लव इस राइट
लव इस राइट
रघु एक प्यार में हारा हुआ आशिक था जिसकी गर्ल फ्रेंड ने उसे छोड़कर उसी के ही एक दोस्त से शादी कर ली थी। इस बात का उसे बहुत अफ़सोस था। वो समझने लगा था की उसके लिए प्यार व्यार सब बेकार की बातें हैं।
उस साल मई मैं रघु के बड़े भाई का शादी हुआ। इस शादी मैं उसकी मुलाक़ात उसके भाभी की छोटी बहन से हुए। वो पढ़ी लिखी और समझदार थी। उसने हिंदी मैं M. A. किया था।
उसका नाम समीरा था। ऐसे ही बात करते करते रघु बोला की वो शादी में विश्वास नहीं करता। उसका प्यार से भरोसा ही उठ गया है। समीरा ने इसका कारण पूछा।
रघु ने अपनी पूरी कहानी सुनाई। समीरा ने रघु को बोला की सभी लड़कियां ऐसी नहीं होती है। उसका बॉयफ्रेंड भी उसे धोका दे रहा था। वो उसके साथ उसकी सबसे अच्छी सहेली के साथ भी रिलेशनशिप में था। इस बात का जब उसको पता चला तो उसने उसके साथ संपर्क तोड़ दिया।
अब वो अपने कम्पटीटिव एग्जाम की तैयारी कर रही है, और अपने घर के पास मैं एक अनाथ आश्रम मैं जाकर वालंटियर के तौर पर भी काम करती है। इसके लिए उसे कोई पैसा नहीं मिलता बस खुशी मिलती है।
उसने रघु को भी बुलाया उस अनाथ आश्रम मैं काम करने के लिए।
रघु पहले तो हिचखिचाया, फिर बाद में वो मान गया। वो रोज़ उधर जाने लगा और गरीब, बेसहारा, अनाथ बच्चों के साथ खेलता, उनसे बात करता, उनका दुख सुख बांटता, उनके साथ खेलता, उन्हें पढ़ाता, और कुछ ही दिनों मैं उन सबसे गहरी दोस्ती हो गयी। वो रघु से रघु भैया बन गया।
अब रघु को प्यार का एक अलग ही न्यारा और साफ नज़रिया दिखने लगा। अब वो उन सब बच्चों से प्यार करने लगा जो उस अनाथ आश्रम मैं रहते हैँ।
रघु उनके लिया बीच बीच मैं गिफ्ट्स भी ले जाता। और रोज़ उनके साथ क्रिकेट और लूडो खेलता।
एक दिन आश्रम से आते समय रघु ने समीरा से कहा की अब उसका नज़रिया प्यार और शादी के प्रति बिलकुल ही बदल गया है। अब वो समझ गया है की प्यार का अर्थ सिर्फ गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड नहीं है। प्यार एक पवित्र रिश्ता है। अपने माता पिता, भाई बहन, दोस्त, इन सब से प्यार जैसे पवित्र है!
समीरा को ये सब सुनकर बहुत खुशी मिली। ऐसे ही दो वर्ष बीत गए। अब समीरा की शादी की उम्र हो गयी थी। उसने अपने माता पिता से रघु को अपने जीवन साथी बनाने की इच्छा जाहिर की। अब उसकी बड़ी बहन भी उस घर में व्यही थी। ये तो सोने पे सुहागा होने वाली बात थी। उसके पिता माता दोनों बहुत खुश हुए उनकी लड़की के इस निर्णय से।
जल्द ही दोनों की शादी हो गयी। कुछ साल बाद दोनों माता पिता बन गए। लेकिन दोनों ने अनाथ आश्रम जाना नहीं छोड़ा। एक दिन अनाथ आश्रम में एक महीने की एक छोटी सी लड़की लायी गयी। इसे देखकर समीरा की ममता जाग गयी। उसने इस नन्ही सी जान को गोद ले लिया।
और रघु अपने दफ़्तर के साथ, अपने परिवार और अनाथ आश्रम की जिम्मेदारी भी उठा रहा है।
ये थी रघु की कहानी जो समीरा से मिलने के बाद उसके प्यार और शादी को लेकर जो गलत सोच थी, उसमें परिवर्तन आया। अब वो एक खुशहाल और जिम्मेदारी से भरा जीवन जी रहा है। आप सब भी ये हमेशा याद रखियेगा की जीवन जीने के लिए दूसरों की मदद करना बहुत जरूरी है। हमें जीवन मैं वही सब मिलता है जो हमने कभी ना कभी किसी ना किसी मोड़ पे किसी को दिया था। अगर हमने खुशी बांटी तो हमें खुशी मिली और अगर गम बांटी तो हमें इसके बदले गम ही मिलेगा। इसी के साथ मैं यही रुकता हूँ। उम्मीद करता हूँ की आपको मेरी ये कहानी पसंद आएगी।

