लेन देन प्रेम का
लेन देन प्रेम का
बलदेव और कजरी अपनी लहलहाती फसल देख कर बार बार अपने खेत की धरती को प्रणाम कर रहे थे। आखिर मेहनत रंग लाई। बप्पा के मरने के बाद ज़मीन के बँटवारे में बलदेव ने अपने छोटे भाई से कहा "रंजन तुम्हें जो हिस्सा चाहिये वो अपने नाम करा लो। बाकी हमें दे देना।" रंजन ने अपने पसंद की उपजाऊ ज़मीन रखी। तब कजरी बोली भी ,"देवर ने वो बंजर ज़मीन आपको पकड़ा दी। आप कुछ बोले क्यों नहीं" बलदेव ने जवाब दिया "कजरी हम दो प्राणी है। छोटा बाल बच्चों वाला है। उसे ज्यादा जरुरत है। " माँ, बप्पा के समय सब साथ रहते थे। लेकिन उनके जाते ही रंजन ने बँटवारे की ज़िद की। बलदेव की ज़मीन चट्टान और पत्थरों से भरी हुई थी। बहुत मेहनत करनी पड़ी उसे ,ज़मीन को उपजाऊ बनाने के लिये।
दो तीन साल तो फसल न के बराबर हुई। पर इस साल खेत की फसल मेहनत का रंग दिखा रही थी। अचानक कजरी बोली--"सुनो जी, इस साल देवर जी बहुत बीमार रहे। खेत बटाई पर दे दिया था उन्होने " "हाँ कजरी, और मैं समझ गया तुम्हारे मन की बात।" कजरी मुस्करा दी। जैसे फूल खिल गये हों। "छोटे, इस बार फसल अनुमान से अधिक हुई। हम अपने लिये रख कर, बाकी सब यहाँ पहुंचाय देते है, तुम अपनी तबियत का ध्यान रखो" रंजन की पत्नी ने कजरी के पैर छुए, और मन ही मन, पूरे दिल से प्रार्थना की --हे ईश्वर, जैसे बंजर धरती पर हरियाली के अंकुर भरे, मेरी दीदी की गोद भी भर दो।