Darshna Banthia

Romance

5.0  

Darshna Banthia

Romance

लग जा गले कि..

लग जा गले कि..

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"रोमा, आज हमारे साथ चाय पीने क्यों नहीं चलती, थोड़ा तो अंतराल लिया करो" सहकर्मी मोनिका ने रोमा का लैपटाप बंद करते हुए कहा।

"अरे! मुझे काम करने दो, तुम लोग जाओं ना "रोमा ने खींझ कर कहा। पर मोनिका तो उसे साथ ले जाकर ही मानी।

"सबकी चाय आ गई, कोई रह तो नहीं गया, अरे आपकी चाय रोमा ,रूको ये लो मेरी मैं 1 और बनवाता हूं।" विवेक ने हँसकर कहा।

"अरे ! रहने दीजिए, आप ये लीजिए, मैं इंतजार कर लूंगी" रोमा ने कप वापस देना चाहा पर विवेक ने नहीं लिया।

विवेक रोमा को हमेशा से पसंद करता था। पर रोमा हमेशा अपने काम में ही व्यस्त रहती थी। दोनों एक ही एरिया में रहते थे।

रोमा अपने रूममेट के साथ रहती। कुछ महीने ही तो हुए हैं , उसे भोपाल छोड़ ये नये शहर आए। विवेक हमेशा से ही यहां मुम्बई में पला-बढ़ा था।

"यार , ये मुम्बई के मौसम का कुछ पता नहीं चलता, रोमा लगता है आज फिर ज़ोरदार बारिश होगी, मैं तो अपने मामा के यहां आज जाऊंगी, सोमवार सुबह सीधे ही वहां से आँफिस आ जाऊंगी, तुम घर पर समय से पहुंच जाना और अपना ख्याल रखना" मोनिका ने चाय पीते हुए कहा।

थोड़ी देर में ही मेघा रानी जमकर बरसने लगी। रोमा आँफिस के बाहर टैक्सी का इंतजार कर रही थी। तभी अचानक एक आवाज़ आई।

"आ जाओ, बारिश बहुत तेज है, मैं छोड़ दूँगा घर" विवेक ने कार का शीशा नीचा करके कहा।

"थैंक्यू" मुस्कराते हुए रोमा कार में बैठ गई। विवेक ने रेडियो शुरू किया। और बहुत ही रोमांटिक गाना बजा।

"लग जा गले कि फिर ये हंसी रात..." विवेक गुनगुनाने लगा।

"भुट्टा खाओगी, इस ठेले वाले का बहुत ही बढ़िया भुट्टा है।"

"नहीं लेट हो जाएगी घर पहुंचने में" रोमा ने मना करते हुए कहा।

"अरे, कुछ नहीं होगा, भैया दो गरमागरम भुट्टे दे दो" विवके शीशा नीचे करते हुए बोला।

"हम्म मज़ा आ गया, वाकई बहुत बढ़िया है, मैंने आजतक कभी नहीं खाए ऐसे भुट्ठे" रोमा ने कहा।

रास्ते भर विवेक और रोमा एक-दूसरे से बातें करते रहे। विवेक अपने दिल की बात रोमा से करना चाहता था। पर संकोच था कि कहीं वो बुरा न मान जाएं।


"क्या कर रही हो वीकेंड में, कहीं घूमने जा रही हो या नहीं, अब तक तो काफी मुंबई घूम लिया होगा?" विवेक ने सहसा कहा।

"नहीं, मेरा वीकेंड तो बस चाय और किताबों के साथ ही बिताती हूं, कहीं नहीं घूमने जाती।"

रोमा का जवाब सुन विवेक ने कहा "तो कल चलते हैं, चौपाटी या मरीन ड्राइव, बहुत खूबसूरत जगह है।"

"कल, नहीं -नहीं, इतनी बारिश में कैसे।"

"अरे! चलकर थोड़ी जाना है, कल शाम तैयार रहना" रोमा को बाय कहकर विवेक चला गया।


अगले दिन रोमा व विवेक दोनों ने खूब मौज़-मस्ती की। चौपाटी में सैर रोमा को बहुत पसंद आई। विवेक भी उसे हँसाने में कोई कमी नहीं रख रहा था।

रोमा शायद इतने महीनों में पहली बार खुलकर हँसी होगी। विवेक का स्वभाव व उसका व्यवहार रोमा को बहुत पसंद था। ऐसा खुशमिजाज इंसान वह पहली बार देख रही थी। रोमा और विवेक समंदर के पास बैठे थे।

