लघुकथा: बालमनोविज्ञान
लघुकथा: बालमनोविज्ञान
रावण को जलता देख नन्हा मयंक कुछ परेशान सा था। उदास हो कर नीरा से पूछने लगा,"" इसे क्यों जलाया माँ ?"
नीरा शिक्षा देने का यह मौका चूकना नहीं चाहती थी। फौरन बोली," ये बहुत गंदा बच्चा था।अपनी माँ की बात नहीं मानता था। अपने भाई से लड़ाई करता था।उसे बहुत सताता था।माँ को भी खूब तंग करता था।"
मयंक के चेहरे के भाव एकाएक बदल गए। वह मां का हाथ पकड़ता हुआ बोला," मैं भी तो तुम्हें तंग करता हूँ।मुझे भी जला दोगी क्या ?"
नीरा स्तब्ध हो गयी। वह कही गई अपनी बात के लिए स्वयं को कोसने लगी ।बाल मनोविज्ञान को क्यों समझ नहीं पाई वह ! .जल्दी से मयंक को सीने से लगाती हुई बोली," नहीं बेटा! मेरा मयंक को बहुत समझदार है।मम्मा को ज़रा भी तंग नहीं करता। मैं तो उसके लिए गिफ्ट्स लाती हूँ।वो देखो, खिलौने वाला।चलो तुम्हारे लिए हनुमान जी की गदा खरीदें।"
माँ की बात सुनकर नन्हा मयंक एकदम खुश हो गया।