Rajesh Singh

Classics Fantasy Inspirational

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Rajesh Singh

Classics Fantasy Inspirational

माँ

माँ

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माँ शब्द अपने आप मे ही बहुत बड़ा शब्द है और शायद ही इसका उत्तर मैं दे पाऊँ ?

 और अगर मैं यही क्वेश्चन आपसे पुछूं तो आखिर होती क्या है माँ ? क्या हुआ जनाब ? आप इधर- उधर क्या देख रहे हैं जी ? मैं आप से ही पूछ रहा हूँ ? चलिए अच्छा मैं ही बोलता हूँ देखिए ना अब बचपन में हमें ना जाने क्यु ना कितने भी किमती खिलौने मिल जाए लेकिन जब हम माँ के आंँचल में होते थे तो शायद हमें सारे जहांँ की सबसे बड़ी खुशी मिल जाती थी हम दुनिया को भूल कर मांँ के आंँचल में खो जाते थे हमें लगता था यही हमारी दुनिया है ,‌‌ अब क्या लगता है आपको? क्या हम उस टाइम सही होते थे? या हम यूं कहें कि हम उस टाइम कितना सही सोचा करते थे ? अब देखिए ना हमें जरा सा चोट लगा नहीं कि हमारे मुंह से एक पल का गंवाए एक ही शब्द आता है ओह...... माँ... और यही नहीं इस शब्द का यूज हम पूरे रोजाना लाइफ में करते हैं जैसे ओह...मां कितनी गर्मी है कोई कार्य खराब होने पर ओह माँ यह क्या किया मैंने, टीचर के डांटने पर भी यानी कि मांँ शब्द हमारे पूरे डेली लाइफ का हिस्सा बन चुकी है अब आप यही देखिए जब हम बचपन में खेलते वक्त चोटिल हो जाते थे और सोचते घर आकर नहीं बताएंगे लेकिन जब हम घर आते थे ठीक उसके विपरित होता था मांँ को ना जाने कहां से पता लग जाता था,

चल दिखा क्या छुपा रहा है ?कहां चोट लगी है तुझे? और यह बात यहीं आकर नहीं थमती है जब हम कॉलेज टाइम में होती तभी हमारी माँ हमारी फीलिंग को बिना कहे समझ जाती थी जैसे क्या बात है बेटा ? यह मेरा कार्तिक मेरा बाबू इतना उदास क्यों है? और जब हम बोलते थे कुछ नहीं मांँ कुछ तो नहीं और तब माँ बोलती थी चल हट पगले मुझसे छुपा रहा है ? मेरा बच्चा मुझसे ही छुपा रहा है चल मुझे बता कौन है ? वह राजकुमारी कौन है?जिसने मेरे बेटे का दिल चुरा लिया है,यानी मांँ अगर भगवान की दूसरी रूप कहां जाए तो बिल्कुल सत्य होगा वह माँ ही है जो हमारी खुशियां के खातिर अपनी खुशी मिटा देती है , माँ ही तो होती है जो बचपन में हमें पापा के तेज झूला झुलाने से लेकर हमें डांटने तक पे वह पापा से झगड़ा कर लेती थी, 

सिर्फ और सिर्फ हमारे लिए ही, मेरे कहने का अभिप्राय है, जिस मांँ ने हमें चलना सिखाया आज इस योग्य बनाया क्या हमारा उनके प्रति कोई उत्तरदायित्व नहीं है? क्या मांँ को हमसे कोई आशा नहीं रखती है या यूं कहें उन्हें हमसे कुछ आशा नहीं रखनी चाहिए ?

      ‌‌क्या हुआ ? समझे नहीं समझे ना? चलिए पढ़ते हैं इस छोटी सी कहानी को... आषाढ़ का महीना था अभी कोरोनावायरस जैसा भयावह रोग बिल्कुल अपने चरम सीमा पर था कोरोनावायरस जैसे भयावह बीमारी के कारण मुझे एक नेशनल कंपनी से निकाल दिया गया था अब ठहरा तो मैं बेरोजगार अब, आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं मैं नौकरी की तलाश पर दरबदर भटक रहा था हालांकि मुझे एक नौकरी मिल गई जोकि एक एनजीओ में थी में थी अब मैं एक एनजीओ के तहत एक सर्वेयर पोस्ट पर था

