STORYMIRROR

अनजान रसिक

Drama Classics Inspirational

4  

अनजान रसिक

Drama Classics Inspirational

माँ दुर्गा की आपार महिमा

माँ दुर्गा की आपार महिमा

6 mins
315

नवरात्री के मौसम में महिमा के चेहरे पर एक अलग ही चमक विराजमान होती थी। माँ दुर्गा पर उसका असीम विश्वास और आस्था उसके लिए इन दिनों का महत्व और भी बढ़ा देता था। वह पूरे मनोयोग से 1 माह पहले से ही तैयारियों में मग्न हो जाती।बाजार से माँ भवानी की सुन्दर मूर्ती खरीद कर लाती, उनके वस्त्र व आभूषण खरीदकर उनकी मूर्ती को बड़े चाव से सजाती, उनके मंदिर को झालर व बत्तीयों से सुशोभित करती और पूरी श्रद्धा के साथ 9 दिन नवरात्री के निर्जला व्रत रखती।यूँ तो हर दिन उसे कार्यालय भी जाना होता था जिसके कामकाज के कारण उसकी माताजी उसे रोज़ उपवास रखने को मना करती थीं पर भक्तिभाव से परिपूर्ण उसका मन उसे भरपूर शक्ति प्रदान करता था जिसके चलते वह अपने प्रण से पीछे ना हटती थी। आश्चर्य की बात यह भी थी कि बाकी दिन महिमा से भूख पर ज़रा भी नियंत्रण ना हो पाता था पर ना जाने इन 9 दिनों में कहाँ से इतना संयम और नियंत्रण आ जाता था।

अगर इंसान में दृण इच्छा और प्रबल आस्था हो तो वह क्या कुछ हासिल नहीं कर सकता है- महिमा का दृण संकल्प यही दर्शाता था।

इसी तरह समय का चक्र घूम रहा था और सबकी ज़िन्दगी वक़्त के साथ नये नये मोड़ से गुज़र रही थी। फिर एक समय आया जब माहिमा के रिश्ते की बात चली। सरकारी संस्थान से बी टेक कर चुकी महिमा एक सरकारी संस्थान में ऊँचे पद पर कार्यरत थी तो ज़ाहिर सी बात है कि उसकी अपेक्षा सरकारी संस्थान में कार्यरत किसी इंसान से विवाह करने की थी जो कि पढ़ा लिखा और ठीक ठाक कमाता हो।उसका परिवार खुद बहुत ही समृद्ध होने के कारण उसकी सदा से ही दिली इच्छा थी कि उसे एक ऐसा परिवार मिले जिसमें रह कर अपनेपन का एहसास हो और जहाँ हर दिन एक खूबसूरत याद के रूप में मन के पन्ने पर अंकित हो जाए। आखिर उसने अपने दोस्तों को हंसी खुशी जीवन यापन करते हुए जो देखा था। पर सब जो चाहो, वो मिलता कहाँ है।ठीक वैसा ही वाक्या महिमा के साथ भी हुआ और जो ससुराल वाले विवाह के पूर्व बहुत मीठी मीठी बातें करते थे व उसको पलकों पर बैठाने के वादे करते थे, शादी होते ही गिरगिट की भांति रंग बदल गए और तरह तरह की चीज़ेँ दहेज़ के तौर पर माँगने लगे।पति नीलेश अब तो महिमा सदैव गुमसुम गुमसुम रहने लगी और उसके चेहरे की आभा व मुस्कान रफूचक्कर ही हो गए। घर उसे चारदीवारी से घिरे जेल की भांति लगता जिस में या तो झगड़ा होता रहता या फिर सन्नाटा पसरा रहता। महिमा हर दिन ऑफिस जाती तो यह सोच कर खुशी से भर जाती कि कम से कम 7-8 घंटे तो घर के कलह कलेश से छुटकारा मिलेगा।वह हमेशा यही सोचती रहती कि उसने इतने सालों तक पूरे भक्तिभाव और आपार श्रद्धा के साथ माता रानी की पूजा अर्चना की फिर उसके जीवन में इतने संघर्ष क्यों? क्या उसे एक साधारण महिला की तरह एक खुशहाल परिवार में रहने की अनुभूति से सारी ज़िन्दगी वंचित ही रहना पड़ेगा? हर क्षण उसका मन करता कि सब कुछ छोड़ कर अपनी माँ के पास वापिस लौट आये पर लोग क्या कहेँगे और परिवार की बदनामी के बारे में सोच कर ऐसा कदम उठाने से रह जाती।

