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अनजान रसिक

Drama Inspirational

4  

अनजान रसिक

Drama Inspirational

नव-निर्माण

नव-निर्माण

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जीवन जीने की प्रबल इच्छा अगर मन में हो तो कोई ऐसे व्यक्ति को परास्त नहीं कर सकता। इसकी जीती जागती मिसाल था गुजरात के भुज के निवासी रवि और उसका जीवन। यूं तो मौत के आगे हर कोई शस्त्र डालकर हार मान ही जाता है परन्तु रवि एक ऐसा दृढ़ निश्चयी व सबल व्यक्ति था कि स्वयं यमराज भी उसके आगे नतमस्तक हो चुके थे। ४ वर्षों तक पूरी निष्ठा के साथ ज़िन्दगी और मौत के बीच झूलते रवि ने अपना हौसला व हिम्मत ना हारते हुए संघर्ष किया था और फिर अंततः जीत हासिल कर ही ली थी। उसके दफ्तर के सभी सहकर्मी व दोस्त उसकी हिम्मत व इच्छा शक्ति का गुणगान करते नहीं थकते थे। जब आस पड़ोसी उसकी सराहना करते और उसकी मिसाल देते तो रवि के परिवार का सीना गर्व से और चौड़ा हो जाता। 

क्योंकि रवि ने मौत को इतनी करीब से देखा था और पैसे की किल्लत के कारण लोन ले ले कर बहुत मुश्किल से अपना इलाज कराया था , वह नहीं चाहता था कि कोई और व्यक्ति ऐसी स्थिति में पहुंचे या उस से गुज़रे इसलिए उसने एक अस्पताल खोलने का फैसला किया जो कम से कम खर्चे में हर लाचार व्यक्ति की ओर मदद का हाथ बढ़ा सके। पूरे हर्षोल्लास के साथ उसने दोस्तों की सहायता से एक जमीन खरीदी व उसका भूमिपूजन करके अस्पताल का निर्माण कार्य आरम्भ करा दिया।एक-एक ईंट लगती जाती और उसके साथ रवि के चेहरे की आभा और दोगुनी चार गुनी होती जाती।उसे इस बात की हार्दिक प्रसन्नता थी कि अब इस अस्पताल के कारण कोई भी गरीब निर्धन बेसहाय व्यक्ति इलाज से वंचित नहीं रहेगा, पैसे से जान का सौदा अब नहीं होगा।

