माँ तू कब सास बनेगी
माँ तू कब सास बनेगी
भाग —१
गौतम अपने दोस्त की शादी में शामिल होने के लिए गया था। वहाँ उसके सारे क्लासमेट्स आए हुए थे। आज सबके ज़ुबान पर एक ही बात थी कि तेरी शादी कब होगी। यार...... इस जनम में करेगा या अगले जनम में। सब ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे। सुबोध ने तो यहाँ तक कह दिया, कि और दस साल रुक जा गौतम मेरी बेटी अभी पंद्रह साल की ही है पच्चीस तक तो उसकी भी शादी कर देंगे। ठहाकों से पूरा हॉल गूंज उठा। मेरी तो सिर्फ आँखों से आँसू आने ही बचे थे, मैं सबको क्या और कैसे बताऊँ कि मेरी माँ के कारण ही कोई भी रिश्ते मेरे लिए नहीं आ रहे हैं।
गौतम की माँ दयावती नाम के एकदम विपरीत हैं। उनका नाम सुनकर अगर हम समझे कि वे दयालु हैं !!!!!ननननन !!! उनसे घर के लोग ही नहीं आसपास के लोग भी उनके मुँह नहीं लगना चाहते। उनका एक ही बेटा है गौतम इसलिए उसकी शादी में अपने पूरे अरमानों को पूरा करना चाहती हैं। अरमान पूरे करना चाहती है के बदले में यह कहे तो अच्छा है कि अपने लालची स्वभाव के कारण लड़की वालों से बहुत सारा दहेज ऐंठना चाहती हैं। इसीलिए गौतम की अब तक शादी नहीं हो पाई। गौतम दिखने में अच्छा है, अच्छी नौकरी भी करता है। हाँ शुरू- शुरू में उसके लिए कुछ रिश्ते आए भी थे पर दहेज की माँग की भरपाई न कर सकने के कारण वापस चले गए। अब तो लोगों को दयावती के बारे में पता चल गया है तो देखते-देखते शेर के माँद में कौन घुसेगा इसलिए उनके घर रिश्ते लेकर आना बंद कर दिया। एक दिन दयावती ने पंडित जी को अपने घर बुलाया और उनसे कहा
पंडित जी मेरा बेटा सुंदर है, अच्छा कमाता है ,बहुत सारी धन दौलत का मालिक है और क्या चाहिए लड़की वालों को ? आजकल तो कोई रिश्ते भी नहीं आ रहे हैं। आप तो मेरे बेटे के लिए अच्छी दौलतमंद पढ़ी -लिखी सुंदर घर के कामों में निपुण लड़की है तो बताइए.....हाँ कहे देती हूँ।
पंडित हैरान सा उनका मुँह देखता रहता है क्योंकि इतने गुणों वाली लड़की कहाँ मिलेगी। वैसे भी अब तो इनके घर बहू बनाकर कौन अपनी बेटी को भेजेगा क्योंकि पूरे आसपास के गाँवों में भी इनकी दहेज लोलुपता के बारे में पता चल गया है।
एक दिन गौतम ऑफिस जा रहा था कि उसने एक सुंदर सी लड़की को अपनी तरफ़ आते देखा और देखते ही समझ गया कि यह तो पास की ही दुकान में काम करने वाले मुंशी जी की बेटी है। उसका रेवती नाम है। वह उसे पसंद आ गई। अब गौतम रोज़ उसी समय वहाँ से निकलता और रोज़ रेवती का पीछा करता यह सिलसिला कुछ दिन चला। एक दिन रुक कर रेवती ने पूछा आप क्या चाहते हैं ? गौतम पहले तो हक्का -बक्का रह गया फिर उसने सोचा ऐसा मौक़ा फिर कभी नहीं मिलेगा। झट से उसने कहा रेवती मैं तुम्हें चाहता हूँ और तुम राजी हो तो शादी भी तुम्हीं से करूँगा। सोचकर कल बताना और चला गया। रेवती धीरे-धीरे चल रही थी कि उसकी दोस्त प्रेरणा ने पीछे से आवाज़ दी रेवती रुक ..........
