लौकिक, पारलौकिक और अलौकिक
लौकिक, पारलौकिक और अलौकिक
लौकिक , पारलौकिक और अलौकिक
धन्यवाद प्रतिलिपि जी, जो आपने आज का विषय "अलौकिक" दिया । इससे आज कुछ तो ज्ञान वृद्धि होने की संभावना बनेगी । वरना इश्क, मुहब्बत, चाहत, प्रेम, प्यार को ही संपूर्ण जगत समझ बैठे थे हम तो । अलौकिक शब्द को जानने के लिए पहले लौकिक शब्द जानना आवश्यक है । यह कुछ कुछ इसी तरह है जैसे असत्य को जानने के लिए पहले सत्य को जानना जरूरी होता है । तो चलो पहले "लौकिक" शब्द को जानते हैं ।
लौकिक शब्द 'लोक' और 'इक' से मिलकर बना है । यहां लोक से तात्पर्य 'इहलोक' अर्थात मृत्यु लोक से है । वैसे तो पुराणों में चौदह लोक बताये हैं । सात पृथ्वी या इसके ऊपर के और सात पृथ्वी के नीचे के हैं ।
ऊर्ध्व लोकों के नाम इस प्रकार हैं
ब्रह्म लोक, सत्य लोक, तप लोक, जन लोक, स्वर्लोक, भुवर्लोक, भू लोक
अधो लोकों के नाम इस प्रकार हैं
अतल, वितल, नितल, तलातल, तल, सुतल, पाताल
हम लोग सामान्यत: तीन लोकों के बारे में जानते हैं । गायत्री मंत्र में भी इनका उल्लेख होता है ।
ॐ भूर्भुव : स्व :
ये ही तीन लोक हैं भू,भुव : और स्व : जिन्हें मृत्यु लोक, स्वर्ग लोक और नर्क लोक के तौर पर जाना जाता है । श्रीमद्भागवत गीता में भी कई जगह तीन लोकों का उल्लेख हुआ है और कई श्लोकों में संपूर्ण लोकों का उल्लेख हुआ है । इसका मतलब है कि केवल तीन लोक ही नहीं हैं, और भी लोक हैं । इसके लिए पुराणों की सहायता लेनी होगी । पद्म पुराण, अग्नि पुराण और विष्णु पुराण में इन लोकों का उल्लेख मिलता है । नाम में कुछ कुछ अंतर है ।
श्रीमद्भागवत गीता से ज्यादा प्रामाणिक तो कुछ और है नहीं । यह तो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकसित है । इसमें भी ब्रहलोक के बारे में कहा गया है । श्रीमद्भागवत गीता में कहा गया है कि जब तक आत्मा श्रीकृष्ण अर्थात परमात्मा में लीन नहीं होती है तब तक वह संपूर्ण लोकों में योनि बदल बदल कर भटकती रहेगी । आत्मा की मुक्ति की प्रक्रिया को ही मोक्ष कहा गया है । मोक्ष प्राप्ति का अर्थ है जन्म मरण से मुक्ति पाना । जब तक मोक्ष प्राप्त नहीं होगा आत्मा विभिन्न योनियों में अपने कर्मानुसार जनमती रहती है । स्वर्ग लोक में जाने के बाद भी मोक्ष की प्राप्ति हो, आवश्यक नहीं है ।
इस प्रकार इस संसार में चौदह लोक हैं जिनमें मृत्यु लोक या पृथ्वी लोक एक है । हमें यही दिखाई देता है और हम इसे ही अनुभव करते हैं । इस लोक से संबंधित प्रत्येक वस्तु, भाव लौकिक कहलाता है । जो कुछ इस लोक का है वह लौकिक है ।
अभी हमने ऊपर पढा था कि लोक चौदह हैं । यदि कोई चीज इस लोक से संबंधित नहीं है मगर अन्य लोकों से संबंधित है तो वह पारलौकिक कहलाती है । यद्यपि हमने अन्य किसी लोक को देखा नहीं है फिर भी कुछ श्रुति कुछ कल्पना के आधार पर अंदाज लगा सकते हैं ।
अलौकिक का अर्थ है ऐसी वस्तु या गुण जो किसी लोक में नहीं हो । भगवान श्रीकृष्ण/विष्णु का रूप , शक्ति उनसे जुड़ी हर चीज अलौकिक है । महाभारत के समय कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को जो विराट रूप भगवान श्रीकृष्ण ने दिखलाया था वह अलौकिक था , दिव्य था । उनके वस्त्राभूषण आदि सब अलौकिक हैं ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि अलौकिक और पार लौकिक को लोग पर्यायवाची मानते हैं जबकि ऐसा नहीं है ।
जब जब श्याम की बंसी बाजी
एक अलौकिक धुन थी साजी
काम धाम सब छोड़ छाड़कर
सब गोपियां निधिवन को भाजी
देख अलौकिक रूप गिरधर को
मन मन्दिर बस गई प्रभु की झांकी।
