Shyam Kunvar Bharti

Inspirational

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Shyam Kunvar Bharti

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लघु कथा – कामचोर

लघु कथा – कामचोर

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दरवाजे पर किसी ने आवाज लगाई – भगवान के नाम पर कुछ दे दो बाबा।भगवान तेरा भला करे। दिनदयाल जी जो एक समाजसेवी थे ने दरवाजा खोला। देखा दरवाजे पर एक नौजवान हट्टा कट्टा भिखारी खड़ा था।उसे देखते ही दिन दयाल जी का पारा गरम हो गया। उसे ज़ोर से डाटते हुये बोले – चल भाग यहाँ से कामचोर कही का। तुझे भीख मांगते हुये शर्म नहीं आ रही है। भगवान का नाम लेता है और उन्हे बदनाम करता है।

भगवान ने तो तुम्हें इतना सुंदर शरीर दिया है। दिल दिमाग दिया और हाथ पैर सब सलामत रखा है। फिर भी तू भीख मांग रहा है।

भिखारी – क्या करू साहब कही धाम धंधा नहीं मिलता।

बहाना बाजी मत सुना। बिना हाथ पैर मारे यहाँ कुछ नहीं मिलता। खोजने से भगवान मिल जाते है और तुझे काम नहीं मिल रहा है। मुक्त कि भिख मांग केआर खाने की लत जो लग गई है तुमको।दिनदयाल जी ने उस भिखारी को फिर डांटते हुये कहा।

इतने में उनकी पत्नी रमा देवी आ जाती है। क्यों इस बेचारे भिखारी को डांट रहे है जी कुछ दे क्यों नहीं देते।

क्यों कुछ दे दूँ इस मुक्त खोर और कामचोर को। इससे इसका और मन बढ़ जाएगा और जिंदगी भर भीख मांग कर खाता रहेगा | दूसरे नौजवानो पर भी इसका बुरा असर पड़ेगा। दीनदायल जी ने अपनी पत्नी से अपनी चिंता जाहीर करते हुये कहा।

छोड़िए जाने दीजिये मैं इसे कुछ खाने को दे देती हूँ खाकर चला जाएगा। आप जाइए आराम करे। रमा देवी ने अपने पति को समझाते हुये कहा।रमा देवी ने उसे रात का बचा बासी खाना खिलाया और पहनने को पुराने कपड़े भी दिये। नौजवान भिखारी बहुत खुश हुआ मगर रोने लगा। रमाँ देवी ने चुप कराते हुये उससे रोने का कारण पूछा। भिखारी बोला माता जी मुझे साहब की बात बहुत अच्छी लगी। उनका डांटना मुझे अच्छा लगा बड़ा अपनापन लगा। अब से मैं भिख नहीं माँगूँगा। अगर मुझे पाँच दस हजार रुपए कही से मिल जाये तो कोई धंधा करके रोजी रोटी कमा लुंगा|

 दिनदयाल जी ने उसकी बाते सुनी और फिर बाहर आकर बोले – बहुत अच्छा सोचा है तुमने इसी सोच से देश का विकाश होगा। अब तुम देश पर बोझ नहीं बनोगे। मैं तुम्हें पाँच हजार रुपुए देता हूँ तुम जो चाहो धंधा करो। सब्जी बेचो ,चाय बेचो या फेरि लगाओ मगर कुछ काम करो भीख मत मांगो।

भिखारी रोते हुये दीनदायाल के पैरो में गिर पड़ा साहब मैं आपका पाई पाई चुका दूंगा। आज आपने मेरी मदद करके और नई राह दिखा के मेरी दुनिया ही बदल दिया है। दिन दयाल जी ने उसे खड़ा करते हुये अपनी जेब से पाँच हजार रुपए दिये और कहा जाओ पहले कमाओ और जब पैसे हो जाये तब लौटा देना।


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