रेवती खड़ी हो गई और प्रेरणा नज़दीक आ गई। आते ही कहने लगी - रेवती गौतम की माँ को जानती है न ... फिर सोच समझ कर जो भी फ़ैसला लेना है ....लेना। रेवती ने कहा हाँ सुना तो मैंने भी है उनके बारे में देखते हैं। रेवती घर के पास पहुँचते ही प्रेरणा को बॉय बोलकर घर के अंदर चली जाती है।
क्रमशः
भाग—२
दूसरे दिन ठीक समय पर गौतम आकर खड़ा हो गया। रेवती आज देर से आती है। गौतम कहता है, क्या सोचा रेवती आपने। वह हँस देती है तो गौतम कहता है मैं समझ गया। कल अपने माता - पिता को मेरे घर रिश्ता लेकर आने के लिए कह देना ..... रेवती चुप हो गई क्योंकि उसे मालूम है कि पिताजी वहाँ गए तो दयावती जी उनका अपमान करेंगी और यह रेवती नहीं चाहती थी। गौतम को सहन नहीं हो रहा था क्या हुआ रेवती तुम्हें मंजूर नहीं है क्या ? ठीक है कोई बात नहीं है और वह पलट गया जाने के लिए, रेवती ने कहा गौतम जी !!!!! आप कुछ मत सोचिए और कल अपने माता - पिता के साथ हमारे घर आ जाइए। हम इंतज़ार करेंगे और वह चली गई। अपना नाम रेवती के मुख से सुनते ही वह सन्नाटे में आ गया क्योंकि वह खुद अपना नाम भूल गया था। उसे याद है जब से वह पैदा हुआ है, सब उसे दयावती का बेटा कहकर ही पुकारते थे। इसलिए आज वह सिर्फ दयावती का बेटा बनकर रह गया। हद तो और तब हो गई जब पापा को भी लोग उनके नाम से नहीं दयावती का पति कहकर ही पुकारते हैं। बाप बेटे दोनों में इतनी हिम्मत नहीं कि दयावती के सामने अपना मुँह खोल सके। और अब रेवती कहती है, अपने माता -पिता को कल घर लाइए। कैसे बोलूँ ?उसके तो पैरों तले ज़मीन खिसकती लगी है। चुपचाप ऑफिस चला गया। दिन भर ऑफिस में कुछ काम न कर सका। पाँच बजते ही ऑफिस से बाहर आया, गाड़ी लेकर घर पहुँचा, गेट के पास ही माँ ग़ुस्से से उफनती हुई खड़ी थी। उसने सोचा चलो मेरे कुछ कहने से पहले ही बात किसी ने उनके कान में बात डाल दी है।
दयावती ज़ोर से चिल्लाते हुए कहती है, तेरी यह हिम्मत उस मुंशी की बेटी से बातें कर रहा था। गौतम ने कहा —माँ मैं उस लड़की को चाहता हूँ और उसी से शादी भी करना चाहता हूँ बस !! हिम्मत करके यह बातें उसने कही और सीधे अपने कमरे में जाकर दरवाज़ा ज़ोर से बंद करता है।
दयावती के काटो तो खून नहीं, जो लड़का कभी आँखें उठा कर भी मुझे नहीं देखता था। जो भी बोलूँ जी माँ, जी माँ कहते हुए करता था। जिसके मुँह में ज़बान भी न के बराबर थी। आज मुझसे ऊँची आवाज़ में बात कर रहा है।
रात के भोजन के समय भी वह बाहर नहीं आया। दयावती ने सोचा एक दिन नहीं खाया तो कुछ नहीं हो जाएगा। जब दूसरे दिन भी कमरे से बाहर नहीं आया तो दयावती का दिल बैठ गया पर उसे उजागर न करते हुए चुपचाप खाने के लिए बैठी ही थी कि उनके पति जिनका नाम दयाशंकर था धीमी आवाज़ में कहने लगे देख भागवान जिसके लिए दहेज इकट्ठा करने की सोच रही है अगर वही न रहा तो क्या फ़ायदा ज़िद छोड़ और बेटे की दिल की बात समझ आख़िर वही तो हमारे घर का चिराग़ है। एक बार लड़की को देख लेने में हर्ज ही क्या है ? अब देख मुझे जो समझ में आया ....मैंने तुझे बताया आज तक कभी मैंने तुम्हारी बात नहीं टाली जो भी तुमने कहा मैंने सुना। आगे तेरी मर्ज़ी.... अब दयावती को भी डर लगने लगा और उसने लड़की देखने के लिए हाँ कर दी। गौतम और पापा दोनों ही ख़ुश बिना उपवास किए काम बन गया। दयावती की आँख बचाकर दयाशंकर गौतम को रोज़ खाना जो खिला देते थे। ......