फिर से चैत की नवरात्री आयी परन्तु इस बार महिमा का मुखड़ा एक मनमोहक मुस्कान से सुसज्जित ना था। हर वक़्त कलह कलेश होने के कारण घर में बसी उदासीनता ने अब महिमा के ह्रदय को भी अपना ग्रास बना लिया था। इस बार ना उसका कोई धार्मिक अनुष्ठान करने की इच्छा थी ना ही किसी पूजा पाठ की।जब ह्रदय में तिमिर हो तो घर में दिए-बाती जला कर रौशनी कैसे की जा सकती है। एक दिन हुआ यूँ कि नीलेश अपने दफ्तर के लिए निकला ही था कि 10 मिनट बाद ही महिमा के पास नीलेश के नम्बर से किसी अज्ञात पुरुष का फ़ोन आया कि नीलेश दुर्घटनाग्रस्थ हो गया है और उसे पास ही के अस्पताल में उपचार हेतु ले जाया जा रहा है। यह खबर सुन कर महिमा व्याकुल हो गयी और अफरा तफरी में अस्पताल के लिए निकल पड़ी। उसने घर में किसी को नीलेश की दुर्घटना के बारे में ना बताया अन्यथा सभी परेशान हो उठते और ऑफिस के किसी ज़रूरी काम के अचानक आ जाने का बहाना बना दिया। जब महिमा अस्पताल पहुंची तो नीलेश icu में लहूलुहान हुआ एक बिस्तर पर बेहोश पड़ा था और डॉक्टर व नर्स उसकी सेवा में लगे थे। ऑपरेशन के लिए तैयारी की जा रही थी क्योंकि नीलेश के सर पर गहरे घाव थे। कारण पूछने पर पता चला कि किसी तेज़ी से उल्टी दिशा में आ रही गाड़ी ने नीलेश की बाइक को टक्कर मार दी थी जिस कारण वह उछल कर सड़क पर जा गिरा। यह सुन कर महिमा फूट फूट कर रोने लगी और देवी माँ से रक्षा करने की गुहार लगाने लगी। 2 घंटे उपरान्त डॉक्टर icu से बाहर आये और बोला कि नीलेश बच तो गया है पर उसका अब 3 महीने के लिए पूरा ध्यान रखना होगा।

जब नीलेश और महिमा घर पहुंचे तो नीलेश की बुरी हालत देख कर हक्के बक्के रह गए और महिमा को उसकी ऐसी दुर्गति के लिए कोसने लगे। महिमा चुपचाप नीलेश को ध्यान पूर्वक सहारा देते हुए उसके कमरे तक ले गयीं। वहां उसे आराम से बिस्तर पर लिटाया और उसकी सेवा में लीन हो गयी। उसके लिए हल्दी का दूध लाई और चम्मच की मदद से धीरे धीरे उसे पिलाया क्योंकि उसे ज्ञात था कि सर की चोट हल्दी के दूध से जल्दी ठीक होती है । तद पश्चात दवा दी। हल्का भोजन बना कर दोपहर में उसको खिलाया और फिर उसे सुला दिया। शाम को उठते ही नीलेश को हलकी सी चाय पिलायी। इस सब सेवा को देख कर नीलेश अभीभूत हो उठा। उसका मन उसके व उसके परिवार के द्वारा महिमा के साथ किये गए दुर्व्यवहार के लिए ग्लानी से भर गया और अश्रुधारा से उसके नेत्र सराबोर हो गए। उसने अपने किये के लिए महिमा से माफी मांगते हुए आगे कभी उसको ना सताने का वादा किया। यद्यपि नीलेश दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण बहुत शारीरिक कष्ट में था परन्तु उसके व महिमा के मानसिक कष्ट के दिन छंट चुके थे। वे दोनों हँसते बोलते व एक दूसरे के भले - बुरे का ध्यान रखते। पत्नी अगर चाहे तो यमराज से भी पति के प्राण वापस ला सकती है। महिमा की नितदिन श्रद्धा पूर्ण की गयी देखरेख के सौजन्य से नीलेश 3 महीने में पूरी तरह स्वस्थ हो कर दफ़्तर जाने लगा। अपनी इतनी तीव्र गति से हुई आरोग्य प्राप्ति का पूरा श्रेय नीलेश अपनी पत्नी द्वारा निस्वार्थ भाव से की गयी सेवा को देता। जब भी कोई रिश्तेदार या दोस्त मिलने आता, नीलेश महिमा को उचित सम्मान देता जिसकी एक पत्नी हक़दार होती है। नीलेश के ऐसे आचरण से महिमा फूली ना समाती और देवी माँ का धन्यवाद करते ना थकती। आख़िरकार देवी माँ की कृपादृष्टि से ही महिमा और नीलेश की बेजान ज़िन्दगी में रंग भर गए थे और उनका गृहस्थ जीवन खुशियों से लहलाहाने लगा और वाह खुशी खुशी रहने लगे थे। 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama