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Hira Singh Kaushal

Tragedy

3  

Hira Singh Kaushal

Tragedy

दरीचों का सच

दरीचों का सच

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आज उसके पास हरेक सुख सुविधा है किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। फिर भी मलकीत अपने आप में और अंदर ही अंदर बड़ा घुटा हुआ व वीरान महसूस करता था। न जाने कौन सी बात मलकीत को घुन की तरह कभी-कभी पिसे जा रही थी। 

मलकीत का व्यवहार हमेशा सबके साथ अच्छा रहता था। सभी लोग उसकी सादगी के कायल थे। अब मलकीत लोकनिर्माण में अधिक्षण अभियंता के पद पर चंबा पांगी घाटी में विराजमान हैं।


आज उनके कार्यकाल में एक नया जे ई सूर्यकांत स्थानांतरण होकर यहां आ गया ऐसे उनके कार्यकाल में कितने ही जे ई आये और गये। परंतु जब उसको देखा तो देखता ही रह गया। थोड़ा संभल करके मलकीत ने सूर्यकांत से कहा आप एक घंटे के बाद आना थोड़ा काम निपटा लूं। ठीक है सर सूर्यकांत ने कहा। मलकीत ने रामू चपरासी से कहा इनको चाय-पानी करवा देना थके हुए आये होगें।

सूर्यकांत के जाते ही मलकीत अपने अतीत के लम्हे एक - एक करके सामने तैरने लगे। मलकीत के जहन के बंद दरीचे के कपाट एक एक करके खुलने लगे थे।जो अंधेरा जीवन में फैला था सूर्यकांत के आने से छंट रहा था। सूर्यकांत में उसको अपना अक्ष नजर आया था। मलकीत को कामना की हरेक बात उसके मस्तिष्क पर हथौड़े की तरह बज रही थी।लग रहा था जैसे कल की ही बात हो। 

मलकीत जे ई का कांगड़ा में कर रहा था। वहां पर उसकी दोस्ती गुमानु से हो गयी क्योंकि गुमानु उसके मकान मालिक का लड़का तथा एक लड़के का बाप भी था यानी के दोनों खास दोस्त थे। मलकीत का भी जे ई का अंतिम साल चल रहा था।

एक दिन गुमानु के घर उसके लड़के सचिन का जन्मदिन था जो कि चार साल का था गुमानु ने अपने सभी रिस्तेदारों को बुलाया था। जन्मदिन की पार्टी की गयी सभी ने खूब आनंद लिया। मलकीत को भी खूब आनंद आया परंतु गुमानु की खूबसूरत साली कामना पर उसका दिल आ गया और वह उसको पाने के सपने बुनने लगा क्योंकि कामना बला की खूबसूरत थी तथा साथ साथ कामना एक सुशील और संस्कारी लड़की थी। मलकीत ने उसके साथ दोस्ती बढ़ाने की कोशिश की पंरतु वह कामयाब नहीं हो सका। क्योंकि वह उससे दोस्ती करने की इच्छुक नहीं थी न ही उसका कोई विचार था। परंतु मलकीत कामना हर हाल में साथ पाना चाहता था। उसने एक दिन गुमानु से कामना की बात चला दी कि मैं कामना से प्यार करता हूं तथा ट्रेनिंग पूरी होने के बाद इसी से शादी करुंगा। 

कई दिनों तक गुमानु आनाकानी करता रहा बाद में मलकीत की जिद के आगे हार मान ली और कहा कि तुझे तो पता ही है कि कामना का बाप नहीं तथा गरीब परिवार से है तथा विधवा मां भी है। मलकीत ने कहा मेरे लिए गरीब व अमीर एक समान है। मैं सिर्फ़ कामना से प्यार करता हूं न कि उसकी दौलत से। 

गुमानु को फिर भी मलकीत का यकीन नहीं हुआ तो उसने मलकीत से वचन लिया कि शादी करेगा तो कामना से ही शादी करेगा। मलकीत कामना की खूबसूरती पर फिदा था। वह सब मान गया। 


