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Versha Gupta

Inspirational

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Versha Gupta

Inspirational

उड़ान

उड़ान

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ये कहानी हैं माला की, उसके सपनों के उड़ान की।

माला गुलाबी नगरी जयपुर निवासी है, उसका परिवार एक संपन्न परिवार है। माला के पिता राजेश जयपुर के नामी- गिरीमी बिजनसमैन हैं। पर राजेश के अमीर होने के बावजूद उनमें इस बात का कोई घमण्ड नहीं हैं। दिल से बहुत दयालु भी हैं। जब कोई मदद के लिए आता है , बिना किसी सवाल के उसकी मदद करते हैं।

एक बार राजेश का मैनेजर उनसे यह कह कर पैसे ले कर जाता है, कि उसकी बीवी बीमार है। राजेश भी बिना कुछ सवाल किये पैसे दे देता हैं।  

बाहर जाकर मैनेजर अपने दोस्त से बात करता हैं, पैसे मिल गये हैं, आज खूब पार्टी करेंगे। यह सब माला सुन लेती है, और अपने पिता से आकर कहती है, कि वो आप से झूठ बोल के पैसे ले कर गये है, राजेश कहता हैं, मैं जानता हूँ, लेकिन मेरे पैसे देने से उसे खुशी मिलती है, तो यही सही। राजेश की इसी दरिया दिली के कारण बहुत कर्जा भी चढ़ गया था। माला की माँ का नाम सावित्री है, वो एक ग्रहणी हैं, एवं उन्हें सिलाई का शौक है। माला अपने माँ-बाबा की इकलौती संतान है, पर उसके माता पिता ने उसे ये कभी अहसास नहीं होने दिया कि उनके कोई बेटा नहीं हैं, माला को ही बेटे की तरह पाला।

एक दिन माला के घर उसके चाचा का लड़का रवि आता है, जो एक आर्मी ऑफिसर है, माला उससे बहुत प्रभावित होती है और वो भी आर्मी में जाना चाहती है।

सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन किस्मत के आगे किस का बस चला है। एक दिन राजेश को बिजनेस के काम से केरल जाना होता है, रास्ते में आतंकवादी उनकी फ्लाइट का हाईजैक कर लेते हैं, इंडियन आर्मी अपने सिक्रेट ऑपरेशन द्वारा आंतकवादियों को तो पकड़ लेती है, और प्लेन के यात्रीयों को भी बचा लेती हैं, मगर माला के पापा आंतकवादियों के हाथों मारे जाते हैं। माला के ऊपर तो जैसे पहाड़ सा टूट जाता है, वह अपने पापा की लाडली थी, इसीलिए उनकी मौत का उसे सदमा लगता है, साथ ही इंडियन आर्मी से बहुत प्रभावित होती हैं, एवं आर्मी में जाने की उसकी इच्छा प्रबल हो जाती है।

मगर उसके पापा की दरियादिली के कारण उन पर बहुत कर्जा हो जाता है, एवं कर्जा चुकाने में उनका घर बार बिक जाता है। 

माला की माँ सावित्री, माला को लेकर अपने गाँव आ जाती है एवं सिलाई कर के माला का पालन पोषण करने लगती है, माला अपनी माँ से आर्मी में जाने की इच्छा व्यक्त करती है, लेकिन सावित्री उसको कहती है कि अब हमारी आर्थिक हालत अच्छी नहीं है, तुम यहीं गाँव में ही अपनी पढ़ाई पूरी कर लो, जबकी सावित्री अपने पति को तो खो चुकी थी, अब माला को नहीं खोना चाहती थी। लेकिन माला की भी आर्मी में जाने की इच्छा प्रबल थी, इसीलिए वह अपने जेब खर्च के रूपये लेकर घर से निकल पड़ती है, और उसे अपने रवि भईया और इंटर नेट से जो जानकारी मिली उसके अनुसार देहरादून के आर्मी कॉलेज में एडमिशन ले लेती है, और पढ़ाई के खर्चे के लिए वो बच्चों को ट्यूशन देती है। अपनी माँ को फोन पर सूचित करती है, कि उसने आर्मी कॉलेज में एडमिशन ले लिया है।  सावित्री को ये सुनकर बड़ा दुख होता है, साथ ही बेटी का सपना सच होते देख उसे खुशी भी होती है।

जब माला आर्मी यूनीफार्म में गाँव में आती हैं , पूरा गाँव खुशी से झूम उठता हैं।

अगर हौसलौं में हो दम

तो सपनों को सच होने से

रोकने का नहीं किसी में दम।



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