क्या खूब ज़माना बदला है!
क्या खूब ज़माना बदला है!
मोटा भी चित्र में पतला है।
क्या खूब ज़माना बदला है!
सच को झूठ बनाना है,
दुनिया को आगे बढ़ाना है।
सच-झूठ के तालमेल से,
कनकधारा बरसाना है।
अब धन ने मन को मसला है,
क्या खूब ज़माना बदला है!
ईमान ने दिए घुटने टेक,
बेईमान अब हो गए नेक।
मानवता के उड़े हैं चीथड़े,
सत्यवादी अब सबसे पिछड़े।
लालच से सबका मन मचला है,
क्या खूब ज़माना बदला है।
सब छल की दुनिया में रहते हैं,
पुण्य-पाप के चाबुक सहते हैं।
‘अब बस कर’ ईश्वर भी कहते हैं,
पत्थर के भी अश्रु अब बहते हैं।
छल-बल से दिल पृथ्वी का दहला है,
क्या खूब ज़माना बदला है!
