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Aman kumar

Children Stories Drama Children

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Aman kumar

Children Stories Drama Children

बेबी का एक दिन

बेबी का एक दिन

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बेबी का एक दिन.

आज सुबह मैंने मम्मी के आँचल से सटने की कोशिश की. उन्होंने रोज की तरह झिडक दिया- परे हट! अब तू बडा हो गया है" और वे काम में लग गई. मैं उनसे कहना चाहता था कि मैं अभी उतना बडा नहीं हुआ हूँ जितना वे समझती हैं. बस इतना बडा हुआ हूँ कि एक साथ दो केले खा सकूँ. चाचा के हाथों से बिस्कुट का पैकेट झपटकर दूर भाग सकूँ. मेरी हथेलियों अब भी नींबू के पत्ते जितनी छोटी हैं. बडा होने की मुझे कोई जल्दी भी नहीं है. चंदा मामा जो रोज सपनों में आकर मुझे लोरी सुनाते हैं. तारे जो मेरे साथ लुका- छिपी का खेल खेलते हैं- क्या पता मेरे बडा होते ही ये पास आना छोड दें. मैं माँ को बता देना चाहता हूँ कि मेरे भीतर मुझसे भी छोटा कोई बच्चा है. वह आँख खुलते ही माँ के आँचल में दुबकने को व्याकुल हो उठता है. उनका झिडक देना मुझे दुखी कर देता है. उस समय में खुद को यही समझाता हूँ कि वे मी हैं. मेरे बारे में मुझसे ज्यादा जानती हैं. अगर वे कहती हैं कि में बडा हो गया हूँ तो ठीक ही कहती होंगी. क्या में सचमुच बडा हो चुका हूँ? क्या माँ सचमुच ऐसा समझती है? तो क्यों न इसे आजमा लिया जाए. यही सोचकर में पलंग से उतरने लगा. अचानक मम्मी की चीख सुनाई पडी. वे रसोई से दौडती हुई मेरे पास पहुंच- अरे रे! करता है तू अभी छोटा है, गिर जाएगा' उन्होंने मुझे पीछे से जकड किया. उस समय उनकी साँस चौकनी- सी चल रही थी. हालांकि इससे पहले भी में पलंग से उत्तर चुका हूँ. मम्मी- पापा के सामने भी उतर चुका हूँ. बावजूद इसके, मम्मी मुझे निरा बच्या समझती है.

बडी उलझन है. में खुद को बडा मानूं या छोटा? घबरावर में पीछे हट गया. मुझे लिटाकर, दुबारा न उतरने की हिदायत देती हुई माँ फिर रसोई में चली गई. थोडी देर बाद मुझे' निन्नी' आ गई. विविध को जगाओ, स्कूल जाएगा. पापा की आवाज से मेरी नींद उचट गई. स्कूल को नाम सुनते ही मुझे रोना आने लगा. पापा- मम्मी बच्चों को स्कूल क्यों भेजते हैं. ऐसी कौन- सी बात है जो मुझे नहीं आती. मैं कागज पर कलम चला लेता हूँ, रिमोट कार को इतनी अच्छी तरह चुमा सकता हूँ कि पापा को छका सकें. एक दिन मम्मी कह रही थी, मेरे मोबाइल में आवाज नहीं आती. मैंने यह बात दादू को बता दी है. ये मेरे लिए नया मोबाइल लाने वाले हैं. पापा दिन- भर ऑफिस में जाने कैसे रह लेते हैं. मुझे तो अपना स्कूल कैदखाना लगता है. मैडम हर समय तनी- तनी घूमती रहती हैं. अपने घर पर में जरा- सा मुस्कुराऊँ तो हर कोई खिलखिलाने लगता है. मैडम जाने कैसी हैं जो हँसी ही नहीं.

