उसका दुःख
उसका दुःख
सुरेश शर्मा दूर दराज पहाड़ी क्षेत्र में पटवारी के पद पर तैनात था। हर समय वह उस क्षेत्र के लोगों की मदद के लिए तैयार रहता था। उसकी नजरों में हर इंसान बराबर था चाहे वह अमीर हो या गरीब तथा किसी भी जाति व धर्म का हो।
इस कारण सुरेश शर्मा गरीबों की नजरों में देवता इंसान था।
एक दिन विभाग ने पंचायत में गरीबी रेखा से नीचे लोगों के चयन करने के लिए आम सभा की बैठक में उसे चयन करने वाले अधिकारी के रूप में भेजा। ग्राम सभा की बैठक गरीबी रेखा से नीचे रह रहे परिवारों का चयन चल रहा था परंतु आम सभा में गरीबी के नीचे रह रहे लोगों का कम चयन और ज्यादा सुविधा संपन्न लोगों का चयन हो रहा था।
उसी समय ग्राम सभा में चीथड़ो में लिपटा हुआ सरजू भी था। वह बहुत ही ज्यादा गरीब था। अचानक सुरेश शर्मा की नजर सरजू पर पड़ी तो सुरेश शर्मा ने ग्राम पंचायत प्रधान से कहा "सरजू बहुत ही गरीब है" इसका चयन भी गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवार के रूप में चयन कर लेना चाहिए। तभी प्रधान के साथ बैठे वार्ड सदस्य बोल पडा "जनाब सरजू अनुसूचित जाति से सरकार ने इनके लिए बहुत सी योजनाएं चलायी है। इसको गरीबी रेखा के नीचे रखने की जरूरत नहीं है। उसका यह तर्क सुनकर सुरेश शर्मा चुप सा हो गया और मन में सोचने लगा कि क्या गरीबी किसी जाति व धर्म को देखकर तो नहीं आती है? क्या इसका अनुसूचित जाति में पैदा होना ही सुविधाओं का प्रमाण ?
सरजू कभी तहसील तक नहीं गया क्या वह जाती के नाम की सुविधा ले पायेगा? सुरेश मन में यह कसमकश दिल में घर में कर गयी।