"मुझे इतना मज़ा पहले कभी नहीं आया विवेक, मुंबई बहुत खूबसूरत है। सच में आज जाना मैंने, थैंक्यू " रोमा ने मुस्कराते हुए कहा।

"थैंक्यू, कैसा दोस्ती में, तुम तो हमेशा ही अपने काम व किताबों में व्यस्त रहती थी। कभी काम और किताबों का चश्मा हटाकर देखो मैडम जिंदगी और भी हसीन लगेगी" विवेक ने कहा।

"तुम सही कह रहे हो विवेक, मैंने हमेशा काम को ही प्राथमिकता दी है। कभी दिल खोलकर जीना, मुस्कुराना सीखा ही नहीं। पापा ने बड़े भरोसे से मुझे यहां अपने से दूर भेजा है। हमारे यहां लड़कियों को करियर बनाने के लिए शहर से तो करता, घर से भी दूर नहीं भेजते। पापा और मम्मी को मुझ पर विश्वास था तो मैं यहां अपने सपने को पूरा करने आ पाई। हमेशा मन में यहीं रहता कि कहीं कोई ऐसा कदम न उठा लूं कि जिससे उन्हें तकलीफ़ पहुंचे।इसी वजह से अपने आप में ही सिमट कर रहती हूं। पर आज यहां आकर बहुत अच्छा लग रहा है" रोमा जब सरल मन से अपनी बात कह रही थी तो विवेक एकटक उसे देखे जा रहा था।


"क्या हुआ ,क्या देख रहे हो, घर नहीं चलना क्या? बारिश कभी भी शुरू हो सकती है, उठो अब कल आँफिस भी जाना है" रोमा उठ ही रही थी कि विवेक ने उसका हाथ पकड़ लिया।

"बैठो ना यार, कभी-कभी भीगने में भी मज़ा है। मुझे ये लहरों का संगीत बहुत पसंद है।

"अच्छा जी,हम भी सुने कुछ विवेक कुमार के तरानों सें"रोमा ने आंखें टमाकाकर कहा।

"सागर किनारे, दिल ये पुकारे...."विवेक ने मधुर गीत सुनाया।

"वाह! विवेक बहुत सुरीली आवाज़ है तुम्हारी, मैं तो फैन हो गई हूं तुम्हारी" रोमा ने मुस्कराते हुए कहा।

विवेक उसका चाँद सा खिलता हुआ चेहरा देखकर खुश हो रहा था।

"रोमा , कुछ कहना चाहता हूं तुमसे। जब आज तुमने आज अपनी बात सहजता से कह दी तो मैं भी तुमसे अपने मन की बात कहना चाहता हूं" विवेक ने कहा।

"अब तुम्हें क्या कहना है, गाड़ी में चलकर बात करते है ना..." रोमा ने कहा।

"नहीं, यहीं बैठो ना। ये इतनी हसीन शाम ,पानी की लहरों का ये मधुर संगीत, ठंडी रूमानी सी हवा में सब गाड़ी में कहाँ ।"

"अच्छा, बोलो भी विवेक"।

"तुम मुझे बहुत पसंद हो रोमा। तुम्हारी सादगी ने मुझे पहले दिन से ही तुम्हारी तरफ आकर्षित किया था। मुझे पता है शायद तुम ये सोचों कि घूमने के बहाने मैं तुम्हारे से आशिकी कर रहा हूं, पर ये ग़लत है। मैंने बहुत बार कहना चाहा तुमसे, पर कभी हिम्मत नहीं हुई" विवेक ने घबराकर कहा।

विवेक की बात सुन रोमा वहां से उठ गई।

"क्या हुआ, प्लीज तुम गलत मत समझना " विवेक के सिर पर पसीना आ गया।

"विवेक मैंने तुम्हें पहले ही बताया था कि मेरे माता-पिता ने बहुत भरोसा रखकर मुझे यहां भेजा है। मैं उनके साथ धोखा नहीं कर सकती। अगर आज मैंने कोई ग़लत कदम उठा लिया तो शायद फिर कोई माँ-बाप अपनी बेटी पर भरोसा नहीं करेंगे। उम्मीद है तुम समझोगे" रोमा कार की तरफ जाने लगी।


