लोढ़ी माता का मन्दिर

लोढ़ी माता का मन्दिर

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"बच्चों,आज हम चर्चा करेंगे एक इसी महिला कि को अपनी कला का जौहर दिखाते हुए धोखे से मर दी गई।बच्चों,रहा नल के समय की बात है।वर्तमान नरवर नलपुर कहलाता था। नरवर का किला समुद्र तट से 1600 भूतल से 500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। एक प्रचलित लोक कथा के अनुसार नरवर के राजा नल से एक नृत्यांगना ने जो बेड़नी समाज से आती थी शर्त लगाई कि वह किले से किले के सामने वाली ऊंची पहाड़ी तक कच्चे धागे पर नाचती हुई जा सकती है। राजा ने शर्त में अपना संपूर्ण राजपाट लगा दिया।"

"कच्चे धागे पर वह भी नाचती हुई,अविश्वसनीय !"कुसुम ने विस्मय से कहा।

"हां, नृत्यांगना ने कहा कि रहा चाहें तो किसी भी धारदार हथियार से उस धागे को काट सकते हैं। जब नृत्यांगना गंतव्य के बहुत करीब थी, राजा चिंतित हो उठे।"

"उनका सर्वस्व जो दांव पर लगा था!"उमेश ने कहा। 

" बिल्कुल,उन्होंने उस धागे को धारदार हथियार से काटना चाहा। उन्होंने कई धारदार हथियार आजमाए। किंतु बेड़नी ने अपनी मंत्र शक्ति से सभी हथियारों की धार बांध दी थी,और कोई भी हथियार उस धागे को काट नहीं पा रहा था।"

"फिर क्या हुआ,चाचाजी ?"

"तभी एक चर्मकार ने रहा को अपना वह औजर दिया जो जूते जोड़ने के काम आता था।जुटा जोड़ने के काम में आने के कारण वह अशुद्ध था,उस पर मंत्रों का प्रभाव नहीं था।"

"ओह,तो उसी औजार ने एक अच्छे कलाकार की जान ले ली !"ओम ने अत्यंत दुखी होकर कहा।

"हां,उस औजार से धागा कट गया और किले की ऊंचाई से नीचे गिरकर उस बेड़नी की मौत हो गई।"

"चाचाजी,इस घटना से हम क्या सीख मिलती है ?"घन्नू ने पूछा।

"इससे हम यह शिक्षा मिलती है कि हमें किसी व्यक्ति की क्षमता पर संदेह नहीं करना चाहिए,दुसी बात यह कि शर्त लगाने से पहले खूब भली-भांति विचार करना चाहिए, तीसरा किसी को धोखा नहीं देना चाहिए।"

"चाचाजी, कहानी का क्या यही अंत है?"कोमल ने पूछा।

"हां अंत तो यही है किंतु उसके बाद उसी जगह एक मंदिर बना जिसे लोढ़ी माता का मंदिर कहा जाता है। कहते हैं यह उसी नृत्य की थी याद में बना।आज भी लोढी माता के दर्शन हेतु यह स्थान प्रसिद्ध है। यहाँ देश भर से लोग पूजा करने के लिए आते हैं।"

 "उस नृत्यांगना के साथ छल किया उसी की भरपाई के लिए?"उर्मिला ने तनिक रोष से पूछा।

" शायद, नृत्याँगना के साथ हुए इस छल के कारण आज भी बेडिया समाज के लोग नरवर में नाचने के लिए आते हैं। नरवर के इतिहास से जुड़ी ऐसी अनेकों कथाएँ समाज में प्रचलित हैं।"


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