मायके से मिले उपहार
मायके से मिले उपहार
जब से रानी घर में आई है घर के रंग ढंग ही बदल गए हैं। बाकी दोनों बहुएं भी तो घर में रहती थी एक सुबह का और एक शाम का, खाना बनाने का काम इस तरह से संभाला हुआ था। मालती जी दोनों की सहायता करती थी। वैसे भी मालती जी को खाली बैठने का कोई शौक भी नहीं था। किसी जमाने का खरीदा हुआ बड़ा और साधारण सा घर, बेटी की शादी हो चुकी थी। दोनों बेटे खर्चे के नाम पर बाबूजी को पांच ₹5000 भी देते थे। बाकी खर्चा मिलजुल कर चलता था। क्योंकि मनीष छोटा था इसलिए उसे कभी घर का खर्चा देना ही नहीं पड़ा। नौकरी लगते ही उसने रानी से विवाह करने की भी अनुमति मांगी। जिसमें किसी को कोई ऐतराज भी नहीं था।
अब क्योंकि मनीष की भी गृहस्थी बस गई थी तो मालती जी ने मनीष को भी अपने दोनों भाइयों के जैसे घर में सहयोग करने के लिए कुछ पैसे देने को कहा। हालांकि मालती जी के पति खुद भी रिटायर्ड ऑफिसर थे और उनकी पेंशन भी आती थी।उन्होंने अपने रिटायरमेंट के पैसों से ही घर में और कमरे बनवाए थे। ना ही उन्होंने कभी किसी से उधार लिया जितनी चादर उतने ही पैर पसारे इसका ही शायद यह परिणाम था कि उनका घर बहुत सुखी परिवार था। दिखावे से उन्हें सख्त नफरत थी और जरूरत की हर चीज उनके पास थी।
दहेज के वह कट्टर विरोधी थे किसी की भी आत्मा को दुख देकर कुछ भी मांगना उन्हें अच्छा नहीं लगता था। शायद यही कारण था कि उन्होंने रानी से भी कुछ नहीं मांगा। लेकिन इतनी अच्छी नौकरी लगने के बाद भी मनीष घर में कुछ भी नहीं देता था और इसके विपरीत हर समय उसका हाथ तंग ही रहता था। रानी के आने के बाद से ही उस घर में दिखावे की प्रथा चल उठी। हर महीने उसे नए कपड़े या कोई भी नया गहना या कोई भी और सामान चाहिए होता था। कुछ भी पहनते ही या कुछ भी लाते ही वह मालती जी को दिखाकर यही कहती थी कि यह मेरी मां ने दिया है या खाने पर बुलाने के बाद में चाची ने दिया है या भाभी ने दिया है। हालांकि मालती जी को समझ आता था कि मनीष के इतना कमाने के बाद भी उसका हाथ हर वक्त तंग क्यों रहता है । ₹5000 मालती जी के कहने पर उसने देने तो शुरू करें थे लेकिन महीने के आखिर तक कम से कम उतने ही रुपए वह मालती जी से उधार भी ले चुका होता था। यह सब देख कर दोनों बड़ी बहुओं में भी सुगबुगाहट तो होती थी लेकिन-------।रानी के शौक और उसके रिश्तेदारों द्वारा दिए गए उपहार भी बढ़ते ही जा रहे थे। अभी इस दिवाली पर उसने मालती जी को अपना बहुत महंगा एल.ई.डी टीवी दिखाया जोकि उसकी मम्मी ने गिफ्ट किया था।
सर्दियों की दोपहर को जब सब आंगन में अपने अपने काम में व्यस्त थे तो मझली भाभी ने सबके सामने ही आकर कहा कि घर के पास के ही इलेक्ट्रॉनिक्स शॉप से दो आदमी आए हैं और वह कह रहे हैं कि मनीष जी ने जो टीवी किस्तों पर खरीदा है उसकी सर्विस के लिए आए हैं। मनीष ने यह टीवी लोकल मार्केट की ही दुकान से खरीदा है। यह सुनकर रानी अचानक से चौंक उठी और मालती जी को देख कर बोली, "मम्मी अब के तो मेरी मम्मी ने पैसे दिए थे" ,जिससे कि मैंने टीवी खरीदा है। सब चुप थे और रानी अपने कमरे की ओर चल दी। मनीष के कमरे में कलर टीवी तो हमेशा से ही था-------फिर?
शाम को मनीष के आने के बाद मालती जी ने मनीष को कहां बेटा यूं भी तुम्हारे पास में सामान ज्यादा ही हो रहा है और तुम को उपहार भी बहुत मिलते हैं ऐसा है इस इतवार से आप लोग दोनोें पीछे छोटे स्टोर को अपनी रसोई बना कर अपना रहन-सहन अलग ही कर लो। बाकी अगर गृहस्थी को इस तरह से चलाओगे कि जितनी चादर हो उतना ही पैर फैलाओ तो बहुत अच्छा, वरना तुम्हारी इच्छा। ऐसा कहकर मालती जी अपनी दोनों बहुओं के साथ घर के काम में व्यस्त हो गईं।