क्रमशः
भाग-३
रेवती को देखने जाने के लिए दयावती ने अपने पास जितने भी गहने थे सब पहन लिए और सबसे महँगी साड़ी पहनकर लंबी सी कार में पति और बेटे के साथ चल दी। रेवती के घर के सामने कार रुकी पिता बाहर आए और उन्होंने ने कहा आइए
दयावती ने रोब से कहा ओह तो तुम ही हो मुंशी ..... उन्होंने कहा जी — दरअसल मुंशी जी को इस बारे में कुछ भी नहीं मालूम था। उनकी बड़ी बेटी अयति के लिए भी इसी तरह शहर के सबसे बड़े रईस के घर से रिश्ता आया था। अयति की सुंदरता और गुणों को देखकर बिना एक पैसा दहेज लिए उलटा शादी का खर्चा भी उन्हीं लोगों ने उठाया था। मुंशी जी भी वहाँ मेहमान बनकर ही गए थे। बड़े ही भले लोग थे। मुंशी जी की खूब इज़्ज़त भी करते थे। इसलिए उन्हें लगा छोटी बेटी के लिए भी कोई ऐसा ही रिश्ता आया है। उन्हें भगवान पर भरोसा था कि उनकी बेटियों के लिए वे अच्छा ही करेंगे। उनकी बेटियाँ भी ग़ज़ब की सुंदर और गुणी थी।
ख़ैर ......घर छोटा था पर बहुत सुंदर था। दयावती जैसे ही घर के अंदर पैर रखने वाली थी कि गौतम ने उनके कान में कुछ कहा, जिसे सुनकर दयावती का दिल बैठ गया। अंदर मुंशी जी ने आवभगत की और उन्हें बिठाया, तब ही दयावती ने शुरू किया देखिए मैं जो भी बातें हैं छिपाती नहीं हूँ मुँह पर ही बोल देती हूँ। कल ही की बात है मेरे भाई ने खबर दी है कि उनके गाँव के मुखिया की बेटी का रिश्ता गौतम के लिए आया है एक लाख रुपये, एक नौलखा हार पंद्रह सोने के सेट, बाकी का सामान देने के लिए तैयार हैं। रेवती तभी चाय लेकर आती है और कहती है ,आंटी जी बुरा मत मानिए अपने बेटे की शादी वहीं करा दीजिए। दयावती चुप हो जाती है क्योंकि घर के अंदर आते समय बेटे ने कहा था कि शादी रेवती से नहीं हुई तो वह अपनी जान दे देगा। दयावती कहती है ठीक है मेरे बेटे की पसंद है इसलिए अस्सी हज़ार और सामान दे दीजिए। मुंशी जी के कुछ बोलने से पहले ही रेवती कहती है - देखिए आंटी जी पहली बात मेरे पापा के पास उतने पैसे नहीं हैं। दूसरी आपके पास ही इतने सामान होंगे फिर मैं लाकर क्या करूँगी और कहाँ रखेंगे आपके रहते हम किसी और घर में रहेंगे नहीं फिर बेफालतू के सामान क्यों ? दयावती की ज़बान बंद हो गई दयाशंकर और गौतम मन ही मन ख़ुश हो रहे थे कि माँ का मुँह बंद कोई तो कर रहा है। दोनों भगवान से प्रार्थना करने लगे कि यह रिश्ता पक्का हो जाए। रेवती फिर कहती है ,आँटी मुझे बड़े -बड़े गहने पहनना पसंद नहीं मुझे सिंपल रहना अच्छा लगता है। जब मैं पहनूँगी ही नहीं तो गहने भी ख़रीद कर वेस्ट हैं, रही शादी की बात तो मुझे कोर्ट मेरेज पसंद है। आराम से बिना किसी तकलीफ़ के निपट जाता है। अगर आप तैयार हैं तो बोलिए मैं शादी के लिए तैयार हूँ।
दयावती कुछ कहती इसके पहले ही रेवती ने कहा आंटी जी मैं आपका दिल दुखाना नहीं चाहती हूँ। अब आप सोच समझ कर अपना निर्णय बताइए।
दयावती घर पहुँच कर सोचने लगी कि क्या करूँ पर अकेले बेटे का सवाल है वह भोला है पर ज़िद्दी भी है सचमुच कहीं आत्म हत्या कर ले तो इसीलिए दूसरे ही दिन मुंशी के घर ख़बर गई कि कोर्ट मेरेज नहीं धूमधाम से शादी करेंगे पर खर्च हमारी ही होगी। पूरे गाँव में ख़बर फैल गई कि दयावती के बेटे की शादी मुंशी की बेटी से तय हो गई है। क्या कमाल हो गया है ? मुंशी जी डर रहे थे, शादी के बाद क्या होगा। रेवती ने कहा —पापा आप घबराइए नहीं मैं सँभाल लूँगी। इस तरह गौतम और रेवती की शादी बड़े ही धूमधाम से हो गई और दयावती सास बन गई। पूरे गाँव के लोग कहने लगे कि दयावती का बेटा अब रेवती का पति बन गया। चलिए अब हम भी अपने घर चलते हैं।