Versha Gupta

Inspirational Tragedy

5.0  

Versha Gupta

Inspirational Tragedy

लाचारी से आत्मनिर्भर

लाचारी से आत्मनिर्भर

5 mins
1.4K


माला का छोटा सा परिवार था, दो बच्चे (एक लड़की संध्या और एक लड़का नीरज) और पति राजेश ,वो खुश थी अपनी छोटी सी दुनिया में गाजियाबाद में रहती थी।

लेकिन आज वो बहुत उदास थी, जैसे कोई भूचाल आ गया हो उसकी जिंदगी में क्योंकि आज पता नहीं राजेश को क्या हुआ उसने माला को मारने की कोशिश की वैसे तो छोटी-मोटी तकरार हर घर में होती हैं,पर आज तो हद हो गयी थी बात इतनी सी कि नीरज (जो 11th standard में पढ़ रहा था) ने आज स्कूल जाने से मना किया था, बस यहीं सोचते हुए माला घर से निकल पड़ी क्योंकि राजेश ने उसे घर से जाने के लिये कह दिया और कपड़े,पैसे यहाँ तक फोन भी नहीं ले जाने दिया। माला के पीछे पीछे नीरज भी चल दिया, अब क्या करे माला यहीं सोच रही थी, वह अपने मायके जो मेरठ में था वहाँ भी नहीं जाना चाहती कि वो उन पर बोझ बन जायेगी उसके मायके में एक बूढ़ी माँ, बाबा, भाई-भाभी और छोटी बहन की कुछ ही महीने पहले शादी हुई थी। उसने अपने हाथ की अंगूठी बेची और रेलवे स्टेशन की तरफ चल दी हताश परेशान माला सोच तो रही थी कि अपनी जान दे दे क्या फायदा ऐसी जिंदगी का लेकिन नीरज साथ में था इसीलिए उसने नीरज के ख़ातिर सम्भाला अपने आपको और सामने खड़ी रेल में दोनो चढ़ गये बिना ये जाने कि ये जायेगी कहाँ, बस बैठ गये और माला याद करने लगी पुरानी यादों को,

जब उसकी शादी शुरू के दो-चार महीने तो सब ठीक था जब वह पहली बार प्रग्नेंट हुई तब आया ससुराल वालों का असली चेहरा सामने लड़का है या लड़की ये जानने के लिये लिंग परीक्षण का उस पर दवाब डाला जाने लगा वैसे तो राजेश की अच्छी TV assemble n sale की शॉप थी फिर भी इतनी छोटी सोच और इसी चिंता में माला की तबियत बिगड़ने लगी और ultrasound से पता चला कि माला के गर्भ में जुड़वाँ बच्चे थे और चिंता के कारण एक बच्चा गर्भ में ही मर गया था और जहर फैलने के कारण दूसरे की भी जान खतरे में थी ,इसीलिये उसको भी गिराना पड़ता है इससे माला सदमे में आ जाती हैं और गुमसुम रहने लगती हैं। थोड़े दिनो बाद माला दोबारा गर्भ धारण करती है और इस बार प्यारी परी जैसी लड़की को जन्म देती है, सब ठीक था माला के मायके से कोई भी आता तो उनके सामने राजेश बड़े प्यार से बातें करता उनके साथ घूमने का भी program बनाता और पूरा ध्यान रखता खाने के लिये भी कहता पहले आप खायेगें तो ही खाउगा पर रोज़ घर पर शराब पी कर आता और माला को मारता ,माला भी बच्चों की ख़ातिर सब सहती। अब माला के पास दो बच्चे थे संध्या और नीरज ।

जब संध्या दसवीं में थी तब राजेश की दोनो किडनी खराब हो गयी थी डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया था और राजेश की माँ,भाई और अन्य रिश्तेदार सब ने उनका साथ छोड़ दिया और किडनी देने के नाम पर बहाने बनाने लगे।

तब बस माला और और उसके घरवालों ने साथ दिया माला की माँ ने अपने शरीर का एक अंग यानी किडनी देकर राजेश की जान बचाई। यह सब देखकर राजेश को आत्मग्लानी भी हुई और अपनी ग़लती का एहसास कि जिसे मैने इतना तंग किया आखिर उसी ने मेरा साथ दिया।

दो साल तक सब ठीक रहा लेकिन दो -तीनों महीनों से वहीं पुराना हाल था यहीं सब रेल में बैठी माला सोच रही थी और दूसरी तरफ.......

