लॉक डाउन डे 9
लॉक डाउन डे 9


इस क्वारंटाइन में घर मे रहकर समय निकालना भी अपने आप मेे बहुत बड़ा टास्क है। दिन भर घर मे रहकर बच्चे क्या बड़े भी बोर हो जाते है। टीवी सीरियल मुझे ज्यादा पसंद नहींं। टीवी पर मेरा समय या तो मूवी देखने या कोई रियलटी शो देखने मे ही पास होता है। फिलहाल लॉक डाउन के कारण रियलिटी शो के कोई नए एपिसोड नहीं आ रहे तो सोचा कोई फ़िल्म ही देख ली जाए। पति देव भी पास में आ कर बैठे बोले चलो कोई मूवी देख ली जाए टाइम पास ही हो जाएगा। बेटा सो रहा था इसलिए मेरे पास 2-3 घंटे का पर्याप्त समय था अगर वो जाग रहा होता है तो रिमोर्ट उसके हाथ मे ही रहता है तब हमे अपना शो देखने की परमिशन नहीं होती।
चैनल बदलते बदलते मेरी मेरी नजर एक नाम पर आ कर ठहर गई। "102 नॉट आउट" हा यही नाम था फ़िल्म का। फ़िल्म का नाम ही इतना प्रभावी था कि हम खुद को इसे देखने से रोक नहींं पाए। यह फ़िल्म हर जनरेशन के लोगों को एक सिख देने वाली है। यह फ़िल्म वास्तविकता के बहुत ही करीब है।
मैं अपनी डायरी में इसका जिक्र इसलिए कर रही हूँ।
क्योंकि यह फ़िल्म हर पीढ़ी को एक सिख देने वाली है और फ़िल्म खत्म होने पर भी ये दिनभर मेरे दिमाग मे घूमती रही।
दिल तो बच्चा है जी सच कहा है उम्र भले कितनी भी हो जाये पर दिल को सदैव बच्चा ही रहना चाहिए। जीवन एक बार ही मिलता है तो क्यों न इस जीवन को खुल कर जिया जाए। जिंदगी के एक पढ़ाव मे तो सबको ही बूढ़ा होना है पर बूढ़ापे की चिंता में हम शरीर के बुढ़ापे के पहले ही दिल को बूढ़ा बना लेते है और जिंदगी का मजा नहीं ले पाते। दूसरी बडी बात जो इस फ़िल्म से सीखी की एक बाप न जाने कितने ही संघर्ष करके बेटे को पढ़ाता लिखाता बडा करता है और बेटा बड़ा होकर दूसरी दुनिया मे उड़ जाता है। बाप के संघर्ष का बेटे को कोई मोल नहीं। आज के समय मे भी यही देखने को मिलता है। बड़ा होने के बाद बेटे को सिर्फ उनकी प्रोपर्टी से ही लगाव रहता है। पर कुछ भी हो जाये हम कितने भी बड़े आदमी क्यों न हो जाये माँ बाप के संघर्ष को कभी न भूलना चाहिए। इस फ़िल्म ने मुझे आज जीवन की वास्तविकता से परिचिय करवा दिया। तो आज का दिन मैंने एक बहुत ही शानदार फ़िल्म देख कर व्यतीत किया।