Yayawargi (Divangi joshi)

Tragedy

5.0  

Yayawargi (Divangi joshi)

Tragedy

माइ फ़र्स्ट किस्स

माइ फ़र्स्ट किस्स

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डियर डायरी , 

तुझे पता है न तेरी बातूनी याशु ऊटी जाने वाली थी कॉलेज कैंप के लिए। आज तक मैंने तुझे हर राज़ बताए है और बताती भी किसे तेरे अलावा, मेरी बात सुनता ही कौन है या ये कहूं के किसी और को कहाँ कुछ कह पाती हूँ, हाँ यार ऐसी ही है तेरी याशु। जिसे लोग इंटरोवर्ड कहते है, जो अपने में ही रहती है। तू ही तो है मेरी राज़दार तुम ही ने तो मेरे हर राज़ को अपने पन्नों में कैद कर रखा है, याद है वो दसवीं के कम्प्युटर के सर, अरे जिन पे मुझे क्रश था और वो रोल नंबर 47 कैसे छुप-छुप मुझे देखा करता था… मेरे ख़्वाब-ख़्वाहिशें सब तो तू जानती है पर एक बात थी जो मैंने खुद को भी एक सपना समझ भुलवा दी थी। ये बात थी मेरी पहली किस्स की, हाँ माइ फ़र्स्ट किस्स।

ऊटी बहुत अदभूत जगह है ऊटी लेक, स्लीपिंग लेडी, विंड मिल, डोडबेटा, प्याकारा, कमराज डैम, डॉल्फ़िन पॉइंट और कुन्नूर... यह ख़ुदा भी न एक चित्रकार है जब ख़ुदा भारत बनाने का सोचा होगा न तो उसने नीचे से बना शुरू किया होगा इसीलिए तो देखो ये केरला, आंध्र, तमिलनाडू मानो ख़ुदा ने सारे रंग यहाँ के फूलों में, प्रकृति में भरे ही है फिर जैसे जैसे आगे भारत का चित्र बनता गया वैसे वैसे रंग न खत्म होने लगे, बचा सिर्फ हल्का पीला और सफ़ेद तो राजस्थान में रेत भर दी और कश्मीर में बर्फ, हाँ माना मेरी जान के उसकी अपनी खूबसूरती है पर जिसका मनपसंद त्योहार ही होली हो उसे तो रंगीन दुनिया ही आकर्षित करेगी।

प्याकारा के पास ही हमारा टेंट था, अरे हाँ भाई हमारा तम्बू था। सच्ची यार सब घूम के थक गयी थी मैं सोना था मुझे लेकिन टूर का एक नियम है मैडम ना खुद सोओ न दूसरे को सोने दो। मिशांक का डायलॉग, 

हाँ वही अड़ियल चलती-फिरती बकबक मशीन। बताया तो था तुझे उसके बारे में वही।

सारे लड़के जाके लकड़ियाँ लेके आए और आग जलाई। तब लग-भग पंदरा डिग्री तापमान था और रात और सर्द होने वाली थी। मैं एक कोने में चुप-चाप बैठी हूँ, ये मेरे खीचे हूँ ये कुन्नूर के सुंदर फोटो देख रही थी और वो लोग डंब सराट्स खेल रहे थे, मुझे किसी ने बुलाया नहीं और मैं गयी नहीं और अपनी दुनिया मैं खो गयी वैसे,

“मेरे लिए दुनिया दो हिस्सो में बटी हुई है एक जिसमें में रहती हूँ और दूसरी जो मुझ में रहती है”

सुन। तेरी दोस्त को बोल अपने बॉयफ्रेंड से बातें वो घर जाके भी कर सकती है, अभी यहाँ सब के साथ खेल ले, ट्रुथ और डेयर खेलने वाले है अब हम,

मिशांक की आवाज़ से मैं अपनी बनाई दुनिया से इस दुनिया मैं आ गयी, मेरी क्लास मेट ने मुझे आधे मन से आने का इशारा किया। मैं फोन जेब में रख के फिकी सी मुस्कान लेके वह सब के साथ बैठ गयी ।

खाली बोतल घूमने लगी निजी से निजी सवाल और उससे निजी सवाल का जवाब और जवाब न देने पर ऊटपटाँग डेयर। बोतल का मुँह इसबार मिशांक की और रुका और उसे बताया गया के उसे किसी भी लड़की को डेडिकेट करके कोई भी गाना गाना है। होठों पे नासमझ में आने वाली मुस्कान लिए मेरी और देखा और बेबाकी से बोला “दिस इस फॉर यू !” मैं कुछ भी कहूँ उससे पहले तालियों के बीच गाने लगा !