संध्या घर पर राजेश के साथ अकेली थी , डरी सहमी संध्या ने अपने को कमरे में बंद कर लिया था और इन सब से अनजान अपने मामा (गिरीश)और नानी को फोन करके वो सारी बात बताती है। तभी उसके मामा दुकान से फटाफट आते है और गिरीश और उसकी नानी (जिनके बस की चलना नहीं पर बेटी के प्यार से ताकत आयी और) दोनों गाजियाबाद के लिये चल देते है, और राजेश से पूछते है कि माला कहाँ है,पर उसे क्या पता वो तो माला के जाने के बाद आराम से सो गया था।

संध्या और गिरीश पूरे गाजियाबाद में माला को ढूढ़ते हैं हर मंदिर ,रेलवे स्टेशन ,बस स्टैण्ड हर जगह पर माला का कुछ पता नहीं चलता ,रात को 10:00 संध्या की नानी के पास एक फोन आता है,और वो फोन था माला का जो इस समय आगरा में थी एक पी.सी.ओ के बाहर बैठी थी। वो भला आदमी था और माला का दर्द उससे देखा नहीं गया और समझाकर माला से फोन करवाया, रात का समय और अनजान रास्ता और 3 से 3 1/2 घंटे का रास्ता ,इसीलिये संध्या के मामा ,नानी और माला की बुआ का लड़का(जो गाजियाबाद में ही MBA की पढ़ाई कर रहा था) मामा और नानी के साथ चलता है। सफर लम्बा और कब तक माला बाहर बैठती इसीलिये माला के मामा के दोस्त की लड़की रीना आगरा में ही रहती थी(मुसीबत में कब,कौन फरिश्ता बन जाये पता नहीं चलता) माला को अपने घर ले जाती है। रात को 2:00 बजे गिरीश रीना के यहाँ पहुँचते हैं। और पूरी रात बातों में ही गुजरती है।

और अगले दिन पहले गाजियाबाद जाते है संध्या को वहाँ से लेते हैं ,राजेश ने तो पूरी कोशिश की थी संध्या को रोकने की यह कहकर कि मैं तेरा मेडिकल में एडमिशन करा दूँगा। लेकिन अपनी माँ के हाल से वो भी अनजान नहीं थी, और सब मेरठ आ जाते हैं,दो -तीन दिन सब ठीक रहता हैं पर बूढ़ी माँ समाज के डर से माला से यही कहती कि तू राजेश के पास चली जा लेकिन माला नहीं जाना चाहती वो अब ये सब सहन नहीं कर सकती ,तब माला की भाभी जो एक बड़ी कम्पनी में programmer के पद पर कार्यरत थी और बहन जो पूना में एक कम्पनी में Consultant के पद पर कार्यरत थी माला की सहायता करते हैं और उसका online business set करने में माला की मदद करते हैं और माला भी अपने दृढ़ निश्चय से और पूरी लगन से काम करती है, और आत्मनिर्भर होकर दोनों बच्चों की परवरिश और शादी करती हैं। संध्या सफल डॉक्टर और नीरज चॉर्टेड अकाउण्टेट बनता है।

एक औरत अपने पर आये तो वो क्या नहीं कर सकती,आज की नारी अबला नहीं सबला हैं, शिक्षित है और सश्क्त है।

बस यहीं थी माला की लाचार से आत्म निर्भर बनने की कहानी।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational