Mukta Sahay

Drama

4.0  

Mukta Sahay

Drama

माँ ! मेरे मामा क्यों नहीं हैं ?

माँ ! मेरे मामा क्यों नहीं हैं ?

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जैसे ही मैंने मामा का फ़ोन रखा, मेरा आठ वर्षीय बेटा बोल पड़ा “ माँ ये बताओ हमारे मामा क्यों नहीं हैं? उस समय मुझे समझ ही नहीं आया क्या कहूँ और क्या ना कहूँ। मैंने बेटे का ध्यान हटाने के लिए कहा अमित पाँच बज गए और तू अभी खेलने जाने को तैयार नहीं हुआ। हिमांशु, अजय, अनुभव सभी आ गए होंगे नीचे खेलने। जा जल्दी से कपड़े बदल मैं तेरे लिए शेक बनाती हूँ। मैं किचन में चली गई और अमित अपने कमरे में तैयार होने। 

मैं किचन में आ तो गई थी और अमित का भी ध्यान उसके गूढ़ प्रश्न से भटका दिया था पर मेरे मन में तो जैसे तूफ़ान की लहरें ज़ोर-ज़ोर से तपेड़े मार रहीं थी। मैं जानती थी कि अभी तो मैंने इस प्रश्न को टाल दिया पर ये प्रश्न फिर मेरे सामने आने वाला है।

दरसल ऐसा नहीं है की मेरा भाई नहीं है। मेरे दो-दो भाई हैं। ये बात मेरे बेटे को भी पता है। उसे ये भी पता है कि माँ के भाई को ही मामा कहते हैं। लेकिन इस शब्द से आज तक उसने किसी को सम्बोधित नहीं किया है। इसलिए ये प्रश्न वह मुझ से कई बार कर चुका है, और मैं बहाना बना देती हूँ। अब जैसे जैसे वह बड़ा हो रहा है, उसका कौतूहल बढ़ता ही जा रहा है। दूसरे बच्चों, अपने दोस्तों के मामा के आने या मामा के घर जाने कि बात पर वह परेशान हो जाता है। 

मेरी समस्या ये है कि सब कुछ होते हुए भी मेरा मायका नहीं है और करन है की मैंने अपने पसंद से शादी करी है। उस समय मैंने अपने स्नातक की परीक्षा पास कर ली थी और अब आगे क्या करना है सोंच रही थी। तभी मेरी सबसे अच्छी दोस्त मोना ने मुझे कम्प्यूटर क्लास में दाख़िला को कहा। वह भी कम्प्यूटर क्लास जाना शुरू करने वाली थी। मुझे उसका प्रस्ताव पसंद आया और मैं भी उसके साथ जाने लगी। इसी दौरान मेरी अनुराग जी से मुलाक़ात हुई। कम्प्यूटर सेंटर अनुराग जी का ही था। अनुराग जी और मेरी पहचान कब दोस्ती से शादी टक आ गई पता ही नहीं चला। मेरे घर वाले इस शादी को तैयार नहीं थे, जबकि अनुराग जी के घर वालों की सहमति थी। अपने घर वालों के ख़िलाफ़ जा कर मैंने अनुराग जी से शादी कर ली। मेरी शादी को आज बारह साल हो गए हैं लेकिन मेरे पापा और दोनो भाई, शादी के बाद मुझसे ना मिले हैं और ना ही कभी बात की है। संजोग से कभी सामना भी हो जाता है तो अनजान बन कर निकल जाते हैं। ऐसा नहीं है कि मैंने कोशिश नहीं की सभी से मिलने की। मैं और अनुराग जी कई बार घर पर गए, माँ तो माँ होती है गले से लगा ली लेकिन घर मैं होते हुए भी पापा और भैया बाहर नहीं आए हम दोनो से मिलने। एक बार तो ससुर जी ने भी घर जा कर पापा से मिलने और बात करने की कोशिश कि लेकिन उनको भी मान नहीं मिला मेरे मायका में। 

अमित के आने के बाद भी मिलना चाहा पर सफलता नहीं मिली। शादी के बाद जो चाहिए, आज वह सब कुछ है मेरे पास दोस्त जैसा पति, माता-पिता जैसे सास-ससुर, प्यारा सा बेटा, भरा पूरा परिवार सब कुछ है मेरे पास, पर मायका नहीं है। मेरे बेटे के पास मामा नहीं है और मेरे पास उसके सवालों के जबाब। मैं मानती हूँ मैंने अपने माता-पिता की मर्ज़ी नहीं मानी लेकिन उन्होंने भी मेरे बात नहीं समझी। लेकिन क्या सजा इतनी बड़ी होनी चाहिए। लाखों का दहेज दे कर भी, पापा मेरे लिए एक सुयोग्य वर नहीं दूँढ़ पा रहे थे और इस दौरान उन्हें उच्च रक्तचाप ने भी घेर लिया था। क्या समाज के ऐसे कुरितियों को मिटाने के लिए हमें अपनी सोंच नहीं बदलनी चाहिए। 

मैं अपनी उधेडबून में फँसी थी की अमित ने आवाज़ लगाई माँ मेरा शेक दे दो, देर हो रही है। अच्छा बताना मेरे पास मामा क्यों नहीं है आपके जैसे। खेल के आता हूँ तो फिर बताना अभी देर हो रही है। क़हता हुआ अमित खेलने निकल गया और मैं इसका कुछ जबाब दूँढ़ने लगी।


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