मा और बेटे का प्यार
मा और बेटे का प्यार
(प्रस्तुत कहानी में एक अबोध बालक का अपनी माँ के प्रति गहरा प्रेम प्रकट हुआ है।)
एक दिन बडे सवेरे श्यामू की नींद खुली तो उसने देखा घर भर में कुहराम मचा हुआ है. उसकी माँ नीचे से ऊपर तक एक कपडा ओडे हुए कम्बल पर भूमि- शयन कर रही है और घर के सब लोग उसे घेर कर बडे करुण स्वर में विलाप कर रहे हैं. लोग जब उसकी माँ को श्मशान ले जाने के लिए उठाने लगे, तब श्यामू ने बडा उपद्रव मचाया. लोगों के हाथ से छूटकर वह मी के ऊपर जा गिरा. बोला, काकी सो रही है. इसे इस तरह उठा कर कहाँ ले जा रहे हो? मैं इसे न ले जाने दूंगा. लोगों ने बडी कठिनाई से उसे हटाया. काकी के अग्नि संस्कार में भी वह न जा सका. एक बासी राम- राम करके उसे घर पर ही संभाले रही. यद्यपि बुद्धिमान गुरुजनों ने उसे विश्वास दिलाया कि उसकी काकी उसके मामा के यहाँ गयी है, परन्तु यह बात उससे छिपी न रह सकी कि काकी और कहीं नहीं ऊपर राम के यहाँ गयी है. काकी के लिए कई दिन लगातार रोते-रोते उसका रुदन तो धीरे- धीरे शान्त हो गया, परन्तु शोक शान्त न हो सका. वह प्रायः अकेला बैठा- बैठा शून्य मन से आकाश की ओर ताका करता. एक दिन उसने ऊपर एक पतंग उडती देखी. न जाने क्या सोचकर उसका हृदय एकदम खिल उठा. पिता के पास जाकर बोला, काका, मुझे एक पतंग मॅगा दो, अभी मँगा दो। पत्नी की मृत्यु के बाद से विश्वेश्वर बहुत अनमने से रहते थे. अच्छा मँगा दूँगा, कहकर वे उदास भाव से और कहीं चले गये. श्यामू पतंग के लिए बहुत उत्कंठित था. वह अपनी इच्छा को किसी तरह न रोक सका. एक जगह खूंटी पर विश्वेश्वर का कोट टंगा था. इधर-उधर देखकर उसके पास स्टूल सरका कर रखा और ऊपर चढकर कोट की जेबें टटोली. एक चवन्नी पाकर वह तुरन्त वहाँ से भाग गया. सुखिया दासी का लडका भोला, श्यामू का साथी था. श्यामू ने उसे चवन्नी देकर कहा, अपनी जीजी से कहकर गुपचुप एक पतंग और Door मँगा दो. देखो अकेले में लाना कोई जान न पाये। पतंग आयी. एक अँधेरे घर में उसमें Door बाँधी जाने लगी. श्यामू ने धीरे से कहा, भोला, कैसी से न कहो तो एक बात कहूँ। भोला ने सिर हिलाकर कहा' नहीं, किसी से न कहूँगा। श्यामू ने रहस्य खोला, मैं यह पतंग ऊपर राम के यहाँ भेजूंगा. इसको पकड कर काकी नीचे नरेगी. मैं लिखना नहीं जानता नहीं तो इस पर उसका नाम लिख देता। भोला श्यामू से अधिक समझदार था. उसने कहा, बात तो बहुत अच्छी सोची, परन्तु एक कठिनाई है. यह होर पतली है. इसे पकड कर काकी उत्तर नहीं सकती. इसके टूट जाने का डर है. पतंग में मोटी रस्सी हो तो सब ठीक हो जाये। श्यामू गम्भीर हो गया. मतलब यह बात लाख रुपये की सुझायी गयी, परन्तु कठिनाई यह थी कि मोटी रस्सी कैसे मंगायी जाय. पास में दाम है नहीं और घर के जो आदमी उसकी बढकी को बिना दया- मया के जला आये हैं, वे उसे इस काम के लिए कुछ देंगे नहीं. उस दिन श्यामू को चिन्ता के मारे बडी रात तक नींद नहीं आयी. बर के बाया. उटा एक पहले दिन की ही तरकीब से दूसरे दिन फिर उसने पिता के कोट से एक रुपया निकाला. ले जाकर भोला को दिया और बोला, देख भोला, किसी को मालूम न होने पाये. अच्छी-अच्छी दो रस्सियों मँगा दे. एक रस्सी छोटी पडेगी. जवाहिर भैया से मैं एक कागज पर' काकी' लिखवा लूँगा. नाम लिखा रहेगा तो पतंग ठीक उन्हीं के पास पहुँच जायेगी। यी न दो घंटे बाद प्रफुल्ल मन से श्यामू और भोला अँधेरी कोठरी में बैठे हुए पतंग में रस्सी बाँध रहे थे. अकस्मात् उग्र रूप धारण किये हुए विश्वेश्वर शुभ कार्य में विघ्न की तरह वहाँ जा घुसे. भोला और श्यामू को धमका कर बोले- तुमने हमारे कोट से रुपया निकाला है? भोला एक ही डॉट में मुखबिर हो गया. बोला, श्यामू भैया ने रस्सी और पतंग मैगाने के लिए निकाला था। विश्वेश्वर ने श्यामू को दो तमाचे जडकर कहा, चोरी सीख कर जेल जायेगा. अच्छा, तुझे आज अच्छी तरह बताता हूँ। कहकर कई तमाचे जडे और कान मलने के बाद पतंग फाड डाली. अब रस्सियों की ओर देखकर पूछा' ये किसने मँगायी। भोला ने कहा, इन्होंने मंगायी थी. कहते थे, इससे पतंग तानकर काकी को राम के यहाँ से नीचे उतारेंगे। विश्वेश्वर हतबुद्धि होकर वहीं खडे रह गये. उन्होंने फटी हुई पतंग उठाकर देखी. उस लिखा था. काकी'
धन्यवाद 🙏🏻.....
