मास्क [2जून]
मास्क [2जून]
मेरी प्यारी संगिनी, अभी मेरा काम ख़त्म हुआ है, जानती ही हो एक गृहिणी के लिए समय निकालना, बहुत मुश्किल होता है, हम बहुत मुश्किल से अपने लिए समय निकाल पाते हैं, तुम तो जानती हो संगिनी कि इस कोरोना काल में, सब कितना परेशान हुए हैं, आए दिन नई नई मुसीबतें, तरह तरह के अनुभव,,
अपना एक ऐसा ही अनुभव, मैं तुमसे साझा करती हूँ, जब कोरोना का आगमन हुआ था हमारे भारत में, पिछले साल 2020 के शुरुआती महीनों में, हमें उन दिनों बहुत सारी बातें मालूमात नहीं थीं, कि इसके संक्रमण से हम कैसे बचें, लॉकडाउन में घर पर रहना, हर वक्त मुमकिन नहीं होता, कुछ ज़रूरी काम के लिए बाहर निकलना ही पड़ता है,,
ऐसे ही किसी ज़रूरी काम से, मैं एक दिन बाहर निकली थी, और मास्क पहनना भूल गई थी, थोड़ी दूर जाने के बाद, मुझे याद आया कि, मैंने मास्क नहीं पहना है, सामने ही एक मेडिकल स्टोर दिखाई दिया, मैं वहाँ गई और एक मास्क वहाँ से लिया, जो मात्र ₹20 का था,,,
अब असल कहानी यहीं से शुरू होती है, मैंने मास्क लेकर, डर के मारे जल्दी से पहन लिया, उसके बाद पर्स में हाथ डाला तो छुट्टे नहीं थे, 500 का नोट था, मेडिकल स्टोर वाले ने हंगामा खड़ा कर दिया कि ₹20 के सामान के लिए ₹500 का छुट्टा वो नहीं देंगे, मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस होने लगी, चुँकि मैंने मास्क पहन लिया था, इसीलिए उसे लौटा भी नहीं सकती थी,,,,
मैंने उन से विनती की, कि मैं अभी पैसे छुट्टे करा कर लाती हूँ, उसके बाद आपको आपके पैसे दे दूंगी, बहुत ही हील हुज्जत के बाद, उसने मेरी बात मानी, मैं आनन-फानन में पास के दुकान में गई और जाकर अपनी परेशानी बताई, वह बेचारा भला मानस था, उसने मेरे पैसे छुट्टे कर दिए,,,
फिर मैंने उस मेडिकल स्टोर में जाकर उसे ₹100 दिए और कहा "अगर मेरी तरह कोई भी इंसान, आपकी दुकान में मास्क खरीदने के लिए आए, और उसके पास छुट्टे पैसे ना हों, तो आप मेरी तरफ से उन्हें बिन पैसे लिए मास्क दे दीजिएगा" यह बोलकर मैं शॉप से बाहर निकल गई, वह बंदा मेरा मुंह देखता रह गया,
ऐसे मुश्किल के समय में भी, कुछ लोग इंसानियत भूल बैठे हैं, आज का "जीवन संदेश",,,, कभी भी कोई मुसीबत में हो, तो उसकी सहायता ज़रूर करें, ऐसा करने पर आपकी मुसीबत में भी, कोई ना कोई आपकी सहायता ज़रूर करेेेगा, आज के लिए बस इतना ही, मिलती हूँ कल फिर से "मेरी संगिनी",,,,,,,,,