कल दादू पूछ रहे थे. विविध तुम्हारे दोस्त का क्या नाम है? में चुप रहा. कैसे बताता कि स्कूल में मैंने कोई दोस्त नहीं बनाया. क्लास में कुछ बच्चे मुझसे भी छोटे हैं. वे आते हैं, तो आँखें लाल होती हैं. जितनी देर कक्षा में हों, बस रोते रहते हैं. उन्हें कौन समझाए कि मम्मियों घर रहती हैं. वे पढने नहीं आतीं. पढना तो हम बच्चों की पडता है. पापा कहते हैं कि मेरे स्कूल में खिलीने हैं. खिलीने तो मेरे घर पर भी बहुत से हैं. चाचू से जिस खिलौने की फरमाइश करूँ, अगले दिन घर ले आते हैं. सिर्फ खेलने के लिए स्कूल जाना क्यों जरूरी है. खेल तो में घर भी लेता है. पापा मेरे स्कूल और पढाई की बातें कर रहे हैं, फ्ता नहीं क्यों? ऐसी बातें मेरे दिमाग के ऊपर से गुजर जाती हैं. वे फूलों और तितलियों की बात क्यों नहीं करते. दीवार पर दौड लगाने वाली छिपकली की बात करें, तो भी मुझे अच्छा लगेगा. जब वह मच्छर के पीछे दौडती है तो कितनी फुर्तीली दिखती है परंतु माँ क्यों चुप हैं? वे तो मानती हैं नाकि में अभी छोटा हूँ. यही बात पापा को बता क्यों नहीं देती.

समझा. मम्मी तो मुलक्कड हैं? वे कभी मुझे छोटा बताती हैं, कभी बडा. उनकी बात सुनकर तो मैं उलझन में पड जाता हूँ. मैं दो केले एक साथ खा सकता हूँ इससे तो लगता है कि बडा हूँ लेकिन जब बस्ता लेकर स्कूल जाता हूँ तो पीठ उसके बोझ से पिरपिराने लगती है. उस समय में फैसला नहीं कर पाता कि खुद को छोटा मानें या बडा? उठी विविध स्कूल का समय हो गया' पापा की आवाज आई. ये ऑफिस जाने की तैयार हैं. थोडी देर में मोटर साइकिल उठाएँगे और, फुरे. केवल मम्मी रह जाएँगी. पापा निकल जाएं तो में एक नींद और ले सकता हूँ. कल छवि अपने स्कूल की बढाई करने लगी तो मुझसे भी रहा नहीं गया. मैंने उससे कहा कि मेरा स्कूल बहुत अच्छा है. उसमें बडे- बडे चार कमरे हैं.

छवि के सामने मैंने जो कहा तो कहा, पर सच्ची बात तो यह है कि स्कूल का नाम सुनते ही मुझे रोना आ जाता है. कल दादी पडोस की ऑटी को बता रही थीं कि में पांच साल से दो महीने कम का हूँ. क्या में सचमुच इतना बुरा हूँ कि बचपन के कुछ साल भी अपनी माँ के साथ नहीं गुजार सकता?

मैं रोता रहा और मम्मी मुझे तैयार करती रहीं. उन्होंने मुझे साबुन से नहलाया, तेल लगाया, पर रोज की तरह सब बेकार. मेरे आँसू बम ही नहीं रहे थे. मम्मी कहे जा रही थीं- मेरा राजा बेटा, स्कूल जाएगा, खूब पढेगा, स्कूल में सबसे अव्वल आएगा. पर मुझे तो स्कूल की सारी बातें उल्टी लगती हैं. मैं घर में ईशान हुआ करता था. दादू' ईशू' कहकर बुलाते तो बहुत अच्छा लगता था. पापा ने स्कूल में नाम लिखाया तो बोले कि यहाँ तुम्हारा नाम विविध होगा. मैं समझ नहीं सका. जो ईशान है, वह विविध कैसे हो सकता है. स्कूल की और भी कई बातें उल्टी- पुल्टी हैं, जिसे हम घर में' केला' कहते हैं, मेडम उसको' बनाना' कहती है. यह सब मुझे तो जैचता नहीं. भला यह भी कोई नाम हुआ? जितनी मिठास केला में है, उतनी बनाना में कहाँ? फिर जो पहले से बना- बनाया हो, उसको और क्या बनाना? मुझे तो केला ही अच्छा लगता है. मेम' केला को बनाना' क्यों कहती हैं, यह किसी ने नहीं बताया. मेम ने भी नहीं, जो दुनिया भर की चीजों के बारे में जानती हैं. इसलिए पहली बार जब मेम ने कहा, लो विविध बनाना खाओ. तो में चौंक पडा था. बाजार की चीज खाने की आदत जो न थी. परंतु जब फल हाथ में आया तो सहसा मेरे मुँह से निकल पडा- अरे! यह तो मेरा पसंदीदा फल केला है।

आखिर स्कूल आना ही पडा. पहले स्कूल के नाम पर रो पडता था. यह सोचकर कि रोऊगाँ तो मम्मी- पापा जरूर पिघल पडेंगे. मेरी आँखों में आंसू वे देख ही नहीं पाएंगे. कभी- कभी मुझे लगता है कि वे मुझसे ज्यादा मेरे स्कूल को प्यार करते हैं. तभी मेरे रोने का उन पर असर नहीं पडता. इन दिनों में चुपचाप स्कूल आने लगा हूँ. विना रोए स्कूल आने में मुझ पर क्या बीतती है, यह में बता नहीं सकता. फिर भी में अपने कई साथियों से बेहतर हूँ. चाचाजी मुझे गाडी से छोड आते हैं. रास्ते में जब में अपने कई- कई साथियों को रिक्शे पर लदे देखता हूँ.

तो बडा दुख होता है. तब सोचता हूँ अच्छा होता, स्कूल उडकर हमारे घर पहुंच जाया करता. हमें यूं मुँह- अंधेरे नहा- धोकर स्कूल आना ही नहीं पडता.

प्रेयर हुई. बताया गया कि ईश्वर हम सबका पिता है. हम प्रार्थना करते हैं कि यह हमारी गलतियों को माफ कर दे. लेकिन में तो कभी गलती नहीं करता. गलती हो जाए तो तुरंत माफी मांग लेता हूँ. उस दिन खेल- खेल में दादू का चश्मा टूट गया था. मैं डरा हुआ था. दादू आकर डाटेंगे. शाम को जब वे घर पहुंचे तो में दौडकर मम्मी के कमरे में घुस गया. दूसरे कमरे से dदादू की आवाज आने लगी. वे दादी से बात कर रहे थे. मैं घबरा गया. कुछ देर बाद दादू के कदमों की आवाज आई. मैं मम्मी से सट गया- विविध, मेरा चश्मा किसने तोडा? दादू ने पूछा. उनकी आवाज तेज थी. मैं इतना भी नादान नहीं हूँ कि दादू के होठों में छिपी हँसी की पहचान न सकूँ. मैंने। में खेल रहा था. गलती हो गई दादू, मैं गलती के एहसास से दोहरा हुआ जा रहा था. दादू ने हँसते हुए गोद में उठा लिया. एक बार दूध का गिलास लुढक गया था. मुझसे किसी ने नहीं कहा था कि माफी मांगनी चाहिए. उलटे सब हँस पडे थे. जैसे कोई बात ही न हो. स्कूल में तो मैंने कभी भूल नहीं की. फिर भी माफी! मेम कहती हैं, प्रेयर में हिस्सा नहीं लोगे तो भगवान नाराज हो जाएँगे, दादी एक कहानी सुनाया करती है. एक लकडबध्या हर रोज एक आदमी खाता था. गाँव वाले रोज एक आदमी को उसके पास भेज देते. एक बार एक आदमी लकडबध्या के पास पहुंचने में लेट हो गया. उसे देरी के लिए माफी भी माँग ली. फिर भी लकडबच्या नाराज रहा- क्या ईश्वर भी खूंखार लकडबघ्या है? एक दिन यही मैंने दादी से भी पूछ लिया था. वे घबरा गई' चुप- चुप! ऐसा नहीं कहते. भगवान नाराज हो जाएंगे। दादी भले ही डरें. मैं नहीं डरता. मुझे ऐसा भगवान जरा- भी पसंद नहीं जो बच्चों पर रौब जमाता है.