अब कामना व मलकीत एक दूसरे को संदेश पत्रों द्वारा देने लगे। कामना में भी भावनाओं का ज्वार उमड़ने लगा। भावनाओं में बहकर मलकीत को सब कुछ सौंप दिया। कामना की मां को मलकीत व कामना के प्रेम प्रसंग का पता चलने पर उसने मलकीत से सगाई करने हेतु कहा तो मलकीत ने कहा कि मैं अभी चार पांच साल के बाद शादी करुंगा। बेटा हम गरीब घर के हैं तू अपने मां-बाप का इकलौता बेटा है तथा जे ई की ट्रेनिंग कर रहा है और अच्छे खाते पीते घर का है कहीं तेरे मां बाप इन्कार न कर दे। कामना की मां ने कहा। नहीं मां जी मैं शादी करूंगा तो कामना से ही करूंगा नहीं तो करूंगा ही नहीं। मलकीत ने आश्वस्त करते हुए कहा मैंने गुमानु को भी वचन दे दिया है। गुमानु का नाम सुनते ही कामना की मां को मलकीत पर विश्वास हो गया। 


कामना और मलकीत का प्यार दिनों दिन हिलोर मारता हुआ आगे परवान चढ़ता गया। उधर मलकीत ने अपनी ट्रेनिंग पूरी कर ली। उसके मां-बाप उस पर शादी का जोर डालने लग गये थे क्योंकि अब उसकी नौकरी भी लग चुकी थी। पहले तो मलकीत अपने मां-बाप को टालता रहा परंतु अपने मां-बाप को बहुत टालने की कोशिश की पर टाल न सका मां बाप की जिद के आगे झुकना पड़ा कामना के बारे में उसकी हिम्मत ही नहीं पड़ी।


मलकीत की सगाई उसके मां-बाप ने सुनीता के साथ कर दी जो सुंदर तो थी ही वह अमीर माता पिता की संतान थी। गुमानु ने मलकीत से सगाई के बारे में पूछा तो उसनें कहा कि मैं कामना से ही शादी करुंगा ये तो मैंने मज़बूरी में घरवालों के कहने पर मंगनी की है। उधर कामना भी रो रो कर बुरा हाल हो गया था। मलकीत से कामना ने बात की तो मलकीत ने वही रटा रटाये बोल कह डाले कि मैं शादी करूंगा तुम्हीं से।

कामना पल के लिए विश्वास कर लिया परंतु उसका मन नहीं माना। उसने मन ही मन फैसला किया कि वह सुनीता की जानकारी एकत्रित करेगी।

कामना ने सुनीता के बारे जो जानकारी एकत्र की तो वह ठीक नहीं थी अर्थात वह मलकीत के योग्य नहीं लग रही थी कामना की नजरों में कई बार कामना ने मलकीत को बताने की कोशिश परंतु मलकीत ने ध्यान नहीं दिया। कामना को मलकीत की मक्कारी का अहसास होने लगा था। हुआ भी वैसा मलकीत की शादी की तारीख भी सुनीता से तय हो गयी थी। 

मलकीत का व्यवहार कामना के साथ रुखा सा हो गया था। इस अपना दुखड़ा खुद को सुनाती और खुद ही खुद को तसल्ली देती तथा भावनाओं में फूट फूट कर रो के अपना मन हल्का कर लेती।

मलकीत की शादी नजदीक आ रही थी कामना ने एक फैसला वह यह स्थान छोड़कर हमेशा के लिए यहां से छोड़ कर चली जायेगी। 

जाने से पहले एक पत्र लिफाफे में मलकीत के नाम रख दिया और अपने जीजा गुमानु को मलकीत के पास देने के लिए कहा। कामना वहां से चली गई जहां उसे कोई ढुंढ न सके।

कामना के जाने के बाद गुमानु ने वह पत्र मलकीत को थमा दिया और वहां से चला गया। मलकीत ने कामना का पत्र खोला तो कामना ने कहा कि - - 

