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Hira Singh Kaushal

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Hira Singh Kaushal

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चिंत राम को हर समय चिंता सताती थी कैसे मैं अपने बच्चों का जीवन सुखी करूं। इसी सोच में चिंत राम ने अपनी रिश्तों व सागे-संबंधियों कीभावनाओं को नजरअंदाज करके उनसे बेइमानी करने से भी नहीं कतराता था। जिन के लिए किया आज उसे उन्हीं के कोप का भाजन होना पड़ा तथा अपनी करनी अहसास हुआ। 

 आज जब उसे उन बच्चों का करारी सी फटकार मिला थी कि पापा आपने तो हमारे सारे संबंधियों से रिश्तेदारी खत्म कर डाली। 

"उस संपत्ति का क्या करेंगे जो हमें समाज और सगे-संबंधियों से दूर करें और जो ईमानदारी की न हो।" 

चिंत राम जिसने अपने सुख की परवाह नहीं की और येन केन प्रकारेण बेइमानी से संपत्ति इक्कठी की थी व रिश्तों को भी नहीं समझा। इस प्रकार अपने बच्चों की बात सुन कर सन हो गया था। 



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