मैडम ने स्कूल वर्क में खडी लाइन खींचने की दी. मुझे चौंकना ही था. क्या यही पढाई है? ऐसे काम तो दादू मुझसे रोज करवाते हैं. स्कूल में कई बच्चों को कलम पकडनी नहीं आती. पर मुझे तो दादू साल- भर पहले ही यह सब सिखा चुके हैं. खडी लाइन के बारे में बताते हुए मेम ने कहा था कि यह कुछ ऐसा ही है जैसे मैदान में सब बच्चों को कतार में खडा कर देना. मेरे जी में आया, एक झटके में कागज पर लंबी- लंबी लाइने खींचकर उन्हें थमा दूँ. लेकिन मैडम भी गजब हैं. कहती हैं- प्रत्येक लाइन सीधी और ऊपर वाली पंक्ति से शुरू होकर नीचे वाली पंक्ति पर समाप्त हो जानी चाहिए, पता नहीं इससे क्या सिखाना चाहती हैं. मैं मैडम से पूछना चाहता था. पर हिम्मत न पडी. एक घंटे तक हम खडी लहान खीचते रहे. बीच में दूसरी मैडम भी आ गई. वे सब मिलकर आपस में बातचीत करने लगीं. एक मैडम अपने बच्चे के लिए स्वेटर चुन रही थी, उन्हें घर पर रहना चाहिए, ताकि जल्दी से जल्दी स्वेटर तैयार कर सके. देर हुई तो इनके बच्चे को सदी लग सकती है' मेरे दिमाग में आया. खडी लाइन न जाने कितनी बार खींच चुका हूँ, लेकिन आज जाने क्यों घबराहट हो रही थी. हर समय यह डर बना रहता था कि हाव कहीं भटक ही न जाए. काफी देर बाद घबराहट कम हुई. फिर तो हाथ भी अपने आप संघ गया. बाद में मैडम ने कापी जाँची तो' गुड' के साथ टॉफी भी बना दी. मुझे लगा मानो मन में मिठास घुल गई हो. दादू ठीक कहते है- अच्छे काम की कल्पना में भी मिठास भरी होती है। मैडम ने लंच करने को कहा. मैं अपना टिफिन निकालने लगा. अपना लंच बॉक्स खोलकर मैडम भी हमारे साथ बैठ गईं. कुछ बच्चे तो लंच का नाम सुनते ही उछलने लगते हैं. मुझे यह भी बंधा- बंधा लगता है. भूख न हो तब भी खाना पडता है. फिर भी इतने सारे बच्चों के साथ बैठकर खाना बुरा भी नहीं है. तरह- तरह की चीजें एक- साथ खाने को मिल जाती हैं. कमी इस बात की है कि अतने बच्चों के टिफिन से एक- एक टुकडा भी खाओं तो पेट भर जाता है. अपने पसंदीदा भोजन का दूसरा कौर खाने के लिए भूख ही नहीं बचती. लंच के बाद का समय तेजी से बीता. मैडम आपस में बतियाती रहीं. फिर कुछ देर बाद उन्होंने हमें कविता वाद कराने की कोशिश की, फाइव लिटिल मंकी. जंपिंग ऑन दि बेड, मेरी पसंदीदा कविता. उसे एक चार फिर गाने का अवसर मिला. मुझे पूरी कविता याद नहीं है. बीच- बीच में अटक जाता हूँ. उस दिन भी यही हुआ. परंतु मेडम ने खूब शावाशी दी. उसके बाद होमवर्क लिखने के लिए डायरी माँगी. थोडी देर बाद हमारी छु. ट्टी हो गई.

घर आने के बाद खाना खाकर मैं मम्मी के साथ लेट गया. दो घंटे बाद आँखें खुली. शाम का समय बहुत तेजी से भागता है. होमवर्क' कराने के बाद मम्मी रसोई के काम में लगा जाती है. मैं खेल में. कुछ देर बाद दादू, पापा, चाचू एक- एक कर घर लौटने लगते हैं. हर कोई मेरे लिए कुछ न कुछ लाता है. अगर न लाएँ तो मुझे यह अधिकार है कि उन्हें दुकान तक खींचकर ले जाऊँ.