और मुझे एक जॉब के तहत मुझे सर्वे के लिए वाराणसी के ही 12 किलोमीटर दूर शंकर गांव मिला जेठ का महीना था उस दिन गर्मी और उमस बहुत ज्यादा थी मैं आसमानी शर्ट और ब्लैक पेंट पहने हुए शंकर गांव जाने के लिए कैंट स्टेशन पर एक सिटी बस में चढ़ा उन दिनों किसी सरकारी नेता के शहर में आने से सारी बड़ी बसें उपस्थित नहीं थी जिससे मुझे एक सिटी बस का चयन करना पड़ा, एसी वाला बस अच्छा होता है हालांकि आज मेरा किस्मत सही नहीं था इस समय सिटी बस पकड़ना किसी जहोज्जद से कम नही था, किसी तरह मै बस पर चढ़ा, बस मे काफी भीड़ थी, मैं बड़ा आश्चर्य था भीषण गर्मी में मैं मास्क लगाए हुए था सर पर पसीने टपक रहे थे मैं एक हाथ से पसीने पोछते और एक हाथ से बैग संभालते हुए बस में चढ़ा लेकिन आश्चर्य तो यह बात का था बस में सारे यात्री मे कोरोना का कोई खौफ ही नहीं था किसी ने दूरी मेंटेन ही नहीं की तो किसी ने मास्क लगाया था शायद ऐसे ही लोग कोरोनावायरस बढ़ावा दे रहे थे अमूमन दिल्ली और मुंबई की सिटी बस अच्छे हालात में होती है बनारस की सिटी बस तो बदतर हालत में थी,

 सिटी बस तो सिटी बस थी ना कोई उचित ना प्रबंधन ना किसी तरह बैठने का व्यवस्था था बस बोले तो बिल्कुल कबाड़ हालत में थी शायद इसीलिए इसे सरकारी बस कह रहे थे लोग 30 मिनट के रास्ते में मुझे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा बस के पिछले दरवाजे के सहारे लिए मै खड़ा था तभी एक व्यक्ति जिसकी उम्र लगभग 55 की रही होगी वह बिना मास्क पहने मेरी ओर बढ़ते हुए बोला भाई साहब शंकर गांव आ गया मैंने भी लंबी सांस ली और बैग संभालते हुए नीचे उतरा मैंने अपने हाथ की कलाई  घड़ी पर निगाह डाली और यह घड़ी मुझे दो रोज पहले बर्थडे पर मिली थी दिन के 12:30 हो चुके थे चिंता की लकीरें मेरे सर पर साफ दिखाई दे रही थी क्योंकि अमूमन मैं लेट हो चुका था गांव में अंदर कच्चे रास्ते से होकर जाना पड़ता था मैं एक हाथ से बैग को संभालते हुए कच्चे रास्ते बोले तो पगडंडियों से होते हुए चल रहा था बहुत कड़ी धूप थी दिन के 12:30 मिनट ही हुआ था और चारों तरफ वीरान ही विरान नजर आ रहा था कच्ची पगडंडियों के कारण मुझे चलने में काफी दिक्कतें आ रही थी तभी एक ईट के बीच में आने मेरा जूता आगे का फट गया था अब मैं बहुत परेशान हो चुका था चिंता की लकीरे स्पष्ट मेरे माथे पर नजर आ रहा थी उस धूप में किसी मोची को खोजना उतना ही कठिन था जितना कि दिन में तारे को खोजना जैसे था , रास्ते के दोनों और आलू के खेत पसरे नजर आ रहे थे अब मोची कहां ढूंढू? किससे पुछूं? कुछ समझ नहीं आ रहा था फटे जूते कच्चे रास्ते ग्रामीण ऐरिया काफी मुश्किल नजर आ रही था, पैदल ढाई किलोमीटर चलने के पश्चात मुझे काफी तेज प्यास लग गया था मेरे पास मांँ के द्वारा दिए गए दो पराठे और आम के अचार थे मैं सोच रहा था कहीं कोई वृक्ष दिखे तो मैं वहीं बैठ कर खाउ और अपनी प्यास बुझा सकूं तभी मुझे सामने एक बहुत ही विशाल नीम का वृक्ष दिखा अमूमन मेरे आंँखों में एक गहरी चमक आ गई आखिरकार मेरी इंतजार की घड़ी समाप्त हुई क्योंकि मुझे बहुत प्यास लगा हुआ था मैंने देखा उस छांव में न जाने कितने राहगीर बैठे हुए आराम कर रहे थे मैं भी वहीं पास में बैठ गया मैंने अपना टिफिन खोला और एक पराठा खाया उसके उपरांत पानी पिया और फिर बोतल को अपने बैग में रख दिया उसी उपरांत मेरी नजर एक वृद्ध महिला पर पड़ी जो *मोची* मालूम पड़ रही थी अर्थात जूते चप्पल मरम्मत करने वाली सावले रंग मे दबी कुचली रंग की साड़ी पहने उमर उसकी तकरीबन 74 या 75 के लगभग आसपास रही होगी मैं थोड़ा खुश भी था क्योंकि अब मेरा जूता सिल जाने का  