कार में एकदम कम आवाज़ में संगीत बज रहा था। दोनों के होंठ सिल चुके थे। रोमा शीशे के बाहर नजर करते हुए सोच रही थी कि इन दो दिनों में न जाने वो कितनी बार खुलकर हँसी हो। विवेक का साथ उसे हमेशा पसंद आता। दो दिनों में शायद मैंने खुलकर जीना सीख लिया हो। विवेक मुझे भी अच्छा लगता है, पर...ये मैं क्या सोचने लग गई" झुकती निगाहें करके विवेक को चोर नज़र से देखने लगी। विवेक ने तो शायद उसी को आँखों में बसा रखा हो, वह भी उसकी ओर देखने लगा और दोनों की नजर मिलते ही रोमा पुनः बाहर की तरफ देखने लगी।

घर आते ही रोमा गाड़ी से उतरी विवेक की ओर देखा। शायद बहुत कुछ आँखों से कहना चाहती हो, पर बाय कहकर चली गई।


रात भर वो उसके और विवेक के बारे में सोचती रहीं। अच्छा लगता है उसका साथ,पर माँ-पापा को बताना... नहीं-नहीं। सोचते-सोचते कब सुबह हो गई पता ही नहीं चला। "क्या हुआ तबियत ठीक नहीं है क्या? कैसा रहा वीकेंड तेरा ? मुझे तो बहुत मज़ा आया, मामा के घर। आँखें क्यों सूजी हुई है। सब ठीक है ना?" मोनिका ने पूछा। "हां यार, सब ठीक है,ऐसे ही थोड़ा सिर दर्द है । माँ का फोन आया है, बाद में मिलती हूं तुमसे "कहते हुए रोमा कैफेटेरिया से चली गई। रास्ते में उसकी निगाह विवेक पर पड़ी, जो उसे ही देख रहा था। विवेक कुछ कहना चाहता था। पर उसे लगा कहीं रोमा को सबके सामने बात करने पर बुरा न लग जाए ।

"सैंडविच खाएगी? बना रहीं हूं अभी और साथ में चाय भी" मोनिका ने शाम को टीवी देखते हुए कहा।

"हां,चाय मैं बना देती हूं" कहकर रोमा खिन्न मन से चाय बनाने लगी ‌

"सुबह देख रही हूं,खोई सी है, तू चाहे तो बता सकती है" मोनिका ने ब्रेड पर मक्खन लगाते हुए पूछा।

"अरे! ऐसा कुछ नहीं है, बस थोड़ा सा सिर दर्द है" रोमा बात को टालते हुए बोली।

"सबको ऐसा प्यार करने वाला विवेक नहीं मिलता। वो कितनी परवाह करता है, ये तू जब हर कुछ मिनट में आने वाले मैसेज पढ़ेगी न तो जान जाएगी।"

"विवेक ने तुझ से कुछ कहा?" आतुर हो कर रोमा ने पूछा।


"नहीं वो बहुत समझदार है, उसने मुझसे कुछ नहीं कहा। बस मैसेज में यहीं पूछा कि कैसी है तबियत, वो तो मैंने ही अंदाजा लगाया। मुझे शुरूआत से लगता था कि विवेक तुम्हें पसंद करता है। बहुत अच्छा लड़का है, तुम्हारा क्या ख्याल है?"

"कुछ नहीं। विवेक हमारा भविष्य असंभव है। यह अंतर्जातीय रिश्ता हमारे समाज में कोई स्वीकार नहीं करेगा। और मैं ऐसा कोई कदम नहीं उठाऊंगी, जिससे माँ-पापा को तकलीफ़ हो, उन्होंने भरोसा किया है मुझ पर । और मैं उनका भरोसा कभी नहीं तोडूंगी। वरना वो भी सोचेंगे कि दुनिया सही कहती हैं कि बेटियों को कभी आज़ादी नहीं देनी चाहिए" भरे स्वर में कहती हुई रोमा कमरे में चली गई।

कई दिनों तक विवेक और रोमा के बीच कोई बातचीत नहीं हुई। सबके साथ अगर चाय पीने भी जाते तो दोनों चुप से ही रहते।


आज तेज़ बारिश ने उसे वो बारिश याद दिला दी, जब वो विवेक के साथ थी। वो दो दिन उसे बहुत याद आते। उदास मन से एफ.एम . रेडियो शुरू किया। और गाना बजा'' इस सुहाने मौसम में यह गीत हर प्रेमियों के लिए। "लग जा गले..कि फिर ये हसीं" रोमा ने गाना सुना और आँखों में आँसू आ गए।