प्रिय मलकीत 


मैं तुम्हारी थी तुम्हारी ही रहूंगी अफसोस जब तुम इस पत्र को प्राप्त करोगे मैं यहां से जा चुकी हूंगी। मैं नहीं जानती थी अंधेरे में रहकर जिन रही थी वह हकीकत में साकार नहीं होंगे। क्योंकि गरीब सपने तो देख सकता परंतु उसे साकार नहीं कर सकता है। गरीबी इंसान के लिए अभिशाप है पैसा आदमी के सच्चे प्यार को मिटा सकता है परंतु तुमने मुझे अंधेरे में रखा। अंधेरे में रखकर तुम सुखी नहीं हो सकते हो ये मेरा दावा है। तुम्हारे भावी जीवन में भावी दिनों के उजाले भी शरद ऋतु की अंधकार भरी रातों से भी गहन अंधकार में डूबे होंगे शरद ऋतु के की लम्बी रातों से ज्यादा दिन तुम्हें लम्बे लगेंगे। 

दौलत इंसान को इतना अंधा बना देती है मैं कभी भी नहीं सोच सकती। तुम अपने लिए पत्नी नहीं दौलत की तिजोरी लाये। क्योंकि सुनीता में इंसानियत नाम की चीज ही नहीं बल्कि घमंड और अय्याशी सुनीता की जिंदगी है।

शायद आप सोच रहे होंगे कि यह बातें जलन के कारण लिख रही हूँ। यह पता शादी के उपरांत लगेगा। तुमने मुझे अंधेरे में रखा परंतु मुझसे ज्यादा अंधकार में तुम होंगे।

तुमने की नहीं वफ़ा हमसे 

हम ही वफ़ा कर चले तुम्हीं से 

अलविदा अलविदा

तुम्हारी ही सिर्फ तुम्हारी 

कामना।


कामना के पत्र ने मलकीत को थोड़ी देर के लिए झकझोर दिया। अगले ही पल कामना के पत्र की बातों की अनदेखी कर दी। निर्धारित समय पर सुनीता से शादी हो गई। मलकीत का जीवन सुनीता के साथ ज्यादा जमा नहीं हर समय पैसों की धौंस। जीवन चक्र में मलकीत और सुनीता का एक लड़का हुआ। समय का चक्र देखिए वह माता पिता का कहना ही नहीं मानता था। कई बार मलकीत को लगता कामना की हाय मेरी जिन्दगी में पड़

 है क्योंकि 

गरीब से न छेड़िये बुरी गरीब की हाय। 

भेड़ की खाल में लोहा भी भस्म हो जाये।

अर्थात मलकीत का जीवन नर्क के समान हो गया था। लगता था सब कुछ होते हुए भी जिंदगी में कुछ भी नहीं है। आज सूर्यकांत को देखने मात्र से मलकीत के जीवन में बरसों से बंद पड़े दरीचों के कपाट खुलने से दरीचों के पीछे पसरा अंधकार छंट गया। मलकीत ने अपने आप बड़ी मुश्किल से संभाला तथा संयत किया और चपरासी से सूर्यकांत को बुलाया। 

सूर्यकांत ने अंदर आया तो बड़े ही सलीके से बैठा। मलकीत ने सूर्यकांत से परिवार के बारे में जानना चाहा तो सूर्यकांत ने बताया कि मेरी मां कामना के सिवाय दुनिया में कोई नहीं है और मां ने बताया था कि मेरा बाप मेरे जन्म से पहले ही मर गया है आज जो कुछ भी हूं अपनी माँ की बदौलत हूं। क्या मुझे अपनी माँ नहीं मिलाओगे। मलकीत ने कहा। नहीं सर आप उनसे नहीं मिल सकते क्योंकि वह इस दुनिया में नहीं हैं। ओह नो मलकीत के मुंह से निकला। मलकीत का दिल बैठने लगा परंतु संभल कर सूर्यकांत से कहा कि आज से धरवास में काम संभालो। 

अच्छा सर मैं चलता हूं सूर्यकांत ने कहा और वहां से चल दिया।।

सूर्यकांत के चले जाने पर मलकीत को कामना के साथ किये गये अपने व्यवहार पर पछतावा हो रहा था तथा कामना की हर बात मलकीत को याद आ रही थी।। 



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