क्या सही क्या गलत
क्या सही क्या गलत
गर्मियों के दिन थे... हम लोग उस समय किराए के मकान में रहते थे। चरखी दादरी में पापा के तबादले के बाद हम लोगों को सरकारी मकान नहीं मिला था। नई जगह थी तो कोई ढंग का मकान भी नहीं मिल पाया।
उस समय मैं सात या आठ बरस की ही थी।
मुझे आज भी वो मकान अच्छी तरह से याद है... कुछ अजीब सा था, नीचे टायरों की दुकान थी और उसके ऊपर मकान। हमें ऊपर जाने के लिये उसी दुकान के भीतर वाली सीढियों से चढ़ कर जाना पड़ता था। नीचे की तरफ काफी लोहे का सामान पड़ा रहता था।
ऊपर का मकान किसी हवेली की तरह बना हुआ था, कमरों से ज्यादा जगह तो खाली पड़ी हुई थी।
उस दिन अचानक बिजली चली गई.... मम्मी रसोई में खाना बना रहीं थी और हम सब बच्चे आँगन में खेल रहे थे। तभी मैंने देखा कि नीचे की सीढी से सफेद कपड़ों में एक साया आया और चुपचाप आँगन से होता हुआ ऊपर की ओर जाने वाली सीढी पर से छत की ओर चला गया, उसे देखकर एकदम मेरी चीख निकल गई।
“क्या हुआ”, मम्मी ने रसोई घर से आवाज लगाई.. तब तक सभी लोग मेरे पास आ चुके थे। मैं इतना सहम चुकी थी कि कोई जवाब नहीं दे पा रही थी.. “वो.. वो ऊपर”, मैंने इशारे से बताने की कोशिश की।
“क्या है ऊपर, चल दिखा..” मेरा हाथ पकड़कर मम्मी मुझे छत की ओर ले जाने लगी। अब छत पर अंधेरे के सिवाय कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।
“छत पर तो कोई नहीं है, चल बता क्या देखा तूने?”, मम्मी ने मुझसे सवाल किया। मैंने मम्मी को सारी बात बता दी।
“देखने में वो कैसा था”, उन्होंने पूछा।
“सफेद कपड़ों में था कोई, हाथ में लाठी थीऔर सफेद रंग की दाढी थी, एकदम तेजी से निकल गया कि ठीक से देख नहीं पाई, बस उसकी पीठ ही नजर आ रही थी।” (मैंने जवाब देते हुए कहा)
हमने अच्छी तरह से सब तरफ देखा, वहाँ कोई दिखाई नहीं दे रहा था। सभी को लगा कि मेरा ही कोई वहम होगा पर मम्मी ने कहा कि, “तू डर मत वो कोई पुण्यात्मा होगी जो हो सकता है कि हमारे कष्ट दूर करने आई हो।”
अगले दिन सुबह स्कूल में से मुझे लेने चाचाजी आ गये। किस लिए लेने आए हैं मुझे इसका पता घर पहुँच कर लगा। मम्मी और पिन्टू (मेरा छोटा भाई) कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे। घर पर केवल मेरा बड़ा भाई और चाचा जी ही थे।
“मम्मी कहाँ हैं?” मैंने चाचा जी से सवाल किया।
“डॉक्टर के पास गई हैं, अभी आती होंगी।” चाचा जी ने तसल्ली देते हुए कहा।
कुछ देर बाद मम्मी, पापा और पिंटू वापिस आ गए थे।
मैंने देखा कि पिन्टू के सिर पर पट्टियाँ बँधी हुईं थी, उसके कपड़ों पर खून लगा हुआ था।
इससे पहले कि मुझे कुछ समझ आता कि ये सब कैसे हुआ पड़ोस वाली आन्टी जी आ गईं। उनके पूछने पर मम्मी ने बताया कि, “मकान मालिक अपना कुछ सामान ऊपर छत पर पहुँचाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने आँगन का जाला खोला हुआ था। नीचे का सामान ऊपर लाया जा रहा था। तभी पिन्टू जो कि वहाँ खेल रहा था, धड़ाम से नीचे गिर पड़ा। वो तो वहाँ पर काम करने वाले मजदूर थे वरना कुछ भी हो सकता था... उन्होंने फुर्ती से उसे पकड़ लिया, पिन्टू के पैर ही उनके हाथ में आए और सिर नीचे पड़े हुए सामान से जा टकराया आपको तो पता ही है कि नीचे कितना लोहे का सामान पड़ा रहता है। ये तो सिर का बचाव हो गया वरना आज कुछ भी हो सकता था।” (मम्मी ने जवाब देते हुए कहा)
अब मुझे समझ आ गया था कि वास्तव में हुआ क्या है?
अब मम्मी कल रात वाली घटना को आज वाली घटना से जोड़कर देखने लगी। उनको पक्का विश्वास हो चला था कि भाई पर कष्ट आने वाला है इसलिए कल रात को कोई पुण्यात्मा घर पर फेरा डालने आई थी। यही वजह है कि इतना बड़ा संकट टल गया।
“मैं कहती न थी कि कोई देवात्मा ही होगी।” (माँ ने अपना पूरा विश्वास दिखाते हुए कहा)
आज इस घटना को लगभग चालीस बरस हो चुके हैं और वो साया हूबहू अभी भी मुझे याद है, वो मेरा कोई वहम नहीं था, मैंने उसे वास्तविक रूप से देखा था..
कोई माने या ना माने यह एकदम सत्य है जिसे मैंने स्वयं अनुभव किया है।
मैं ये तो नहीं जानती कि दोनों घटनाओं का आपस में कोई सम्बन्ध रहा होगा... कोई इत्तेफ़ाक़ भी हो सकता है, किन्तु कुछ न कुछ तो था जरूर जो कहने सुनने से परे है। पर ऐसा बहुत कुछ जीवन में देखने सुनने को मिल जाता है जो अविश्वसनीय होता है, किसी की श्रद्धा भी हो सकता है तो कोई अंधविश्वास भी।