जीवन से भरी तेरी आँखें मजबूर करे जीने के लिए

सागर भी तरसते रहते है तेरे रूप का रस पीने के लिए.... पीने के लिये…

यह गाना तो मैंने कभी नहीं सोचा था के मिशांक गाएगा वो ऐसा थोडी ना था मेरी नज़रों में ... लड़कियों को देख के उसपे फिदा होने वाला, बेबाक हँसने वाला खुद को हैंडसम हंक मानने वाला, पापा के पैसों पर ऐश करने वाला बेहद ही बदतमीज़ लड़का लगता था मुझे, पर इस गाने के शब्दों ने उसके बारे मैं मुझे दोबारा सोचने पर मजबूर कर दिया था... गाना खत्म हो गया उसने मुझे पूछा कैसा लगा मैंने सिर्फ मुसकुरा के सिर हिला दिया। अब बोतल फिर से घूमने लगी इस बार मुझ पे आके रुकी, मेरे चेहरे की हवाएँ उड़ गयी, सब मेरी और देखने लगे मुझ से न ऊपर देखा गया न कुछ बोला गया 

"अरे यार अब यह डेयर ना ले पाएगी कुछ सवाल ही पूछ लो गेम तो आगे बढ़े। अब इससे सवाल भी क्या पूछे?" 

तेरे फ़र्स्ट किस के बारे में बता ? तूने कभी किसी लड़के को किस की है। मिशांक था! 

जो आँखें अभी तक नीचे थी वो अब उसे घूरे जा रही थी ऐसा सवाल पूछने की उसकी हिम्मत कैसे हुई। मैंने सही सोचा था इस के बारे में। इतनी जुर्रत कैसे हुई उसकी। मैंने ज़रा सा ना मैं सर हिला दिया। ट्रुथ की जगह झूठ बोल दिया 

"मिष... इसे देखके ही लगता है की आजतक इसका कोई बॉय फ्रेंड भी नहीं रहा होगा तू भी क्या पूछ बैठा?"

 सब ठहाके मार हँसने लगे, मैं वहाँ से उठ के चली गयी, अपनी दुनिया में।  

मिशांक ने सालों पहले का वो दरवाज़ा जिसके खुलने पर सिर्फ पीड़ा और तकलीफ़ मिलती है आज ऊटी की हसीन वादियों के बीच फिर से खोल दिया था... 

सुबह के पाँच बजे थे सब थक के सो गए थे। मेरी आँखें न सोने के और आँसू को रोके रखने के वजह से सूज सी गयी थी। तम्बू में बेचैनी -मिशांक की भाषा में हेश टेग सफ़ोकेशन होने लगी थी, न चाहते हुए भी इस बात पे हल्की सी मुसकुराहट आ ही गयी।

सूरज का नामो निशान न था पूरा नीला आसमा तारों से भरा हुआ था और हल्के भूरे बादलों के निशां कुछ और ही राज़ बयां कर रही थी,

बिना पलक झपकाए इस अवर्णविय रात को मैं देखती रही हल्की हवाओं से गालों पे लाली आ गयी थी, मैंने बालों को खुला छोड़ दिया जैकेट निकाल के दोनों हाथों को खोल के आँखें मूंद दी खुद को और प्रकृति को एक होने दिया और ये सुकुन महसूस करने लगी।

“कहते है पहाड़ों की रात भले न देखो पर सुबह कभी मिस नहीं करनी चाहिए। पंछियों की आवाज़ आ रही है थोड़े समय मैं सूरज निकलेगा अभयोदय की शोभा ही कुछ और होगी ”

मिशांक की हर बार बेतुकी लगनेवाली बातों से मैं इस दुनिया में वापस लौटी उसकी और देखने का टालके में जामुनी रंग के होते आसमान को देखने लगी, वैसे तुम गलत दिशा में देख रही हो सूरज उस तरफ से निकलेगा थोड़े आगे चल के सन राइज़ पॉइंट है मैं जा रहा हूँ तुम भी चलो तुम्हारे फोटो कलेक्शन के लिए थोड़े और फोटो मिल जाएगे! साँवली आँखो से जब मैंने उसे देखा तो कहा "जब कल तुम खाना खाके हाथ धोने गयी तो तुम्हारा फोन देखा मैंने तुम्हारे फोटोज़ और चित्रकारी विचार पढ़े मैंने!"