आशंका नजर आने लगा था

मैंने खाने के पश्चात अपने फटे जूते को उस बूढ़ी मांँ की ओर आगे सिलने के लिए जूता आगे बढ़ा दिया की मैंने देखा कि आसपास बूढ़ी मांँ के सामने कई फटे जूते और चप्पलों का ढेर पड़ा था शायद बूढ़ी मांँ का स्वास्थ्य बहुत ज्यादा खराब लग रहा था मै‌ बहुत दुखी था लेकिन मुझे यह भी अच्छा लग रहा था कि यह वृद्ध माँ इतनी स्वाभिमानी थी कि इतने गरीब होने के बावजूद इनमें स्वाभिमान कूट-कूट कर भरा था काफी ज्यादा कमजोर दिख रही थी उन्होंने अपने कांपते हाथों से मेरा जूता पकड़ रखा था और दूसरे हाथों से बड़ी सी सुई पकड़ रखी थी कांपते हुए हाथ से सुई बार-बार छूट जा रही थी तभी अचानक से मैंने देखा उनके कांपते हाथ मैं सुई अंदर जा घुसी और उनका पूरा हाथ इस तरह लहूलुहान हो रहा था उनकी यह हालत देखकर मुझे उन पर बहुत तरस आ रहा था मैंने उन्हें बोला की मांँ अब आप रहने दीजिए उन्होंने मेरी ना सुनी बोली मैं कर लूंगी बेटा और उन्होंने अपना चश्मा ठीक करते हुए फिर से अपने काम में लग गई जूते सीलने में लग गई मैंने बोला ना आप कुछ लगा लीजिए आपके हाथों पर बहुत ज्यादा ही खून निकल रहे हैं बोली कोई नहीं बेटा रोज निकलता है तभी मुझे महसूस हुआ कि इन्हें बहुत तेज से भूख लगी है यह तो

