुत दर्द हो रहा है थोड़ी मालिश कर दो!"तभी मीनाक्षी ने भी आदेश दिया...


" अदिति रसोई का काम छोड़कर एक कटोरी में तेल लेकर जाओ अपनी सासू माँ कल्याणी जी के पैर दबाओ!"


मीनाक्षी कितना कहने पर अदिति दौड़कर सास के पास गई और....तभी उसने देखा सामने में उसकी जेठानी में नहीं थी उसे देख कर हंस रही थी और आंखों ही आंखों में कुछ ऐसा इशारा कर रही थी कि,

" अभी उनको तेल मत लगाओ और जाकर तुम अपना काम देखो।!"


लेकिन अदिति उनकी आंखों के इशारे को अनदेखा करते हुए अपने सास के पैर में तेल लगा दिया तो सास उसको बोली,


"जुग जुग जियो बेटा! बहुत आराम लग रहा है। सच जब से तुम आई हो ना मेरे घुटनों को बड़ा आराम मिलने लगा है। एक साथ इतना का सारा काम समेट लेती हो कि.... मन ख़ुश हो जाता है मेरा।मुझे .तुम तुम पर बहुत विश्वास है। और मेरा बहुत सारा आशीर्वाद है.।बस तुम खुश रहो और थोड़ा सा सुस्ता लो तब से काम में लगी हो!" अदिति ने कहा,


" बस माँ जी! थोड़ा सा काम बचा है।मैं करके फिर आराम करने चली जाऊंगी!" अदिति का पर जब कल्याणी जी प्यार लुटा रही थी तो यह सुनकर मीनाक्षी ने बुरा सा मुंह बनाया और उसको जलन के मारे उसे बहुत गुस्सा भी आ रहा था। वह मन ही मन में बड़बड़ा उठी,


" हुँह...अभी छोटी बहू पर लार टपकाया जा रहा है और जब मैं आई थी तो मुझसे कितना काम कराया जाता था। एक ही घर में दो बहुओं के पीछे में कितना पक्षपात होता है!"


उसके बातों का कुछ अंश तो जरूर कल्याणी जी के कानों तक पड़ा था। क्योंकि....उस दिन रात में खाना खाने के समय में कल्याणी जी ने ऐसी बात कह दी जिससे साफ लग रहा था कि उन्होंने मीनाक्षी की बात सुन ली थी। हुआ यह था कि.... खाना खाते हुए उनके दोनों बेटे पति और सब जमा थे तो बड़ा बेटा सुनील कहता है,


" मैं तब से देख रहा हूं तुम सिर्फ छोटी बहू पर लाड लगा रही हो। बड़ी बहू को तो भूल ही गई हो तुम खुद जब भी तुम को दोनों को बराबर प्यार करना चाहिए!" कल्याणी जी को अपनी बड़ी बहुत ही ईर्ष्यालू लग रही थी ।


इसलिए... उन्होंने बात को टालने की गरज से कहा, "बेटा! तुम लोग सब खाना खाने आ खाते हो तो छोटी बहू कोई बैठा लिया करो। नहीं तो वह पीछे अकेली रह जाती है।बाद में उसे ठंडा खाना खाना पड़ता है!"


कल्याणी जी की बात सही थी क्योंकि.. खाना खाते हुए चौका समेटेते हुए काफी देर हो जाती थी। इसेलिए कल्याणी जी ने अदिति को फिर से आवाज लगाई,

"छोटी बहू! आ जाओ तुम भी हम लोग के साथ मिलकर खाना खा लो। नहीं तो फिर बाद में तुम अकेली रह जाओगी....!"


अब दुबारा जब अदिति का नाम बुलाया गया तो मीनाक्षी का सर्वांग गुस्से से जल जल करने लगा। ऐसे ही वह अदिति से इतना जलती थी। और उधर उसकी सास हर बात पर अदिति का ही गुण गाने लगी थी तो उसका गुस्सा होना स्वाभाविक था। .