बिना कोई शिकायत किए उस के साथ चलने लगी मैं, उसने बातों का सिलसिला आगे बढ़ाया "कल जब मैंने सवाल पूछा तो तुम्हारे गालों पे सर्जिकल स्ट्राइक करने उतावले होते आँसू को देखा मैंने क्यूँ रोका खुद को!"

मिशांक मेरी जवाब का इंतज़ार किए बिना आगे बोलता रहा "तू यह नहीं है जो तू सबके सामने बनती है तेरी आँखो में ज़िंदगी देखी है, मैंने तुझे ज़िंदगी के असली मायने पता है, एक भोली सी रूहानी मासूम सी बच्ची छुपी है इन चश्मों में सबसे खिची रहने वाली, चिढ़ती याशु, क्यूँ उस नज़रिये को मार रही है। बताना क्या राज़ है तेरी फ़र्स्ट कीस के पीछे... बोल न? "

“क्या जानना है और क्यूँ जानना हैं तुझे जो भी था मेरा बिता कल था सालों बीत चुके है उस बात को, फिर जिस बात को याद करके मुझे सिर्फ और सिर्फ दर्द मिलेगा आखिरकार क्यूँ कहूँ तुझे मैं कुछ भी, होता कौन है तू मुझसे यह सब पूछने वाला, हाँ नहीं थी मैं बचपन से ऐसी। बेबाकीयत से जीनेवाली लड़की थी मैं पर तुझको क्यूँ बताऊ कुछ भी”

चारों और हल्की-हल्की रौशनी हो गयी थी पंछी गाने लगे थे ऊटी के लोकल लोग उठ के अपनी लूँगी लेके रोज़मर्रा के कामों में लग गए थे, हम दोनों घास के टीले पे बैठे पहाड़ से उदित होनेवाले सूर्य रवि के इंतज़ार में बैठे थे । मेरे गालों पे आँसुओं से हुई सर्जिकल स्ट्राइक के निशान थे मिशांक चुप था उसने मेरे हाथों को अपने हाथ में लिया और मैंने बोलना शुरू किया,

