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Aman kumar

Drama Fantasy Others

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Aman kumar

Drama Fantasy Others

अपराजिता

अपराजिता

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 कभी- कभी अचानक ही विधाता हमें ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व से मिला देला है, जिसे देख स्वयं अपने जीवन की रिक्तता बहुत छोटी लगने लगती है. हमें तब लगता है कि भले ही उस अन्तर्यामी ने हमें जीवन में कभी अकस्मात् अकारण ही दंडित कर दिया हो किन्तु हमारे किसी अंग को हमसे विच्छिन्न कर हमें उससे वंचित तो नहीं किया. फिर भी हममें से कौन ऐसा मानव है जो अपनी विपत्ति के कठिन क्षणों में विधाता को दोषी नहीं ठहराता. मैंने अभी पिछले ही महीने, एक ऐसी अभिशप्त काया देखी है, जिसे विधाता ने कठोरतम दंड दिया है, किन्तु उसे यह नतमस्तक आनन्दी मुद्रा में झेल रही है, विधाता को कोसकर नहीं. उसकी कोठी का अहाता एकदम हमारे बंगले के अहाते से जुडा था. अपनी शानदार कोठी में उसे पहली बार कार से उत्तरते देखा, तो आश्चर्य से देखती ही रह गयी. कार का दूवार खुला, एक प्रौढा ने उतरकर पिछली सीट से एक व्हीलचेयर निकाल कर सामने रख दिया और भीतर चली गयी. दूसरे ही क्षण, धीरे- धीरे बिना किसी सहारे के, कार से एक युवती ने अपने निर्जीव निचले घड को बडी दक्षता से नीचे उतारा, फिर बैसाखियों से ही व्हीलचेयर तक पहुँच उसमें बैठ गयी और बडी तटस्थता से उसे स्वयं चलाती कोठी के भीतर चली गयी. मैं फिर नित्य नियत समय पर उसका यह विचित्र आवागमन देखती और आश्चर्यचकित रह जाती ठीक जैसे कोई मशीन बटन खटखटाती अपना काम किये चली जा रही हो. धीरे- धीरे मेरा उससे परिचय हुआ. कहानी सुनी तो दंग रह गयी. नियति के प्रत्येक कठोर आघात को अति अमानवीय धैर्य एवं साहस से झेलती वह बित्ते भर की लडकी मुझे किसी देवांगना से कम नहीं लगी. में चाहती हूँ कि मेरी पंक्तियों को उदास आँखों वाला वह गोरा, उजले वस्त्रों से सज्जित लखनऊ का मेधावी युवक भी पढे, जिसे मैंने कुछ माह पूर्व अपनी बहन के यहाँ देखा था. वह आईशून्यएशून्यएसशून्य की परीक्षा देने इलाहाबाद (प्रयागराज) गया. लौटते समय किसी स्टेशन पर चाय लेने उत्तरा कि गाही चल पडी. चलती ट्रेन में हाथ के कुल्हड सहित चढने के प्रयास में गिरा और पहिये के नीचे हाथ पड गया. प्राण तो बच गये, पर बायाँ हाथ चला गया. वह विच्छिन्न गुजा के साथ- साथ मानसिक सन्तुलन भी खो बैठा. पहले दुःख मुलाने के लिए नशे की गोलियों खाने लगा और अब नूरमंजिल की शरण गही है. केवल एक हाथ खोकर ही उसने हथियार डाल दिये. इबर बन्दा, जिसका निचला थड है निष्याण मांसपिंड मात्र, सदा उत्फुल्ल है, चेहरे पर विषाद की एक रेखा भी नहीं, बु. ड्विदीप्त आँखों में अवम्य उत्साह, प्रतिपल, प्रतिक्षण भरपूर उत्कट जिजीविषा और फिर कैसी- कैसी महत्त्वाकांक्षाएँ! मैडम, आप लखनऊ जाते ही क्या मुझे ड्रग रिसर्च इंस्टिट्यूट से पूछकर यह बताएँगी कि क्या वहाँ आने पर मेरे विषय माइक्रोबायोलाजी से सम्बन्चित कुछ सामग्री मिल सकेगी? मैडम आप कह रही थीं कि आपके दामाद हवाई के ईस्ट वेस्ट सेंटर में हैं. क्या आप उन्हें मेरा बायोडाटा भेजकर पूछ सकेंगी कि मुझे वहाँ की कोई फेलोशिप मिल सकती है? यहाँ कभी सामान्य- सी हड्डी टूटने पर या पैर में मोच आ जाने पर ही प्राण ऐसे कंठगत हो जाते हैं जैसे विपत्ति का आकाश ही सिर पर