माँ
माँ


थकती वो भी है पर बताती नहीं हैं।
बीमार वो भी होती हैं पर जताती नहीं हैं।
मशीन नहीं हैं वो पर फिर भी
मशीन की तरह काम करती हैं।
हर रोज किचन में रोटियां सेक-सेक जलती हैं।
नींद उसे भी आती हैं पर कमबख्त
जिम्मेदारियां वापिस खींच लेती हैं।
आंसू उसके भी निकलते हैं पर मैं प्याज़ काट रही हूं
कहकर उन आंसुओं को छिपा लेती हैं।
बाजार जाती हैं बच्चों और पति के लिये
बहुत कुछ खरीद कर लाती हैं।
जब पूछों कि अपने लिये क्या लेकर आयी हो
तो कहती हैं, अरे मेरे पास तो बहुत कुछ हैं।
यह कहकर अपनी एक चप्पल
को फटने तक चलाती हैं।
ऐसा नहीं हैं कि वो कंजूस हैं वो
घर के सिर्फ पैसे थोड़े बचाती हैं।
इसीलिए वो घर की लक्ष्मी कहलाती हैं।
इतना काम वो करती हैं फिर भी है
कुछ ऐसे पति जो कहते हैं कि करती क्या हो पूरा दिन।