“हमारा एक पेढ़िगत मंदिर है हर साल गर्मी की छुट्टियों में हमारा पूरा परिवार भगवान के आशीष लेने वहाँ जाते थे मन को वहाँ एक अदभुत शांति मिलती थी एक सुकून था वहां पे, मुझे भी वहाँ जाना बेहद पसंद था मंदिर और उसका आँगन बहुत बड़ा था यात्रियों के लिए वह ठहरने की अलग से सुविधा थी, तब हम छोटे से घर में रहते थे वो मंदिर विशाल था और भी बहुत लोग होते थे, वहां सबके साथ मैं खेलती थी, वहाँ गाने जाने वाले भजनों पर नाचती हँसती बोलती थी, मैं सबकी लाडली थी वहाँ पे, एक दिन कोई पुजयजी आए थे वहाँ पे ज्यादातर साधुओं को पुजयजी ही कहाँ जाता था, नाम से तो बहुत कम लोग जानते थे, उन पुजयजी को पापा ने नमस्ते किया पैर छुए मम्मी ने छुए और मैंने भी छुए, फिर पापा और पुजयजी बातें कर रहे थे, मैं वहीं खेल रही थी अपने दोस्तों के साथ। पूज्यजी ने मुझे बुलाया और कहा मेरे साथ चलो मेरे पास तुम्हारे लिए बहुत कुछ है, पापा को पूछा पापा ने भी हामी भर दी तो बस मैं तो बेफिकरी से कही भी चल देती। भोजनालय से मिठाई ली हमने मैं बड़े चाव से खाने लगी, फिर वहाँ से गए हम पुजयजी के रूम मैं वहां उनका फोन देखा तभी फोन नया नया आया था याद है वो स्नेक सापवाली गेम मैं तो मज़े से खेलने लगी और उसी की गेम के बारे में हम लोग बात करने लगे, उन्होने मुझे गोद में बैठा लिया मुझे कुछ अजीब नहीं लगा ज्यादतर लोग ऐसा ही करते है, बाद में उनको कुछ याद आया उन्होने अपना कैमेरा निकाला और कहा मैं बहुत खूबसूरत लग रही हूँ, तेरी तस्वीर लेनी है तब तो फोटो खिचवाना मुझे बहुत पसंद था, उन्होने मुझे कुर्सी पर बिठाया, याद है आज भी मैंने आसमानी रंग की लंबी स्कर्ट और टॉप पहना था, पैर पर पैर रख के उन्होने मेरी तस्वीर खिची, मैं तो बहुत खुश हो गयी, उन्होने कहा के उनके फोन में और एक गेम है वो प्लेनवाली चिउ-चिउ-चिउ ऐसी आवाज़ आती रहती है जब खेलते है तो, याद है वो ही वाली अपन तो बहुत खुश उस नयी गेम में डूब गयी मैं, तभी उन्होने मेरे गालों पे हल्की सी पप्पी की मैंने कुछ नहीं किया, सब करते ना उसमें कौन सी बड़ी बात है, फिर तब भी उनके गोद में बैठी थी उन्होने मेरा मुँह घुमाया और होठों पे.... गंदा लगा मुझे "मैंने कहा ऐसा नही करते यह गलत है", मुझे कहा "क्या गलत है" मुझे कहा "क्यूँ तूने यह टीवी में नहीं देखा" मैंने कहा के नहिह ये तो सिर्फ बड़े लोग ही ही करते है" कितनी मासूम थी मैं उन्होने कहा "देख तू लेट जा" तो मैं लेट गयी उन्होने मुझे फिर से चूमा उनके होंठ उनके लंबी सी दाढ़ी उनके धोती और वो गंदी सी फीलिंग आजतक याद है मुझे। तुझे पता तब मैं कितने साल की थी सिर्फ सात साल की इस दुनिया मैं आए सिर्फ सात साल हुए थे मुझे बच्ची थी मैं। हाँ लंबाई की वजह से मैं हमेशा बड़ी दिखती हूँ पर नहीं हूँ मैं। मैं खड़ी हो गयी मैंने कहा मुझे पापा के पास जाना है उन्होने कहाँ थोड़े टाइम रुक के जा पर मैं ना रुकी चली गयी... रास्ते में मेरे दोस्तों ने आवाज़ दी मैं नहीं रुकी सीधा पापा के पास गयी साफ शब्दों में मम्मी-पापा को बताया के" पूज्यजी होठों पे चूमा मुझे।" पापा ने भी पूछा "के उन्होने कहीं काटा तो नहीं मुझे" मैं इस सवाल का अर्थ नहीं समझ पायी पर मैंने मना कर दिया" फिर कुछ याद नहीं है मुझे पापा ने क्या किया? क्या नहीं ? उस आदमी, हैवान की शक्ल तक याद नहीं है मुझे ना आगे का कुछ याद है पर वो एहसास वो छुअन नहीं भूल पायी हूँ मैं। जानना है मुझे क्या हुआ आगे। पर किसे पूछूँ सबको लगता है मैं सब भूल चुकी हूँ। ये है मेरे फ़र्स्ट किस्स का राज़।  

पहाड़ों के पीछे से सूरज निकल चुका था लेकिन अभी तक गरमाहट नहीं पहुँची थी!

मिशांक और मैं याशु एक दूसरे को देखे जा रहे थे मेरे सीने में कैद दरिया छूट गया था तुझे एक बात बोलूं ? मैंने आँख से हामी भरी “तूने लॉं ऑफ कर्मा के बारे में सुना है ?” वो अपना काम तब तक नहीं कर पाता जब तक हम उस इंसान को दिल से माफ़ नहीं कर देते!

मैंने उसकी बात को काट के कहाँ उस हरामी को माफ़। ईम्पोसीबल..

सुन तो सही पहले तू चाहती है के उस दरिंदे को उस के किए की सज़ा न मिले नहीं ना तो तुझे उसे दिल से निकालना पड़ेगा माफ़ करना पड़ेगा तभी उसके कर्म सज़ा दे पाएगे उस हैवान को। प्रोमिस कर मुझे तू कोशिश करेगी, ठीक है वादा....

उसने खुश हो के अपने दोनों हाथों से मेरे गाल को पकड़ के मेरे माथे को चूम लिया मेरे चेहरे पे एक मुस्कान आ गयी 

फ़र्स्ट किस होठों पे हो ऐसा ज़रूरी नहीं अब से जब कोई तुझे पूछे तो मिशांक का नाम लेना!

मैं खिलखिलाके हँस दी.... हमारी दोस्ती का सूरज उदय हो चुका था एक नयी याशु का जनम हूँ आ था ऊटी में।

जो बेबाक थी बेझिझक थी ऊटी की हवाओं की तरह बेख़ौफ़ थी बेफिक्र थी।

डियर डायरी। शायद मिशांक से दोस्ती रहे न रहे, पर मुझे मुझ से मिलाने के लिए पूरी उम्र उसकी कर्ज़दार और शुक्रगुजार रहूँगी मैं। आज की बात उस दोस्त के नाम !


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