मासूम सी वो लड़की
मासूम सी वो लड़की


मुलाकात हुई थी किसी एक अंज़ान दिन में। तारीख याद नहीं है। बारिश़ होने को था। सब हड़बड़ी में थे। इतने में मेरे नज़र जा रुकी उस पर। उसकी चेहरे में इतनी मासूमियत थी कि मेरे नज़र ही नहीं हटी उससे।वो भी मेरे तरफ़ ही देख रही थी। मानो उसकी आँखें कुछ कहना चाह रही थी मुझसे। बहुत दर्द भरा हुआ था उन प्यारी सी आँखों में। मानो जैसे उसकी हसीन मुस्कुराहट कोई दर्द का चादर ओढ़ रखा था। उसकी वो पुराने फटे कपड़े उसकी मज़बूरी बयां करने को काफी थे। उम्र लगभग १३-१४ साल होगी। मैं उसे अपने पास बुलाया। वो नहीं आयी और मुझसे नज़रें चुराने लगी। फिर मैं उसके पास गया, जहाँ वो खड़ी थी अपने ३-४ साल के भाई के साथ। मेरे पास जाने से वो सहम सी गयी। मैंने उससे पूछा, "बेटी तुम्हारे मा - बाप कहाँ हैं? और बारिश होने वाली है, तुम इधर क्यूँ खड़े हो?" उसने कुछ जवाब नहीं दिया। फिर मेरे दोबारा पूछने से वो कुछ इशारों से मुझे समझाने लगी। उसके इशारों से मैं समझ गया कि, उसके मा-बाप अब इस दुनिया में नहीं हैं। वो उसकी भाई के साथ रात को यहाँ बाज़ार में ही किसी दूकान में ठहर जाती है। मेरी आँखें नम हो आयी उसके बात सुन के। कुछ और बोल नहीं सका मैं। और घर चला आया। कुछ करना चाहता था मैं उन दोनों के लिए।
उस रात मुझे ठीक से नींद भी नहीं आयी। अगली सुबह उसी ज़गह जा पहुंचा मैं, जहाँ हमारे पहली मुलाकात हुई थी। वो मिली, ज़मीन पर लेटी हुई...उसी मासूमियत के साथ। उसके फटे कपड़े और भी फटे हुए थे। शरीर के कई हिस्सों से खून निकल रहा था। ड़र और दर्द का कुछ अलग ही अभिव्यक्ति था उस मासूम चेहरे पर। बगल में बैठा उसका छोटा भाई उसे जगाने के कोशिश कर रहा था। और भरे बाज़ार में खड़े लोग ये तमाशा देख रहे थे।