टूट पडा है और इधर यह लडकी है कि पूरा निचला पड सुन्न है, फिर भी बोटी- बोटी फडक रही है. ऊँची नौकरी की एक ही नीरस करवट में उसकी निरन्तर प्रतिभा डूबती जा रही है. आजकल वह आईशून्यआईशून्यटीशून्य मद्रास (चेन्नई) में काम कर रही है. जन्म के अठारहवे महीने में ही जिसकी गरदन से नीचे का पूरा शरीर पोलियो ने निर्जीव कर दिचा हो, उसने Kiss अ. द्भुत साहस से नियति को अँगूठा दिखा, अपनी थीसिस पर डॉक्टरेट ली होगी! मैडम, में चाहती हूं कि कोई मुझे सामान्य- सा सहारा भी न दे. आप तो देखती हैं, मेरी माँ को मेरी कार चलानी पडती है. मैंने इसी से एक ऐसी कार का नक्शा बना कर दिया है, जिससे में अपने पैरों के निर्जीव अस्तित्व को भी सजीव बना दूंगी. यह देखिए, मैंने अपनी प्रयोगशाला में अपना संचालन कैसा सुगम बना लिया है. मैं अपना सारा काम अब स्वयं निपटा लेती हूँ। उसने मुझे तस्वीरें दिखायी. समस्त सामग्री उसके हाथों की पहुँच तक ऐसे वरी थी कि निचला पड ऊपर उठाये बिना ही वह मनचाही सामग्री मेज से उतार सकती थी. किन्तु उसकी आज की इस पटुता के पीछे है एक सुदीर्घ कठिन अभ्यास की यातनाप्रद भूमिका. स्वयं डॉशून्य चन्द्रा के प्रोफेसर के शब्दों में, हमने आज तक दो व्यक्तियों द्वारा सम्मिलित रूप में नोबेल पुरस्कार पाने के ही विषय में सुना था, किन्तु आज हम शायद पहली बार इस पी- एचशून्यडीशून्य के विषय में भी कह सकते हैं. देखा जाय तो यह डॉक्टरेट भी संयुक्त रूप से मिलनी चाहिए। डॉशून्य चन्द्रा और उनकी अद्. भुत साहसी जननी श्रीमती टीशून्य सुब्रह्मण्यम् को पचीस वर्ष तक इस सहिष्णु महिला ने पुत्री के साथ- साथ कैसी कठिन- साधना की और इस सावना का सुखद अन्त हुआ एक हजार नौ सौ छिहत्तर में, जब चन्द्रा को डॉक्टरेट मिली माइक्रोबायोलाजी में, दिव्यांग स्त्री- पुरुषों में, इस विषय में डॉक्टरेट पाने वाली डॉशून्य चन्द्रा प्रथम भारतीय है. जब इसे सामान्य ज्वर के चौथे दिन पक्षाघात हुआ तो गरदन के नीचे इसका सर्वांग अचल हो गया. भयभीत होकर हमने इसे बडे- से- बडे डॉक्टर को दिखाया. सबने एक स्वर में कहा- आप व्यर्थ पैसा बरबाद मत कीजिए. आपकी पुत्री जीवन भर केवल गरदन ही हिला पायेगी. संसार की कोई भी शक्ति इसे रोगमुक्त नहीं कर सकती। सहसा श्रीमती सुब्रह्मण्यम का कंठ अवरुद्ध हो गया, फिर वे धीमे स्वर में मुझे बताने लगी, मेरे गर्भ में तब इसका भाई आ गया था. इसके भयानक अभिशाप के बावजूद मैंने कभी विथाता से यह नहीं कहा कि प्रभी, इसे उठा लो, इसके इस जीवन से तो मौत भली है. मैं निरन्तर इसके जीवन की भीख माँगती रही. केवल सिर हिलाकर यह इधर- उधर देख- भर सकती थी. न हाथों में गति थी, न पैरों में, फिर भी मैंने आशा नहीं छोडी. एक आचोपेडिक सर्जन की बडी ख्याति सुनी थी, वहीं ले गयी। एक वर्ष तक कष्टसाध्य उपचार बला और एक दिन स्वयं ही इसके ऊपरी बड में गति आ गयी, हाथ हिलने लगे, नन्हीं उँगलियों मुझे बुलाने लगीं. निर्जीव घड को मैंने सहारा देकर बैठना सिखा दिया. पाँच वर्ष की हुई, तो मैं ही इसकी स्कूल बनी. मेधावी पुत्री की विलक्षण बुद्धि ने फिर मुझे चमत्कृत कर दिया, सरस्वती स्वयं ही जैसे आकर जिह्वाग्र पर बैठ गयी थीं. बंगलौर के प्रसिद्ध माउंट कारमेल में उसे प्रवेश दिलाने में मुझे कॉन्वेंट दूद्वार पर लगभग थरना ही देना पडा. नहीं मिसेज सुब्रह्मण्यम्' मदर ने कहा, हमें आपसे पूरी सहानुभूति है, पर आप ही सोचिए आपकी पुत्री की कीलचेयर कौन पूरे क्लास में घुमाता