लड़के भी रोते हैं !
लड़के भी रोते हैं !
किशन जब चार साल का था उसकी मां की मृत्यु हो गई थी सांप के डसने से। किशन की एक बहन थी उससे चार साल बड़ी!
खुद थी तो छोटी, महज आठ साल की, केवल उससे चार साल बड़ी लेकिन अपने भाई का ख्याल ऐसे रखती जैसे हो कोई बड़ी अम्मा!
उसके पिता के दो भाई और थे उनके अपने परिवार थे, अलग रहते, मां है नहीं, कुछ दिन उन्होंने संभाला पर कहते हैं ना इस तरह वे लोग अपने बच्चों को पालें या फिर ! आखिर बच्चों की देखभाल और गृहस्थी की सार-संभाल के लिए किसी की जरूरत थी ही सो सबके कहने पर उसके पिता ने शादी कर ली !
जिससे शादी की वो भी बेचारी जमाने की सताई हुई थी जब दस साल की थी तब शादी हुई और ग्यारह साल की विधवा हो गई ! दूल्हे को शादी के समय ही देखा था ऊपर से सौतेली मां, बहुत तकलीफ़ देती थी बेचारी को स्कूल भी नहीं जाने देती। दिन भर घर का सारा काम करवाती थी पिता तो बीवी का दीवाना था बच्ची की तरफ देखने की फुर्सत किसे थी !
रीता ऐसे सौतेलेपन की इस त्रासदी की भुक्तभोगी थी उसने उन बच्चों किशन और गीता को मां का प्यार दिया ! बच्चे बड़े होते गए किशन स्वभाव से संकोची और भावुक था,? मां सौतेली होकर भी सौतेली नहीं रही मगर पिता सौतेले से भी बदतर था, बहुत गुस्सा करता था, जब-तब बच्चों पर पिल पड़ता ! कभी-कभी तो दिनभर भूखा-प्यासा रख बखारी में बंद कर देता।
गीता खुद को बड़ा समझती, हर वक्त भाई का ख्याल रखती फिर भी थी तो बेचारी बच्ची ! ऐसे माहौल में पलते हुए दोनों बच्चों का मानसिक, बौद्धिक विकास हुआ। किशन को बात-बात पे रोना आ जाता था और अपने पिता पर बहुत गुस्सा आता मगर कुछ कर नहीं सकता था, अपनी मर्यादा समझता था! ऐसे में दोस्त हो या रिश्तेदार या कोई भी हो उससे कहते - “अरे-अरे, लड़के भी कभी रोते हैं क्या ? भाई, इस तरह लड़कों रोना शोभा नहीं देता क्योंकि लड़के कभी नहीं रोते ! अरे भाई, लोग क्या कहेंगे!”
पिता तो अक्सर तानेकशी करता रहता - “लड़कियों की तरह रोता है, नाक कटा रहा है बाप की, शिट!”
दसवीं पास की उसने 80 प्रतिशत से लेकिन उसे उम्मीद थी 95 प्रतिशत की ! पिता ने तो डांटा, भला-बुरा कहा इसलिए भी बहुत मायूस हो गया, उसे रोना आ रहा था कि इतनी मेहनत की फिर भी?
मां ने भी आज पहली बार कह ही दिया - “किशन बेटा अच्छे मार्क्स तो है ऐसे नहीं रोते क्योंकि लड़के रोते नहीं, लड़के रोते हुए अच्छे नहीं लगते इसलिए कभी नहीं रोना।”
किशन इस बात पर बेहद हैरान था कि दर्द या तकलीफ जो लड़की को होती है उतनी ही लड़के भी लेकिन, लोग ऐसे क्यों कहते हैं कि लड़के नहीं रोते! भला ऐसा भी कभी होता है!
दर्द तो सबको होता है, लड़का या लड़की का इसमें क्या? ये तो अहसास भरी संवेदनाओं का जलवा है किसी को कम किसी को ज्यादा महसूस होता है। रोना तो संवेदनशीलता की निशानी है ना कि कमजोरी की या लडकी होने की !
ऐसे लोगों को जवाब देना पड़ेगा - क्योंकि लड़कों को भी दर्द होता है इसलिए भी रोना तो आ ही जाता है, तो ऐसी सोच को छोड़ दो कि लड़के नहीं रोते बल्कि लड़कियां ही रोती है। नहीं-नहीं, अरे भाई? लड़के भी रोते हैं ! उनको भी दर्द होता है !