मैंने पूछा ही नहीं मैने पूछा आपने कुछ खाया मांँ? और यह कहते ही वह रोने लगी मुझे समझ में आ गया इन्होंने कुछ खाया नहीं मैने अपना टिफिन खोला और बची हुई रोटी उनकी ओर बढ़ा दिया अभी वह पहला निवाला ही खाई थी अचानक एक अधेड़ हट्टा कट्टा व्यक्ति जिसकी उम्र लगभग 45 से 50 के बीच रही होगी अचानक से उसने बड़े से लाठी अर्थात डंडे से उस वृद्ध माँ के सर पर एक के बाद कई बार वार करता चला गया उस डंडे से उस वृद्ध माँ का सर फट गया था और सर से बहुत तेजी से खून निकलते जा रहा था और वह रोने लगी बिलख लगी और मेरे पैरों को तेजी से पकड़ लिया बोली बेटा मुझे बचा लो इन सब हैवानो से मैंने उस वृद्ध मांँ को अपनी ओर खींचते हुए उस युवक से बोला ठहरो इस बेचारी वृद्ध माँ ने आपका क्या बिगाड़ा है क्यों इन्हें मार रहे हो लेकिन उन पर मेरे बातों का कोई असर नहीं पड़ रहा था वह लगातार डंडे से उस पर वृद्ध माँ पर लगातार वार करते जा रहे थे और वह काफी तेजी से रो रही थी विलाप कर रही थी मैंने एक बार फिर उनके सामने अब अपनी हिम्मत दिखाई तभी सामने से आते तीन और अधेड़ युवकों ने मुझे हाथ दिखाते हुए कहा चल हट जा तू हमारे रास्ते से वरना तुझे भी इसी के साथ मौत के हवाले कर दूंगा, अब वह चार युवक थे उन चारों के हाथ में बड़े-बड़े डंडे थे अब वे युवक निर्दयता पूर्वक उस वृद्ध मांँ पर डंडे से वार करने लगे थे मुझे तो यह नहीं समझ में आ रहा था कि आखिर में हो क्या रहा ?इस वृद्ध माँ का क्या दोष रहा होगा? ये लोग क्यों इन्हें मारे जा रहे थे? मैंने इस बार इन चारों युवको से फिर से झुझलाते हुए पूछा इन्हें क्यु मार रहे हो? उन्होंने मुझे ढकेल दिया और मेरा सर फटते फटते बचा अब वो लोग उस वृद्ध मांँ को पलट कर डंडे से तेजी से उसके सर पर वार करने लगे वो वृद्ध माँ अब बेशुद्ध हो चुकी थी तभी उनमे से एक लंबे चौड़े युवक ने उस वृद्ध माँ के सर पर एक डंडे से तेजी से वार करते हुए बोला यह कमीनी मुझे जमीन जायदाद नहीं दे रही है आज हम इस कमीनी को मार डालेंगे आज इसका जीवन लीला ही खत्म कर देंगें वह वृद्ध माँ बहुत तड़फड़ा रही थी सभी युवक उसे निर्दयता से पीट रहे थे जैसे लग रहा था कि अब उसके प्राण पखेरू उड़ जाएंगे तभी उसमें से एक सावला सा मोटा सा युवक बड़ा सा पहाड़ नुमा पत्थर उठाकर उस वृद्ध माँ के सर पर तेजी से पटक देता है, और फिर वह पत्थर तब तक रहा होता है, जब तक कि वह वृद्ध माँ तड़प तड़प कर मर ना जाती है, इस तरह आज एक वृद्ध मांँ मेरे सामने तड़प तड़प कर मर जाती है, मुझे बहुत तकलीफ होती है, क्योंकि यह उनकी अपनी सगी माँ थी अपनी मृत माँ की लाश पर वे डंडे व पत्थर फेंकते हुए अपने पैरों को पटक ते हुए यह संबोधित करते हुए अपने अपने गंतव्य की ओर चले जाते हैं चल कमिनी मर गई मेरे आंँखों के सामने आज एक मांँ का हत्या हो गया मेरे आंँखों से लगातार आंंसू निकल रहे थे मैं उसकी लाश के समक्ष अभी भी बैठा था मैं यही सोच रहा था क्या आजकल पैसा मांँ बाप से इतना बड़ा हो गया है ? शायद इस वृद्ध माँ ने इन सभी युवकों के इसी दिन को देखने के लिए लिए जन्म दिया होगा कि आज वह उनकी सहारा ना बन कर उनकी निर्ममता से हत्या कर सके, शायद ही मांँ जरूरत पड़ने पर इन युवकों के लिए खुद को भूखे रखकर अपना निवाला इन्हें खिलाया होगा जरूरत पड़ने पर दूसरों के घरों में बर्तन मांजे होंगे नौ महीने पेट में रखा हुआ होगा, कितना दुख दर्द सहा होगा, मांँ तो माँ होती है ना।क्या इन युवकों को अपनी माँ के प्रति जरा भी प्यार नहीं। क्या आजकल जमीन- जायदाद और संपत्ति मांँ-बाप से ज्यादा बढ़कर हो गए तभी मेरा ध्यान एकाएक नीम के वृक्ष के झोंके से टूटा तभी मेरी नजर उस वृद्ध मांँ शव पर पड़ी के मैंने देखा दो कुत्ते उसकी मृत शरीर को चाट रहे रहे थे अचानक से मेरी मोबाइल की घनघनाहट ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा और यह कॉल मेरे एनजीओ था से मैंने कान में लगाते हुए सामने से जानी पहचानी आवाज थी मेरे बॉस कि.... कार्तिक तेरा सर्वे का कार्य पूरा हुआ कि नहीं मैंने बस हां में जवाब दिया और कॉल काट दी तभी मेरी नजर अचानक से पढ़ रहे मोबाइल स्क्रीन पर पड़ती है छोटी बहन रिद्धिमा का मैसेज  

 *हैप्पी मदर्स डे* था मैने सर पर हाथ रख लिए मुझे तो याद ही नहीं था कि आज मदर्स डे भी है मेरे आंख के आंँशू और तेज हो गए आज मदर्स डे था रिद्धिमा के मैसेज ना आता तो मुझे याद भी नहीं होता कि आज मदर्स डे है मैंने अपने आँसू पोछते हुए अपनी नई कलाई घड़ी पर नजर डाली तो दिन के 2:00 बज रहे थे सर्वे भी पूरे करने थे माँ को कॉल कर हैप्पी मदर्स डे के लिए विश किया और यह मदर्स डे मेरे लिए हमेशा के लिए यादगार हो गया।


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