दादू. आज क्या लाए हो? घर में घुसते ही मेरा पहला सवाल होता है. कुछ नहीं, दादू जवाब देते हैं. पर मैं समझ जाता हूँ कि वे मजाक कर रहे हैं. मैं उनपर टूट पडता हूँ. जेब में, मुट्ठी में या बैग में. कुछ न कुछ मिल ही जाता है. अचानक मुझे अपना स्कूल वर्क याद आ गया. मैंने दादू से पूछ लिया- दादू खडी लाइन क्यों खींचते हैं? दादू ने मुझे गोद में विठा लिया. जब भी कोई खास बाल सिखानी हो, वे यही करते हैं. में उनके चेहरे की ओर देखने लगा. वे बताने लगे- हर पंक्ति एक बिंदू से आरंभ होकर दूसरे बिंदू पर समाप्त होती है. जरा- सा भटकाव उसको आडा- टेढा कर सकता है। हूँ' मेरे मुँह से निकला. ये हमें सिखाती हैं कि आदमी को हमेशा अपने लक्ष्य पर निगाह रखनी चाहिए. उसे पता होना चाहिए कि पंक्ति कहाँ से शुरू होकर कहाँ समाप्त होगी, और दोनों के बीच छोटे से छोटा रास्ता क्या हो सकता है. जरा- सी लापरवाही उसे कहीं से कहीं ले सकती है. लाइन' माने अनुशासन. उस दिन दादू से यही सीखने को मिला. वैसे दादू की कुछ बातें मुझे एकाएक समझ में नहीं आतीं. कई बार तो समझ में आती ही नहीं है. उस समय मैं उनसे और सवाल करता हूँ. उनके पास मेरे हर सवाल का जवाब होता है. बिना चिढे वे समझाते हैं. उनके बारे में बस एक बात मेरे मुँह से निकलती है- मेरे दादू सबसे निराले हैं। सब खाना खाकर निपट चुके हैं. आज मैंने दादू के साथ कंप्यूटर पर बैठकर अपने पसंदीदा वीडियो देखे. बंदर का नाच देखकर तो मेरी तालियाँ खुद- ब- खुद बजने लगीं थीं. पापा को सवेरे निकलना पडता है. इसलिए खाना खाते ही वे जल्दी सोने चले जाते हैं. मैं दादू के पास रह जाता हूँ. कभी कहानियाँ सुनने, तो कभी वीडियो देखने के बहाने. विविध, चलो दूध पियो, सोने से पहले एक और चुनौती है. खुशी- खुशी या मन को मारकर, दूध का गिलास खाली करना. दूध पिलाने के लिए सब अपने- अपने तर्क आजमाते हैं. मेरी बात कोई नहीं सुनता. हर कोई कहता है- दूध से ताकत आती है।

में उनसे कहना चाहता हूँ कि दिनभर में उन्होंने जो मुझे खिलाया है, सभी से ताकत आती है. जब तो मैं सोने जा रहा हूँ. तकिये पर सिर रखकर आँख बंद कर लेनी है. उसमे ताकत की जरूरत ही नहीं है. पर मेरी कोई नहीं सुनता. दूध पिलाने के लिए दादू तो मानो हर दिन नया खेल सोचकर रखते हैं. कभी दर्पण में मौजूद विविध को खिलाते हुए दूध पिलाना है तो कभी कटोरी को खाली कर उसे फर्श पर नधाना है. में उनकी बातों में आ ही जाता हूँ. यह मुझे अच्छा भी लगता है. अब सोने का समय है. परंतु मुझे नींद नहीं आ रही. मैं कुछ देर और पांपा- मम्मी से देर बातचीत करना चाहता हूँ. पर क्या करूं उन दोनों को सुबह जल्दी उठना है. पापा ऊंघने लगे हैं. मुझे भी सोना पडेगा. कुछ दिनों से एक परी मेरे पास आने लगी है. वह मेरे साथ खेलती है. बातचीत करती है. वह मुझे ऐसी जगह ले जाती है जहां खिलौनों के पेड हैं. टॉफी की आडियों हैं. दूध का हिलोर लेता समंदर है. उसमें तितलियाँ अखरोट की नाव खेती हैं. अपनी नन्हीं नाव पर बिठाकर वे मुझे दूर तक ले जाती है. वहीं परियों की राजकुमारी रहती है. मैं उस दुनिया का राजकुमार हूँ. वहीं केवल मेरी चलती है. कोई मुझे पढने को नहीं कहता. न कोई खेलने से टोकता या मना करता है. ना ही ऐसा कुछ करने को कहा जाता है. जो मुझे पसंद न हो. पूरी रात कैसे बीत जाती है, पता ही नहीं चलता. सच कहूँ, यही वह जादू है जो मुझे पूरे दिन खिला- खिला रखता है.



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