बस इसी हर्षोल्लास के साथ पूरे मनोयोग से अस्पताल का निर्माण कार्य प्रगति पथ पर था की अचानक एक ऐसी अनहोनी हुई जिसका किसी ने भी कयास ना लगाया था । भुज की धरती ७ व ८ की तीव्रता वाले लगभग ४-५ भूकंप के झटकों से कंपकंपा उठी और सर्वत्र त्राहि त्राहि मच गयी । लाशों और मलबे का ढेर लग गया और हर तरफ सिर्फ रोने और कराहने की आवाज़ व्यापक हो गयी । इस प्राकृतिक विपदा का ग्रास रवि और उसका परिवार भी बन गया और मात्र उसके २१ वर्षीय पुत्र संभव के अलावा और कोई भी शेष ना रह गया। अस्पताल और उसके आस पास का क्षेत्र भी इस कदर तहस नहस हो गया की लगा मानो ज़िन्दगी अपने पुनर्निर्माण के लिए आवाहन दे रही हो पर हिलती हुई धरती ने सभी के हौसलों का दमन कर उनकी हंसती खेलती ज़िन्दगी को चंद पलों में छिन्न भिन्न कर दिया था । सभी की तरह संभव भी बिलकुल बिखर गया था और उसे समझ नहीं आ रहा था की अपनी बिखरी हुई ज़िन्दगी को किस सिरे से संवारना शुरू करे। उसके आँखों के सामने एक कभी ना छंटने वाला अँधेरा छा गया था और उसके मन में ज़िन्दगी जीने की कोई इच्छा ही ना बची थी। तभी उसकी नज़र एक भिखारी पर पड़ी जो अकेला और अपंग होने के बावजूद मज़े से मंजीरा बजाते हुए गीत गुनगुना रहा था । वह उसके पास गया और उससे बेवजह खुश रहने का कारण पूछा । इस पर भिखारी ने संभव को ऊपर से नीचे देखते हुए कहा ," तुम्हारा नाम क्या है ?" संभव ने जवाब दिया " संभव" । इस पर भिखारी हँसते हुए बोला " फिर मुझसे क्या पूछते हो? जिसका नाम ही संभव हो, उसके लिए कुछ भी असंभव कैसे हो सकता है । धरती पर आये हो तो सुख दुःख का समन्वय तो जीवन में सदैव ही रहेगा। खुद पर सारा विश्वास रख कर पूरे धैर्य ,निष्ठा और हिम्मत के साथ आगे बढ़ते रहने का नाम ही जीवन है। अगर हर इंसान थक के मुश्किलों और विपदाओं से हार मान कर बैठ जाए तो दुनिया के अस्तित्व पर तो प्रश्न-चिह्न ही लग जाएगा। इंसान को चाहिए कि बिना हार माने अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहे और बेवजह खुश रहे क्योंकि अक्सर वजहें बहुत महंगी होती हैं । " भिखारी के ऐसे वचन सुन कर संभव कि अंदर एक अलग सी स्फूर्ति का प्रवाह हो गया और उसने अपने पिता कि अधूरे सपने को पूरा करने का निश्चय किया। वह पूरे उत्साह कि साथ उस स्थल की ओर बढ़ गया जहाँ अस्पताल का निर्माण हो रहा था परन्तु वहाँ पहुँचते ही उसका जोश ठंडा पड़ गया। जिस ज़मीन पर कुछ दिन पहले खूब चहल पहल रहती थी और हर रोज़ ये कयास लगाए जाते थे कि कब तक ये अस्पताल जनसेवा कि लिए सुचारु रूप से कार्य करने में सक्षम होगा, आज उसी ज़मीन पर कुत्ते और भैंसें घूम रही थी। चारों तरफ मलबा ही मलबा पड़ा था जिसमें से दब कर मृत्यु को प्राप्त हो चुके मज़दूरों कि शवों की तीक्षण दुर्गन्ध आ रही थी।

उसका हृदय टूट गया और आँखें अश्रुधारा से लबालब हो गयीं और वह शिथिल हो कर ज़मीन पर ही बैठ गया। पिताजी का सपना यूं मिट्टी में मिलता देख उसके दुःख का कोई ठिकाना नहीं रहा। पर अगले ही क्षण उसे भिखारी की बातें याद आईं और उसने अपने पिता के सपने को साकार करने का दृढ़ संकल्प ले लिया। इस सिलसिले में आगे बढ़ते हुए उसने कुछ ठेकेदारों से सौदा पक्का कर के पुनर्निर्माण का कार्य आरम्भ करवा दिया। ७ महीने बाद ही बहुमंज़िला अस्पताल बन कर तैयार हो गया। उसने पूरे हर्षोल्लास से अस्पताल का उद्घाटन कराया और दैनिक चिकित्सा का कार्य आरम्भ करवा दिया। अब रोज़ उस अस्पताल में भांति- भांति के लोग आते और सुविधाजनक मूल्यों पर इलाज पा कर प्रसन्नचित्त होकर अपने घर लौटते। उनके चेहरे की मुस्कान देखकर संभव का दिल गदगद हो उठता और उसे इस बात से बेहद संतुष्टि मिलती कि आखिरकार उसके पिता का सपना साकार हो रहा था और वे जहां कहीं भी होंगे, बहुत खुश होंगे। ये सचमुच नवनिर्माण का एक जीता जागता उदाहरण था - सपनों का नव-निर्माण , आशाओं और आकांक्षाओं का नव-निर्माण , ऊर्जा का नव-निर्माण ,जीवन और दुनिया का नव-निर्माण जो आज सर्वत्र खुशहाली और सम्पन्नता फैला रहा था ।



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