आखिर मीनाक्षी ने कह दिया..."जब मैं घर में बहू को बन कर आई थी तब तो बहुत सारे रूल थे ….और कितने सारे कायदे कानून थे। तब इतना काम नहीं कराया जाता था।और आज देखो अदिति कितना फ्री होकर घूमती है।


मां जी भी पक्षपात करती हैं। एक बहू को ज्यादा प्यार करती है और दूसरी को कम प्यार करती है!"


अपनी बड़ी बहू मीनाक्षी के मुंह से यह सुनकर आ कल्याणी जी को बहुत दुख हुआ फिर उन्होंने सोचा कि इन दोनों बहू को बताना जरूरी है...कि मेरी जिंदगी हमेशा से इतनी सुंदर नहीं है।फिर उन्होंने दोनों बहू और बेटे को बैठाकर कहा ,

" बड़ी बहू को यह शिकायत है कि मैं छोटी बहू से ज्यादा काम नहीं कराती और उसे ज्यादा प्यार करती हूं। पर ऐसा नहीं है। बड़ी बहू को सब सीखा चुकी हूं।वह बड़ी है और समझदार है,छोटी को धीरे धीरे प्यार से समझाना पड़ेगा, सिखाना पड़ेगा। तभी तो वह इस घर को अपना पाएगी।मेरी जिंदगी भी कभी इतनी सुंदर नहीं थी मुझे भी बहुत मेहनत करनी पड़ी है पड़ी है। तब जाकर मुझे यह जिंदगी मिली है। और.... रही काम की बात....तो अब मैं बहुत थक जाती हूं अब मुझसे ज्यादा काम नहीं होता।


जब मीनाक्षी आई थी तब मैं जवान थी और बहुत सारा काम खुद कर लिया करती थी। इसलिए मैं मीनाक्षी को भी घर का काम सिखाते सिखाते उसके साथ व्यस्त रहने लगी। अब मैं बहुत बीमार रहती हूं,इसलिए मुझे लगता है क्या पता पका हुआ फल हूं...कब टपक जाऊं.... इसका पता नहीं। मैं यही चाहती हूं कि छोटी बहू मीनाक्षी के साथ रहकर खाना बनाना और घर संभालना अच्छी तरह से सीख जाए!"


उसकी सास मीनाक्षी के लिए इतनी अच्छी भावना रखती है। और उसे घर की बड़ी बहू का सम्मान देते हुए जिम्मेदार समझती है यह जानकर मीनाक्षी को बहुत अच्छा लगाऔर साथ ही उसे अपनी गलती का एहसास भी हुआ।इसलिए गदगद स्वर में वह आगे बढ़ कर बोली....

" मां जी! अब आप आराम कीजिए। मैं हूं ना...! मैं घर भी संभाल लूंगी और धीरे छोटी को भी सब कुछ सिखा दूंगी ।आप सिर्फ अपना ध्यान रखिए आप खुश रहेंगे स्वस्थ रहेंगे तो पूरा घर मुस्कुराएगा !"


"मुझे तुम पर पूरा विश्वास है बड़ी बहू! तुम ही तो मेरे बाद इस घर को संभालोगी और छोटी को भी सिखा कर अपने साथ रखोगी।तुम दोनों देवरानी जेठानी की तरह नहीं बल्कि बहन की तरह रहोगी,यही मेरी ख्वाहिश है !"


इस बात पर दोनों बहुएं और दोनों बेटे भी हंस पड़े और पूरे घर में खिलखिलाहट गूंजने लगी। जिस घर में बहू के हंसती मुस्कुराती है पता तो है कि उस घर में खुशियां आकर ठहर जाती है।


उस दिन के बाद से मीनाक्षी को कभी भी छोटी बहू से जलन नहीं होती थी उल्टा वह आगे बढ़ कर उसे सब कुछ सीखाती थी। और बहुत प्यार से पेश आती थी।वह कल्याणी जी की भी पहले से ज्यादा इज्जत करने लगी थी पूरा घर एक सूत्र में बंध गया था।

कल्याणी जी की समझदारी से घर टूटते टूटते बच गया था।और देवरानी जेठानी में ईर्ष्या की जगह प्यार की नदियां बहने लगी।


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