फिरेगा? आप चिन्ता न करे मदर, मैं हमेशा उसके साथ रहूँगी. और फिर पूरी कक्षाओं में दिव्यांग पुत्री की कुरसी की परिक्रमा में स्वयं कराती. वे पीरियड- दर- पीरियड उसके पीछे खडी रहतीं. प्रत्येक परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर चन्द्रा ने स्वर्ण पदक जीते. बीशून्य एस- सीशून्य किया, प्राणिशास्त्र में एमशून्यएस- सीशून्य में प्रथम स्थान प्राप्त किया और बंगलौर के प्रख्यात इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में अपने लिए स्पेशल सीट अर्जित की. अपनी निष्ठा, धैर्य एवं साहस से पाँच वर्ष तक प्रोफेसर सेठना के निर्देशन में शोधकार्य किया. इसी बीच माता- पिता ने पेंसिलवानियाँ से व्हीलचेयर मंगवा दी, जिसे डॉशून्य चन्द्रा स्वयं चलाती हुई पूरी प्रयोगशाला में बडी सुगमता से घूम सकती थी. लेदर जैकेट से कठिन जिरह बख्तर में कसी उस हँसमुख लडकी को देख मुझे युद्ध- क्षेत्र में डटे राणा साँगा का ही स्मरण हो आता! क्षत- विक्षत शरीर में असंख्य घाव, आभामंडित भव्य मुद्रा. मैडम, आप तो लिखती हैं, मेरी ये कविताएँ देखिए. कुछ दम है क्या इनमें? मैंने जब ये कविताएँ देखीं, तो आँखें भर आयीं. जो उदासी उसके चेहरे पर कभी नहीं आने पायी, वह अनजाने ही उसकी कविता में छलक आयी थी. फिर उसने अपनी कढाई बुनाई के सुन्द नमूने दिखाये. लडकी के दोनों हाथ जैसे दोनों पैर का भी काम करते हों, निरन्तर मशीनी खटख में चलते रहते हैं. जर्मन भाषा में माता- पुत्री दोनों ने मैक्समूलर भवन से विशेष योग्यता सहित परी उत्तीर्ण की. गर्ल गाइड में राष्ट्रपति का स्वर्ण कार्ड पाने वाली वह प्रथम दिव्यांग बालिका थी. व नहीं, भारतीय एवं पाश्चात्य संगीत दोनों में उसकी समान रुचि है. अलबम को अपनी निर्जीव व पर रखकर वह मुझे अपने चित्र दिखाने लगी. पुरस्कार ग्रहण करती डॉशून्य चन्द्रा, प्रधानमन्त्री साथ मुस्कुराती खडी डॉशून्य चन्द्रा, राष्ट्रपति को सलामी देती बालिका चन्द्रा और व्हीलचेयर में जैकेट में जकडी वैसाखियों का सहारा लेकर अपनी डॉक्टरेट ग्रहण करती डॉशून्य चन्द्रा. मेरी बही इच्छा थी, में डॉक्टर बनूँ. मैं अपंग डॉशून्य मेरी वर्गीज के सफल जीवन की कहानी पड चुकी थी. परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने पर भी मुझे मेडिकल में प्रवेश नहीं मिला. कहा गया मेरा निचला यह निजीय है, मैं एक सफल शल्यचिकित्सक नहीं बन पाऊँगी। किन्तु डॉशून्य चन्द्रा के प्रोफेसर के शब्दों में, मुझे यह कहने में रंथमात्र भी हिचकिचाहट नहीं होती कि डॉशून्य चन्द्रा ने विज्ञान की प्रगति में महान योगदान दिया है. चिकित्सा ने जो खोया है, वह विज्ञान ने पाया। चन्द्रा के अलबम के अन्तिम पृष्ठ पर उसकी जननी का बडा- सा चित्र जिसमें वे जेशून्यसीशून्य बंगलौर दुबारा प्रवत्त एक विशिष्ट पुरस्कार ग्रहण कर रही है' वीर जननी' का पुरस्कार. बहुत बडी- बडी उदास आँखें, जिनमें माँ की व्यथा भी है और पुत्री की भी, अपने सारे सुख त्यागकर नित्य साया बनी, पुत्री की पहिया- लगी कुरसी के पीछे चक्र- सी घूमती जननी, नाक के दोनों ओर हीरे की दो जगमगाती लौंगों, अधरों पर विजय का उल्लास, जूडे में पुष्पवेणी. मेरे कानों में उस अ. द्भुत साहसी जननी शारदा सुब्रह्मण्यम् के शब्द अभी भी जैसे गूंज रहे हैं, ईश्वर सब दूवार एक साथ बन्द नहीं करता. यदि एक दूवार बन्द करता है तो दूसरा दुवार खोल देता है।


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