माँ
माँ
“मैंने पहले ही आगाह किया था। मुझसे पंगा लोगी तो पछताओगी। अब भुगतो। प्रलय है मेरा नाम, मुझसे टकराने वाले को यूँ ही आसानी से नहीं छोड़ देता” कहकर वह जोर जोर से हँसने लगा। उसकी हँसी की गूंज से आसपास खड़े वृक्ष हिलने लगे।
“अपनी करतूत पर शर्म कर जरा। एक माँ पर अत्याचार करते हुए दिल नहीं पसीजता तेरा?” आंसू पोंछते हुए उसके सामने खड़ी पृथ्वी बोली।
“दिल? मेरे पास होता तो तुझसे प्यार न करता?” वह अपनी बाहें फैलाते हुए और जोर से हँसने लगा। उसकी भयावह हँसी से पूरे वातावरण में भय छा गया।
“तुझसे तो बहस करना ही बेकार है। मैं चली अपने बच्चों को सम्हालने”
“कहां जाएगी और किस किस को सम्हालेगी? तेरे पूर्वी भाग में तो सदियों से आंतक का डर फैला हुआ है। उस पर समय बेसमय अतिशय बर्फबारी कर मैंने सबको डरा रखा है। भूल गई आसाम की बाढ़, कश्मीर का खून खराबा?” वह जोर से बोला।
प्रलय की बात सुनकर पृथ्वी की आंखों से दो आंसू लुढ़क गए।
“अभी तेरे केरल को ही देख ले। कितनों को यमराज के हवाले कर दिया और जो बचे उन्हें दाने दाने के लिए मोहताज कर दिया। बारिश, गर्मी और ठण्डी तेरी तीनों बेटियां अब मेरी गुलाम है। मैं जब चाहूँ, जैसा चाहूँ उनका उपयोग कर तेरी बाकि रही संतानों को हैरान परेशान कर सकता हूँ। मैं सर्वशक्तिमान हूँ” उसके स्वर में अंहकार था।
“अभिमान मत कर। जानती हूँ मेरे बच्चों की गलतियों की वजह से ही तू इतना ताकतवर बन गया है। पर यह भी मत भूल मेरे बच्चें ही घर-बार छोड़ सरहद पर खड़े रहकर तुझसे और दुश्मनों से टकराने की हिम्मत रखते है। दूर क्यों जाता है, केरल में आज तेरी हैवानियत पर इंसानियत भारी पड़ चुकी है। एक एक हाथ मिलकर हजारों हाथ बन गए है। माँ हूँ, इतनी आसानी से टूटने वाली नहीं। खुद कष्ट झेलकर भी अपनी संतानों में लड़ने के लिए जोश भरती रहूँगी। जा तुझे जो करना हो कर ले” पृथ्वी ने गर्व से कहा और खेत में टूटकर बिखर गई गेहूँ की बालियों को लेकर आगे बढ़ गई।