हर नई सुबह आशा की एक नई किरण लेकर आती है।

"रोमा , दरवाज़ा खोल मैं नहा रहीं हूं" मोनिका की आवाज़ सुनकर रोमा दरवाज़े की तरफ बढ़ी।

"माँ -पापा आप..? यहां अचानक, बताया भी नहीं" रोमा ने आश्चर्य से पूछा।

"बस याद आई और चले आए। वैसे एक खास मकसद से आएं हैं?" माँ ने कहा।

"खास मकसद? मतलब" पानी देते हुए कौतूहल होकर रोमा ने पूछा।

"हमने तुम्हारा रिश्ता पक्का कर दिया है। लड़का पढ़ा-लिखा है, परिवार भी ठीक है। रहता भी मुम्बई में है, तो तुम्हारी नौकरी में भी कोई दिक्कत नहीं होगी। तुम बस तैयार हो जाओ। वो लोग बस आते ही होंगे" माँ ने कहा।

"आ गए, आंटी आप नमस्ते" मोनिका ने हाथ जोड़कर कहा तो रोमा ने पूछा,"तुम्हें पता था कि माँ -पापा आने वाले हैं?"

"नहीं, मुझे कैसे पता होगा।"

"तो फिर ...तुमने।"रोमा को टोकते हुए मोनिका बोली "अरे क्या फिर, विर..तू तैयार हो जा, मैं तेरी मदद करती हूं।"

बुझे मन से रोमा तैयार हो रही थी। उसके ख्यालों में विवेक ही था।

"आइए, बैठिए रोमा आती होगी।"

मेहमानों की आवाज सुनते ही रोमा कमरें से बाहर आ गई। सबको नमस्ते किया।

"आपका बेटा नहीं आया?"रोमा की मां ने पूछा।

"बस आता ही होगा," इतने में ही घंटी बजती।

रोमा अपने सामने विवेक को देख स्तब्ध रह गई।

"तुम यहां क्यों आए हो, अभी घर पर मेहमान आए हैं, बाद में बात करते हैं" रोमा ने दरवाज़े पर ही फुसफुसाते हुए कहा।

"क्या हुआ बेटा, अंदर आओं ना" रोमा की माँ ने कहा।

रोमा हैरानी से सब देख रही थी।उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।

"माँ आप इसे जानती है?" रोमा ने आश्चर्य से पूछा।

"अपने होने वाले जमाई को कौन नहीं जानेगा" माँ के मुंह से ये शब्द सुनकर रोमा आश्चर्य चकित रह गई।


"बेटा, हमें सब पता चल गया है। मोनिका बिटिया ने हमें सारी बात बता दी थी। फिर हमने विवेक से व उसके घर वालों से बात की। मुझे खुशी है तुमने अपने संस्कारों को व भरोसे को नहीं तोड़ने दिया। अक्सर माता-पिता बच्चों पर भरोसा कर उन्हें दूर भेजते हैं और बच्चें उनके भरोसे का फायदा उठाकर गलत कदम उठाते हैं। यह सच है कि यह अंतर्जातीय है, लेकिन इंसान बहुत बढ़िया है। मैंने और तुम्हारे पापा ने यहीं सोचा कि जिसमें तुम्हारी खुशी है, हम उसी का ही साथ देंगे। समाज या किसी अन्य का नहीं।"माँ के मुंह से बातें सुनकर रोमा रो पड़ी।और माँ के गले लग गई।

विवेक और रोमा की सगाई खूब धूमधाम से हुई।

आज जब वह विवेक से मिली तो ऐसा लगा कि सूखी धरती पर मौसम की पहली बारिश गिरी हो। दोनों एक दूसरे को एकटक देख रहे थे।

एकांत पाकर जैसे ही मोनिका उन्हें कमरे में बात करने के लिए ले गई, तो रोमा उसके गले से लिपट गई।

"अब यहां ही सारा प्यार उड़ेल दोगी, तो विवेक बेचारा कमरे में बैठा क्या करेगा, हँसकर मोनिका ने कहा।


"कमरे में घुसते ही दोनों के मन हिलोरे मार रहा था। कहना बहुत कुछ चाहते, पर दोनों कुछ कह नहीं पा रहे थे। तभी विवेक ने गाने से शुरूआत की "लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो ना हो।"

दोनों एक-दूसरे के गले लग गए। ऐसे गले लगे कि तड़पती मीन को जैसे जल मिल गया हो।



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