madhavi mishra

Abstract

4  

madhavi mishra

Abstract

मां का विश्वास

मां का विश्वास

1 min
563


मैं कोई चार पाँच की रही होऊँगी क्योंकि मुझे मात्र धुधली सी स्मृति शेष है माँ बिलख रही थी पिता जी कहीं चले गये थे। एक अन्ध विस्वाश या सच्ची भावना माँ ने गाय के गोबर की गौरी बनाई और उसमे हरे दूब के तिनके खोस कर मुकुट लगाया साफ मौनी अर्थात चार इन्च गहरी मूंज की छोटी ढकिया मे रख कर जाने कौन सी मन्नत मन मे रख पाँच बार घुमा कर उल्टा पटक दिया।  गौरी सीधी की सीधी रहीं । माँ ने कहा पिता जी जल्दी घर आ जायेंगे। गौरी माता सीधी बैठ गयीं और सच मे पिता जी। दूसरे दिन घर आ गये। मुझे उनके आस्था और दृढ विस्वास का कायल होना पड़ा। इसी प्रकार

कोई सामान खो जाता तो माँ आंचल मे गांठें लगा देती। सामान मिल जायेगा तो गांठें खोलेगी और वह जल्दी ही मिल जाया करता था।

कभी ऐसा भी हुआ की किसी भाई या घर के किसी सदस्य के नाराज होकर घर छोड कर चले जाने काफी दिन तक ना लौटने पर उसका कोई पहनने वाला कपड़ा माँ सिल के नीचे या भारी वस्तु के नीचे दबा देती,ऐसी मान्यता थी की गया हुआ प्राणी यदि जीवित है तो तुरंत घर की तरफ भागेगा और प्राय:ये माँ के नुख्से सच होते थे।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract